जैन परिवार 95 साल से कर रहा हिन्दू मुनीम का श्राद्धकर्म

 
खिरकिया  हरदा।

 जैन धर्म में श्राद्ध निषेध है इसके बावजूद यहां का जैन परिवार 95 साल से अपने मुनीम स्व. अबीरचंद का श्राद्धकर्म करने की परंपरा निभा रहा है। जैन परिवार के तीसरी पीढ़ी के सदस्य निर्मल जैन और चौथी पीढ़ी के रीतेश जैन बताते हैं कि करीब सौ साल पहले उनके पूर्वजों का महेश्वर में सूत का कारोबार था।

 
राजमल हरकचंद नामक फर्म में बड़ी संख्या में मुनीम, गुमाश्ते और नौकर-चाकर हुआ करते थे। उसी दौर में उनका सूत से भरा एक जहाज डूब गया। जिससे उनके परिवार को बहुत आर्थिक क्षति उठाना पड़ी थी। उस वक्त उनके सभी कर्मचारियों ने अन्यत्र कामकाज तलाश लिया। लेकिन मुनीम अबीरचन्द ने उनका साथ नहीं छोड़ा।

मुनीम ब्राम्हण थे तथा निसंंतान थे। 1920 में मुनीमजी का स्वास्थ्य खराब हो गया। तब उन्होंने जैन परिवार के बुजुर्गों को अपनी अंतिम इच्छा कि उनके वंश में कोई नहीं है, ऐसे में उनका श्राद्ध, तर्पण, अर्पण आदि कौन करेगा। तब जैन परिवार के बुजुर्गों ने उन्हें आश्वस्त किया था कि हालांकि उनके धर्म में श्राद्ध सहित अन्य कर्मकांड निषिद्ध है। बावजूद इसके वह मुनीमजी का श्राद्धकर्म करते रहेंगे।

85 साल पहले जैन विनायक परिवार खिरकिया में बस गया। लेकिन परिवार के सदस्य मुनीमजी का श्राद्धकर्म मनाना नहीं भूले। राजमल विनायक के छह पुत्र भूरालाल जैन, ज्ञानचंद जैन, हुकुमचंद जैन, कस्तूरचंद जैन, कन्हैयालाल जैन और जड़ावचंद जैन थे। इन सभी ने अलग-अलग परिवार बसने के बाद भी अपने-अपने घरों में मुनीमजी का श्राद्धकर्म करने की परंपरा जारी रखी। इनके साथ ही राजमल जैन के चचेरे भाई छीतरमल जैन का परिवार जो कि महेश्वर में रहता वहां भी उनके पुत्र महेश जैन मुनीमजी का श्राद्धकर्म हर वर्ष करते हैं।

कनागत के बाद मनाते हैं श्राद्ध

चूंकि जैन धर्म में श्राद्धपक्ष वर्जित है इसलिए वे विनायक परिवार मुनीमजी का श्राद्ध कनागत निकल जाने के बाद आश्विन शुक्ल द्वितीया (नवरात्रि के दूसरे दिन) उसी विधि-विधान से करते हैं, जैसा इतर समाज में होता है। जैन परिवार की चौथी पीढ़ी के चौथी पीढ़ी के सदस्य विवेक जैन का कहना है कि यह सच है कि जैन परम्परा में श्राद्ध का कोई स्थान नहीं है। पर जैन शास्त्रों में सहकर्मियों को भी परिवार के सदस्य के तुल्य मानने की बात कही गई है। इसीलिए हम सभी भाई मुनीमजी का श्राद्ध करते आ रहे हैं।

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