महंगी होंगी दवाइयां, कंपनियों ने उठाई दाम बढ़ाने की मांग!

 नई दिल्ली
 पिछले कुछ महीनों में कच्चे माल की कीमत 20 से 90 फीसदी तक बढऩे से दवा कंपनियों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। ऐसे में दवा कंपनियों ने केंद्र सरकार से मूल्य नियंत्रण के तहत आने वाली दवाओं की कीमतें बढ़ाने का आग्रह किया है। उनका कहना है कि कम से कम अस्थायी तौर पर ही कीमतों में इजाफा किया जाए ताकि कच्चे माल की बढ़ी लागत को वहन किया जा सके। अगर सरकार उनकी मांग को स्वीकार करती है तो नया दवा मूल्य निर्धारण आदेश 2013 के तहत यह अप्रत्यशित कदम होगा।

आयातित एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट (एपीआई) या बल्क दवाओं की कीमत पिछले कुछ महीनों में 20 से 90 फीसदी तक बढ़ गई है। भारतीय दवा विनिर्माता कच्चे माल के लिए चीन पर काफी निर्भर हैं। केपीएमजी-सीआईआई के अध्ययन के अनुसार कुल इस्तेमाल का करीब 60 से 70 फीसदी बल्क दवाओं का आयात चीन से किया जाता है। कच्चे माल की कीमतों में वृद्घि का घरेलू उद्योग पर व्यापक प्रभाव पड़ा है क्योंकि 1.23 लाख करोड़ रुपए के घरेलू दवा बाजार का करीब 16 फीसदी मूल्य नियंत्रण के दायरे में आता है। दूसरे शब्दों में कहें तो 198 अरब रुपए के मूल्य की दवाओं की कीमतें सरकार के नियंत्रण में हैं।

इन दवाओं की अधिकतम कीमत राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण द्वारा तय की जाती है और हर साल थोक मुद्रास्फीति के आधार पर उसकी समीक्षा होती है। एक दवा कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सरकार को कम से कम तात्कालिक तौर पर कीमतें बढ़ाने पर विचार करना चाहिए। दवा नियंत्रण के तहत जिन कंपनियों की दवाएं आती हैं उनमें सिप्ला, कैडिला हेल्थकेयर, जीएसके फार्मास्युटिकल्स इंडिया, एल्केम लैबोरेटरीज और सन फार्मा प्रमुख हैं।

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