मुख्यमंत्री की हिदायत के बाद भी विश्वविद्यालयों के कैदी बने हुये हैं कुलपति

भोपाल
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के सभी कुलपतियों को हिदायत दे चुके हैं कि वे विश्वद्यालयों में कैदी बन कर नहीं रहें। इसके बाद भी कुलपति अपने कैबिनों से निकलना पसंद नहीं कर रहे हैं। जबकि मप्र विवि अधिनियम 1973 कुलपतियों को बाहर जाकर कालेजों का निरीक्षण कराने की इजाजद देता है। कुछ कुलपतियों को अधिनियम तक की पूरी जानकारी नहीं हैं। यहां तक उच्च शिक्षा मंत्री स्वयं नियमों से अनविज्ञ बने हुये हैं।

मप्र विवि अधिनियम 1973  की धारा 15, अधिनियम 5 और परिनियम 27 में प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को शैक्षणिक व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने के सभी अधिकार दिये हैं। इसके बाद भी कुलपति अपने कैबिनों से बाहर नहीं निकलते हैं। वे सिर्फ सेमिनार की शोभा बढाने के लिए ही विवि की सीमाओं से बाहर जाते हैं। इसलिये सीएम चौहान ने सूबे के सभी के कुलपतियों को हिदायत दी कि वे विवि के कैदी बनकर नहीं रहें। वे कालेजों का निरीक्षण करें। उसकी वस्तुस्थिति से अवगत होकर कार्रवाई करें। इसके बाद भी कुलपतियों ने अपनी तरफ से कोई भी कार्रवाई शुरू नहीं की है। वे सिर्फ कोरोना का डर लेकर सभी कार्रवाई को रोके हुये हैं। जबकि समूचे राज्य में स्कूल, कालेज और विवि के साथ अन्य शैक्षणिक संस्थाएं खोल दी गई हैं।

क्या कहते हैं कुलपति
बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आरजे राव से पूछा कि उन्होंने अपने तीन साल के कार्यकाल में कितने कालेजों का निरीक्षण किया, तो उन्होंने इंकार कर दिया। यहां तक उन्होंने विवि में हुई कालेजों की शिकायतों पर होने वाले कार्रवाई तक से इंकार कर दिया। उन्हें अपने विवि के परिसीमा में आने वाले कालेजों की संख्या तो दूसर प्रोफेसर और कोर्स तक कोई जानकारी नहीं हैं। ऐसे उन्होंने चर्चा के दौरान कहा है। उनका कहना है कि विवि में रहकर आर्थिक स्थिति को बहुत ख्याल रखना होता है। इसमें उन्हें शिकायतों का सामना करना होता है, जिसके कारण वे कोई कार्रवाई नहीं करते हैं। यही स्थिति सिर्फ बीयू की नहीं हैं। इसके अलावा रानी दुर्गावति विवि जबलपुर, अवधेश प्रताप सिंह विवि रीवा, जीवाजी विवि ग्वालियर और देवी अहिल्या विवि इंदौर की भी बनी हुई है। हालांकि विक्रम विवि उज्जैन, महाराज छत्रसाल विवि छतरपुर, महू विवि, भोज विवि, हिंदी विवि की स्थिति उक्त विवि से काफी अच्छी बनी हुई है। उच्च शिक्षामंत्री भी प्रदेश के सभी कुलपतियों की गतिविधियों को लेकर काफी नाराज हैं। वे समय-समय कुलपतियों को आगाह करते रहते हैं, लेकिन उनका नियुक्तिकर्ता राजभवन होने के कारण वे मंत्री यादव की बात को एक कान सुनकर दूसरे कालेज से बाहर कर देते हैं।

सिर्फ पत्थरों पर उल्लेखिल हुआ मंत्री का नाम
मंत्री यादव ने अपने कार्यकाल में सूबे के सभी कालेजों का निरीक्षण कोई ना काई उल्लेखनीय कार्य कराया है, जिसके कारण उनका नाम शिलान्यास के दौरान पत्थरों पर उल्लेखित किया गया है। वर्तमान में भी उनके यही प्रयास बने हुये हैं। गत माह पूर्व मंत्री यादव में बीयू में करीब आधा दर्जन कार्यक्रम के शुभारंभ किये है। इसके आलवा उन्होंने विभाग में रहते हुये ज्यादा कार्य नहीं किये हैं। वर्तमान में उनका उद्देश्य कालेजों में ज्यादा से ज्यादा प्रवेश कराने का है। विद्यार्थी अध्ययन कैसे करेंगे, जिसका प्लान तैयार नहीं कराया गया है। वहीं कुलपति के विवि में कैद रहने पर मंत्री यादव का कहना है कि कुलपति अपने विवि से बाहर नहीं जा सकते हैं। वे सिर्फ विवि कैंपस में बने विभागों का निरीक्षण कर सकते हैं। कुलपति उनके दायरे से बाहर हैं। क्योंकि उनके नियुक्तिकर्ता कुलाधिपति हैं। इसलिए कुलपतियों को निर्देशित करने का कार्य राजभवन का है। लगभग प्रदेश के सभी कुलपति तीन साल तक का कार्यकाल पूर्ण कर चुके हैं। यहां तक कुछ कुलपति तो दूसरी पाली पूरी करने वाले हैं।

क्या हैं कुलपति के अधिकार
मप्र विवि अधिनियम 1973  की धारा 15, अधिनियम 5 और परिनियम 27 के तहत कुलपति कभी भी किसी भी कालेज और उनके विवि से संबद्धता प्राप्त संस्थान का अकस्मिक निरीक्षण कर सकता है। उनकी स्थिति को देखते हुये उनकी संबद्धता तत्काल समाप्त करने का अधिकार कुलपतियों को दिया गया है। सिर्फ वे कालेज और संस्थानों की सेवा शर्तों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं।

जबकि सीएम चौहान कहते हैं कि कुलपति दौरे क्यों नहीं कर सकते, कॉलेज का निरीक्षण क्यों नहीं कर सकते। कुलपति क्रिएटिव भूमिका में आए। उनके लिए विश्वविद्यालय से बाहर जाना भी जरूरी है। देखे कि शिक्षण कैसा हो रहा है। तभी शिक्षा के उद्देश्य पूरे हो सकेंगे।

सीएम दे चुके हैं फाइव सी का मंत्र
शिवराज ने शिक्षण में फाइव सी का मंत्र दिया है इसमें क्रिटिकल थिंकिंग, क्रिएटिविटी, कोलैबरेशन, क्यूरोसिटी और कम्युनिकेशन महत्वपूर्ण है। प्रोफेसर और लेक्चररों का प्रशिक्षण भी आवश्यक है। वाइस चांसलर करें मॉनीटरिंग,मूल्यांकन और मार्गदर्शन दें। विश्वविद्यालयों को शोध के केंद्र के रूप में कार्य करना चाहिए।

 

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