भारतीय सेना बनेगी ज्यादा चुस्त-दुरुस्त और ‘फैट फ्री’

नई दिल्ली 
भारतीय सेना को ज्यादा चुस्त-दुरुस्त बनाने के लिए सेना के भीतर बड़े स्तर पर चार स्टडी चल रही हैं। इनके बाद कई ऐसे फैसले लागू किए जा सकते हैं जिससे सेना का ढांचा 'फैट फ्री' बने यानी जिन वजहों से फैसले लेने में देरी होती है और मैनपावर बर्बाद होती है, उनकी पहचान कर उन्हें बदला जा सके। ऐसा करने के पीछे सेना को भविष्य की जरूरतों के हिसाब तैयार करना है। 

दिसंबर तक आर्मी चीफ लेंगे फैसला 
एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक, स्टडी कर रही सभी टीमों को लेफ्टिनेंट जनरल हेड कर रहे हैं। इनमें वास्तविक ग्राउंड स्थिति का ध्यान रखा जा रहा है। इन चारों स्टडी को सेना के वाइस चीफ सितंबर के मध्य में देखेंगे। जिसके बाद दिसंबर के आखिर में स्टडी से क्या निकल कर आया और क्या बदलाव किए जा सकते हैं इस पर फाइनल प्रजेंटेशन आर्मी चीफ को दिया जाएगा। आर्मी चीफ इस पर अपना फैसला लेंगे और फिर बदलाव का डीटेल प्रपोजल डिफेंस मिनिस्ट्री को भेजा जाएगा। 

आर्मी हेडक्वॉर्टर से कम होंगे लोग 
आर्मी के भीतर इस पर स्टडी चल रही है कि कैसे हेडक्वॉर्टर में मैनपावर को कम किया जाए। आर्मी के विस्तार के साथ हेडक्वॉर्टर में तैनात अधिकारियों की संख्या बढ़ती रही है जिससे फ्रंटलाइन पर ट्रेंड और अनुभवी मैनपावर की उपलब्धता कम हुई है। वैसे ही ऑफिसर कैडर की कमी है और फ्रंटलाइन पर इनकी ज्यादा जरूरत महसूस की जाती रही है। एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक अभी सेना में कई ब्रांच और निदेशालय ऐसे हैं जो लगभग एक जैसा ही काम करते हैं। इस तरह की 'डुप्लिसिटी ऑफ टास्क' को खत्म करने कि लिए स्टडी कर रही टीम अपनी सिफारिश देगी क्योंकि इससे मैनपावर भी ज्यादा लग रहा है वक्त भी। यह टीम इस पर भी फोकस कर रही है कि क्या कोई ऐसी ब्रांच हैं जिसे रीलोकेट किया जा सकता है यानी आर्मी हेडक्वॉर्टर से बाहर कोई ब्रांच निकाली जा सकती है ताकि ज्यादा ऑफिसर्स को फ्रंटलाइन यूनिट के लिए उपलब्ध कराया जा सके। 

पेंशन के लिए बढ़ सकती है मिनिमम सर्विस लिमिट 
सेना में सर्विस के नियम और शर्तों का भी रिव्यू किया जा रहा है। अभी तक नियम और शर्तों को लेकर आर्मी रेग्युलेशन-1987 माना जाता है। साथ ही डिफेंस मिनिस्ट्री के 1998 के लेटर के हिसाब से पेंशन के लिए मिनिमम सर्विस की लिमिट तय होती है। यह स्टडी की जा रही है कि क्या सर्विस के पैरामीटर बदलने की जरूरत है। माना जा रहा है कि पेंशन के लिए मिनिमम सर्विस की लिमिट बढ़ाई जा सकती है। एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक अभी तक के नियम और शर्त फंक्शनल जरूरतों के हिसाब से हैं लेकिन इन्हें भविष्य की जरूरत के हिसाब से कैसे किया जा सकता है स्टडी इस पर हो रही है। 

