तुर्की और पाकिस्तान के बीच चलेगी ट्रेन, चीन को भी फायदा

 

तुर्की और पाकिस्तान के बीच नौ साल के अंतराल के बाद रेल सेवा फिर से शुरू होने वाली है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, मालवाहक ट्रेन 4 मार्च से तुर्की की राजधानी इंस्तांबुल से अपनी यात्रा शुरू कर ईरान से होते हुए पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद पहुंचेगी. इस ट्रेन के शुरू होने के बाद तुर्की, ईरान और पाकिस्तान के बीच संपर्क और मजबूत हो जाएगा.
      

पाकिस्तान रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पाकिस्तान के प्रमुख अखबार डॉन से बातचीत में कहा, "हमें बताया गया है कि मालवाहक ट्रेन 4 मार्च को तुर्की के इंस्तांबुल से इस्लामाबाद के लिए अपनी यात्रा शुरू कर सकती है. एक या दो दिन में ट्रेन के चलने की तारीख की पुष्टि हो जाएगी. फिलहाल जो जानकारी है, उसके हिसाब से ट्रेन 4 मार्च को ही इंस्तांबुल से रवाना होगी." अधिकारी ने कहा, चूंकि ट्रेन एक तरफ का सफर पूरा करने में 12 दिन लगाएगी तो हमें लगता है कि ट्रेन 16 मार्च को इस्लामाबाद पहुंचेगी.

पाकिस्तान के रेल मंत्री आजम खान ने बताया कि तुर्की से चलकर ट्रेन 16 मार्च को पाकिस्तान पहुंचेगी. रिपोर्ट के मुताबिक, इस ट्रेन को ईसीओ ट्रेन का नाम दिया गया है. ये ट्रेन हर महीने के पहले सप्ताह के गुरुवार को नियमित तौर पर चलाई जाएगी. ट्रेन की लंबाई 420 मीटर होगी और इसमें 750 टन सामान वहन करने की अनुमति होगी. पाकिस्तान रेलवे के चीफ मार्केटिंग मैनेजर काशिफ युसफानी ने बताया कि तुर्की से ईरान और पाकिस्तान के लिए 24 कंटेनर लेकर आ रहे कार्गो की बुकिंग पहले ही हो चुकी है.
      

पिछले साल दिसंबर महीने में तुर्की, ईरानी और पाकिस्तानी अधिकारियों में इस्तांबुल-तेहरान-इस्लामाबाद (आईटीआई) रेल नेटवर्क को दोबारा चालू करने पर सहमति बनी थी. पाकिस्तान रेलवे के रिकॉर्ड के मुताबिक, इस्लामाबाद और इंस्तांबुल के बीच पहली ट्रेन 14 अगस्त 2009 में चली थी. इसी तरह, इंस्तांबुल से इस्लामाबाद ड्राइपोर्ट के लिए पहली ट्रेन 13 अगस्त 2010 को चली थी. 2009 में इस परियोजना के शुरू होने के बाद से पाकिस्तान और तुर्की के बीच आठ ट्रेनें चलाई गईं. 5 नवंबर 2011 को लाहौर ड्राइपोर्ट से आखिरी बार तुर्की के लिए ट्रेन रवाना हुई थी. इसके बाद, सुरक्षा कारणों से इन ट्रेनों का परिचालन बंद कर दिया गया था.
                    

ये ट्रेन तीनों देशों में करीब 6,500 किलोमीटर का सफर तय करेगी. इस रेल लाइन का 1,950 किलोमीटर हिस्सा तुर्की से 2,600 किलोमीटर ईरान से और 1,990 किलोमीटर पाकिस्तान से गुजरेगा. इस्तांबुल-तेहरान-इस्लामाबाद यानी आईटीआई रेल नेटवर्क चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा नहीं है लेकिन विश्लेषक इसकी संभावना से इनकार नहीं करते हैं.
                    

अटलांटिक काउंसिल के साउथ एशिया सेंटर में ईरानी विशेषज्ञ फातेमेह अमान ने डैचे वैले से बातचीत में कहा, अगर चीन और ईरान के बीच 400 अरब डॉलर की परियोजना पर डील हो जाती है तो चीन को आईटीआई जैसी परियोजनाओं की बहुत जरूरत होगी. इसके जरिए इलाके में कनेक्टिविटी का इस्तेमाल चीन करना चाहेगा. अगर चीन एशिया में अमेरिका की भूमिका हथियाने में सफल हो जाता है तो उसे क्षेत्रीय देशों के बीच ज्यादा सहयोग की जरूरत होगी.
 
                   

इस रेल सेवा से तीनों देशों के बीच संपर्क बढ़ेगा और सफर पहले की तुलना में आसान हो जाएगा. इस्तांबुल से इस्लामाबाद तक की यात्रा में समंदर के रास्ते से 21 दिन लगते हैं जो ट्रेन से महज 11-12 दिन में पूरी हो जाएगी. इससे माल, कंटेनरों की ढुलाई बढ़ेगी और यात्रा का समय और खर्च घटेगा.
         

हालांकि, इस ट्रेन यात्रा की सुरक्षा को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं. बहुत सी अंतरराष्ट्रीय मालवाहक ट्रेन और गैस पाइपलाइन की परियोजनाएं राजनीतिक अस्थिरता के कारण ठप पड़ी हुई हैं. ट्रेन ऐसे इलाकों से गुजरेगी जो इस्लामी चरमपंथियों के चंगुल में है. इस्लामिक स्टेट का चरमपंथी गुट खासतौर से पाकिस्तान के पश्चिमी बलूचिस्तान प्रांत और ईरान में सक्रिय है. इसके साथ ही बलूचिस्तान के अलगाववादी भी प्रांत में सुरक्षाबलों को निशाना बनाते रहते हैं. इसके अलावा, रेल पोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर को आर्थिक रूप से मुफीद बनाने के लिए भी भारी निवेश की भी जरूरत होगी.
 

तुर्की, पाकिस्तान और ईरान के बीच बढ़ती नजदीकी भारत के लिए भी चिंता बढ़ाने वाली है. भारत के खिलाफ तुर्की और पाकिस्तान की जुगलबंदी जगजाहिर है. भारत के खिलाफ पाकिस्तान के हर एजेंडे को तुर्की ने हाल के दिनों में समर्थन किया है. दूसरी तरफ, चीन से भी इन देशों की आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी मजबूत होती जा रही है.

 

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