CDS बिपिन रावत PM मोदी के सपनों को पूरा करने में जुटे थे, सेना को बना रहे थे और भी मारक

नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनरल बिपिन रावत को देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) बना कर तीनों सेनाओं में सुधार का अहम जिम्मा सौंपा था। ताकि सेनाओं की मारक क्षमता में इजाफा किया जा सके। जनरल रावत इस दिशा में तेजी से काम कर रहे थे। चाहे वह तीनों सेनाओं को मिलाकर थियेटर कमान बनाना हो, या फिर चीन की चुनौतियों से निपटने के लिए एकीकृत युद्धक समूहों (आईबीजी) का गठन। हालांकि, ये प्रयास आगे भी जारी रहेंगे लेकिन उनके असमय निधन से इन प्रयासों को तात्कालिक तौर पर झटका लगा है। दरअसल, कारगिल युद्ध के बाद से ही देश में सीडीएस बनाए जाने की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी। कारगिल युद्ध के बाद बनी समीक्षा समिति की भी यही सिफारिश थी। लेकिन इस मांग को 2019 में अमली जामा पहनाया गया। तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत को सेवानिवृत्त होने के बाद देश का पहला सीडीएस बनाया गया।

चार थियेटर कमान बनाने का काम शुरू किया
रावत ने सीडीएस के करीब दो वर्ष के कार्यकाल में तीनों सेनाओं में कई स्तरों पर सुधार के कार्य शुरू किए। एक तरफ तीनों सेनाओं को मिलाकर चार थियेटर कमान बनाने का कार्य शुरू किया। जिसमें दो जमीनी एक समुद्री तथा एक एयर डिफेंस कमान शामिल है। इनके लिए तमाम अध्ययन पूरे किये जा चुके हैं तथा एकीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत भी हो चुकी है।

छोटे-छोटे युद्धक समूहों की चीन सीमा पर तैनाती
इसी प्रकार चीन सीमा से लगातार मिल रही चुनौती से निपटने के लिए रावत ने वहां तैनात सेना को छोटे-छोटे युद्धक समूहों में तब्दील करने का कार्य भी शुरू कर दिया था। पूर्वोत्तर में चीन सीमा पर ऐसे समूहों की तैनाती भी शुरू की गई। छोटे समूहों को कुछ ही घंटों में युद्ध के लिए तैयार किया जा सकता है। जबकि मौजूदा बटालियनों को तैयार करने में कई घंटे लग जाते हैं। मकसद सेना को त्वरित कार्रवाई में सक्षम बनाना और उसकी मारक क्षमता में इजाफा करना है।

सेना को तकनीक से लैस कराना चाहते थे रावत
रावत सेनाओं को तकनीक से लैस कराना चाहते थे और सेनाओं को पुराने स्वरूप में संचालन से बाहर निकालना चाहते थे। इसलिए युद्धक टुकड़ियों में वह परंपरागत सपोर्ट और सप्लाई में लगे सैनिकों को भी वे गैरजरूरी मानते थे। इसलिए उन्हें कम करने की तैयारी चल रही थी। रावत के अनुसार यदि 120 सैनिकों की एक टुकड़ी में सपोर्ट और सप्लाई में लगे सैनिकों की संख्या कम कर दी जाए और टुकड़ी को तकनीक से लैस कर दिया जाए तो 80 की संख्या में भी वह पहले से ज्यादा घातक हो सकती है। इससे तीन-चार सालों में एक लाख सैनिक घटाए जा सकते हैं। रावत ने सेनाओं के भीतर भी कई सुधार किए। आमतौर पर सैनिक 40 साल की उम्र में सेवानिवृत्त कर दिए जाते हैं। जल्दी सेवानिवृत्त होने से जवान और सरकार दोनों को नुकसान था। इसलिए यह व्यवस्था बनाई जा रही है कि एक तिहाई जवानों को 58 साल की उम्र में सेवानिवृत्त किया जाए। इस पर भी कार्य शुरू हो गया।

सैन्य रखरखाव के लिए भी नए तरीके
इसी प्रकार रावत ने सैन्य रखरखाव के लिए भी नए तरीके से सोचना शुरू किया। पहले सेना सारी तैयारियां अपनी करती है लेकिन अब यह कोशिश की जा रही थी कि सेनाओं में इस कार्य को यथासंभव आउटसोर्स किया जाना चाहिए। सेना को अपने लिए पेट्रोल, डीजल, जनरेटर जैसे सामानों को एकत्र करने की जरूरत नहीं। क्योंकि अब यह समान देश में हर जगह पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। इसी प्रकार बेस वर्कशाप के बेहतर संचालन के लिए उन्हें सैन्य नियंत्रण में निजी क्षेत्र द्वारा संचालित करने, सैनिक फार्मों को बंद करने जैसे सुधार शामिल हैं।

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