केरल में महाप्रलय: क्यों नहीं मिल सकता ‘राष्ट्रीय आपदा’ का दर्जा
नई दिल्ली
जैस ही शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाढ़ की हालात का जायज़ा लेने के लिए केरल पहुंचे कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियां ने मांग कि केंद्र सरकार जल्द ही केरल बाढ़ को ‘राष्ट्रीय आपदा’ घोषित करे। केरल इस समय भयंकर बाढ़ से जूझ रहा है। कल के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मृतकों की संख्या 324 हो चुकी है, 3 लाख से ज़्यादा लोग बेघर हो गए हैं। 20 हज़ार करोड़ की संपत्ति नष्ट हो चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केरल के लिए 500 करोड़ रुपये की तत्काल मदद का ऐलान किया है। इससे पहले गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने 100 करोड़ की राशि घोषणा कर दी थी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर प्रधानमंत्री से आग्रह किया है कि वह जल्द ही केरल बाढ़ को ‘राष्ट्रीय आपदा’ घोषित करें। लाखों लोगों की ज़िंदगी, आजीविका और भविष्य दांव पर है।
राज्य सरकारें और विपक्ष जब भी भयंकर प्राकृतिक आपदा आती है तो उसे ‘राष्ट्रीय आपदा’ घोषित करने की मांग करते आए हैं। उनके अनुसार अगर आपदा को 'राष्ट्रीय आपदा' घोषित किया जाता है, तो बचाव कार्यों के लिए सामान, पुनर्वास कार्यों का सारा खर्चा केंद्र सरकार उठाएगी। नीचे लिखीं इन बड़ी आपदाओं को भी ‘राष्ट्रीय आपदा’ घोषित करने की मांग उठी थी :
2015 में दक्षिण भारत में आई बाढ़ जिसमे 500 लोगों की मौत और 20 हज़ार करोड़ की संपत्ति नष्ट हुई थी।
2014 में कश्मीर बाढ़ के दौरान 277 लोगों की मौत हुई और 2500 गांव नष्ट हुए।
2013 में उत्तराखंड में प्रलय में 5748 लोगों की मौत हुई और 4200 गांव नष्ट हुए।
2008 की बिहार में 434 लोगों की मौत हुई और 23 लाख लोगों का जीवन प्रभावित हुआ।
लेकिन केंद्र सरकार ने इन आपदाओं को 'गंभीर प्रकृति की आपदा ही माना था, ‘राष्ट्रीय आपदा’ नहीं। ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005 में एक प्राकृतिक आपदा को ‘राष्ट्रीय आपदा’ घोषित करने के लिए कोई प्रावधान नहीं है। गृह मंत्रालय की राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का उच्चतम श्रेणी में 'गंभीर प्रकृति की आपदा' है।