चीन को पटखनी देने के लिए NSA अजीत डोभाल ने बनायी थी ये खास रणनीति

नई दिल्ली
पूर्वी लद्दाख के पैंगॉन्ग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों से भारत और चीन के सेनाएं पीछे हट चुकी हैं। पीएलए के पीछे हटने के बाद भारतीय सेना ने पैंगॉन्ग झील के दक्षिणी किनारे पर स्थित ऊंचाई वाली चोटियों पर भारत के जवानों ने कब्जा जमा लिया है। ये पूरा गतिरोध भारत के लिए गेम चेंजर साबित हुआ है। जिसके चलते चीन पर काफी दबाव बना। बता दें कि हाल ही में दोनों देशों के बीच 10 दौर की कमांडर लेवल की मीटिंग के बाद सेनाएं पीछे हटने पर सहमत हुई थीं।
 
सूत्रों ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की अगुवाई में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत, सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे सहित सैन्य कमांडरों के साथ हुई बैठकों के दौरान विवादित इलाके में चीन पर बढ़त हासिल करने के लिए ऊंचाइयों पर कब्जा करने का विचार आया था। पिछले साल 20 जुलाई की घटना के बाद 29 अगस्त से 30 अगस्त के बीच किए गए एक ऑपरेशन में, भारतीय सेना ने रेजांग ला, रिचेन ला और मोखपारी सहित कई अन्य समारिक महत्व की उचाईयों पर कब्जा जमा लिया था।
 
भारतीय सेना के इस कदम के बाद चीनी सेना के बंकर औऱ पोस्ट सीधे भारत के निशाने पर आ गए थे। सूत्रों ने कहा कि इन बैठकों के दौरान तिब्बतियों सहित विशेष फ्रंटियर फोर्स के इस्तेमाल पर भी विचार हुआ था। सुरक्षा सूत्रों के मुताबिक, चीनी सेना के आक्रमण से मुकाबला करने के लिए सीडीएस जनरल रावत, सेना प्रमुख जनरल नरवणे और वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया ने भारतीय प्रतिक्रिया को लागू करने में अहम भूमिका निभाई।
 
सूत्रों ने पूर्वी क्षेत्र में सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस सहित सुरक्षा बलों के बीच घनिष्ठ समन्वय को भी श्रेय देते हुए कहा कि इसकी वजह से ही चीन उस क्षेत्र में किसी भी तरह के हमले को अंजाम नहीं दे सका। लेफ्टिनेंट अनिल चौहान ईस्टर्न आर्मी कमांडर हैं और एसएस देसवाल आईटीबीपी के प्रमुख हैं। सूत्रों ने कहा कि भारतीय वायु सेना द्वारा अन्य लड़ाकू विमानों और राफेल लड़ाकू विमानों की त्वरित तैनाती ने भी विरोधी को स्पष्ट संदेश भेजा कि भारतीय पक्ष उनसे निपटने के लिए किस हद तक जाने को तैयार है।

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