धार्मिक विश्वास से जुडे़ फैसले पर सुप्रीम कोर्ट का रुख एक समान नहीं: अरुण जेटली

 
नई दिल्ली 

वित्त मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली  ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असहमति जताई है। उन्होंने कहा कि कोर्ट को इस तरह के फैसले के वक्त सभी धार्मिक मान्यताओं को ध्यान में रखान चाहिए। बता दें कि मासिक धर्म की उम्र सीमा वाली 10 साल की बच्चियों से लेकर 55 साल की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश को लेकर मनाही थी। कोर्ट ने इस नियम को खारिज करते हुए महिलाओं के प्रवेश को कानूनी तौर पर वैध बना दिया है।  
 
एक मीडिया समूह के कार्यक्रम में वित्त मंत्री ने कहा, 'अगर आप एक प्रगतिशील कदम उठाना चाहते हैं तो इसका आधार सभी धर्म से जुड़ी प्रक्रियाओं पर होना चाहिए। संविधान  के अनुच्छेद 14 और 21 का पालन सभी धर्मों को करना होगा। ऐसा नहीं हो सकता है कि आप परंपरा में चली आ रही एक प्रक्रिया को सिर्फ उसके सामाजिक दुष्प्रभावों के बारे में सोच कर छूट दें।' 

 
वित्त मंत्री जो पेशे से दिग्गज वकील भी हैं, उन्होंने संविधान के आर्टिकल 14 को धार्मिक आधार पर देखने को लेकर चर्चा की। उन्होंने कहा, 'अगर धार्मिक मान्यताओं और प्रथाओं को भी आर्टिकल 14 के तहत रखा जाता है तो यह पर्सनल लॉ पर भी लागू होना चाहिए। इस आधार पर क्या यह बहु-विवाह पर लागू होगा? मौखिक तौर पर तलाक के खिलाफ भी क्या यह लागू होगा? क्या यह ऐसे धार्मिक स्थल जहां महिलाओं का प्रवेश निषेध है, वहां पर भी आर्टिकल 14 का हवाला दिया जाएगा?' 
 

जेटली ने न्यायपालिका के सबरीमाला मंदिर + में प्रवेश के फैसले को साहसिक निर्णय बताए जाने पर कहा, 'अगर आप प्रगतिशील और साहसिक फैसले ले रहे हैं तो इसका आधार सभी के लिए एक समान होना चाहिए। हालांकि, फिलहाल ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है।' राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि वित्त मंत्री का यह बयान सरकार के तीन तलाक को अपराध की श्रेणी में रखे जाने और कोर्ट के सबरीमाला पर दिए फैसले पर पार्टी के स्टैंड के तौर पर देखा जा रहा है। 
 

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