दूसरे देशों की आर्मी और भारत के भीतर सेंट्रल गवर्नमेंट सहित दूसरी सर्विस में जो भी सर्विस रूल स्टैंडर्ड के हैं उन्हें भी देखा जा रहा है। उनकी कुछ अच्छी प्रैक्टिस यहां भी लागू की जा सकती है। सूत्रों के मुताबिक सेना 'लो मेडिकल कैटिगरी' से जूझ रही है यानी अनफिट जवानों और अधिकारियों की संख्या बढ़ रही है। आर्मी चीफ कई बार जवानों- अधिकारियों की हेल्थ को लेकर सलाह दे चुके हैं। इसके अलावा कई जवान प्रमोशन कैडर में जाने से मना कर देते हैं। 9 महीने की ट्रेनिंग के बाद 15 साल में जवान पेंशन पर जा सकते हैं। 

सूत्रों के मुताबिक जिस तरह हर साल जवान पेंशन पर जा रहे हैं और ट्रेंड लोगों की कमी हो रही है उससे सेना चितिंत है। स्टडी इस पर भी की जा रही है कि क्या पेंशन के लिए मिनिमम सर्विस पीरियड बढ़ाया जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक इसे 15 साल से बढ़ाकर 20 साल करने पर विचार चल रहा है। हालांकि इसमें ख्याल रखा जाएगा कि ऑपरेशन डिप्लॉइमेंट के लिए ऐज प्रोफाइल क्या रखना है, साथ ही जवान की लाइफटाइम कमाई क्या होगी। 

बढ़ सकती हैं मेजर जनरल की वेकन्सी 
सूत्रों के मुताबिक कंपोजिट और इंटीग्रेटेड ब्रिगेड बनाने के प्रपोजल की स्टडी की जा रही है। चार-पांच बटैलियन को मिलाकर इंटीग्रेटेड ब्रिगेड बनाने का प्रस्ताव है। इंटीग्रेटेड ब्रिगेड फिर सीधे कोर हेडक्वॉर्टर के अंडर आ सकेगी। इससे मेजर जनरल की वेकन्सी बढ़ सकती हैं, क्योंकि तब इंटिग्रेटेड ब्रिगेड सभी आर्म और सर्विसेज के साथ व्यापक कॉम्बेड फोर्स होगी जिसे मेजर जनरल हेड करेंगे। स्टडी टीम यह भी देख रही है कि क्या आर्मी में ज्यादा मैनपावर की जरूरत रिजर्विस्ट को युद्ध में शामिल कर पूरी की जा सकती है। सभी जवान रिटायरमेंट के बाद रिजर्विस्ट घोषित होते हैं और दो साल तक उनकी रिजर्व लायबिलिटी होती है। इन रिजर्विस्ट को युद्ध की स्थिति में एक्टिव ड्यूटी पर बुलाया जा सकता है। 

हर किसी के काम का रिव्यू, वित्तीय फैसलों में तेजी 
सीनियर अधिकारी के मुताबिक सेना में खासकर हेडक्वॉर्टर में चार्टर ऑफ ड्यूटी को रिव्यू किए काफी वक्त हो गया है। इसलिए स्टडी के जरिए हर ऑफिसर के काम का रिव्यू किया जाएगा ताकि काम का विभाजन फिर से हो सके। इससे यह भी पता चलेगा कि कहां पर मैनपावर कम की जा सकती है। सूत्रों के मुताबिक अभी वित्तीय फैसले पहले फाइनैंस प्लानर से डेप्युटी चीफ के पास जाते हैं फिर वाइस चीफ के पास, जिससे कई बार फैसला लेने में काफी वक्त लग जाता है। स्टडी के जरिए यह देखा जाएगा कि क्या बीच की लेयर खत्म कर सीधे फाइनैंस प्लानर वाइस चीफ को रिपोर्ट कर सकते हैं। 

सेना में अभी कैपिटल खरीद से जुड़े दो निदेशालय काम कर रहे हैं। परस्पेक्टिव प्लानिंग और वेपन एंड इक्विपमेंट। इन्हें भी रिव्यू किया जा रहा है ताकि सब सिंगल अकाउंटिबिलिटी के तहत लाए जा सकें। यह देखा जा रहा है कि क्या दोनों को एक ही निदेशालय के अंडर लाया जा सकता है साथ ही यह भी कि क्या कुछ निदेशालय बंद किए जा सकते हैं। क्या कुछ मर्ज किए जा सकते हैं और बेहतर इफिसिएंसी के लिए कुछ को दिल्ली से बाहर शिफ्ट किया जा सकता है। एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक, स्टडी के बाद कहीं पर भी अपर लिमिट नहीं बढ़ेगी लेकिन कई जगह कम हो सकती हैं।  

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