एरी (अरंडी के पौधा) से उत्पादित कोकून से भी बनता है रेशम

रायपुर
अद्वितीय आभा वाले झिलमिलाते रेशमी वस्त्र जहां विलासिता, मनोहरता और विशिष्टता का घोतक है, वहीं रेशम को वस्त्रों की रानी के नाम से भी संबोधित किया जाता है। छत्तीसगढ़ राज्य की विशिष्ट पहचान यहां का कोसा और रेशम उत्पादन तथा वस्त्र निर्माण है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और वन क्षेत्रों में रेशम का उत्पादन बहुतायत से होता है। राज्य शासन द्वारा हॉल ही में राजीव गांधी किसान न्याय योजना के अंतर्गत एरी (अरंडी के पौधा) सिल्क कोकून के उत्पादन को भी सम्मिलित किया गया है।

छत्तीसगढ़ राज्य में टसर (कोसा) दूरस्थ ग्रामीण अंचलों में प्रमुख रोजगारोन्मुखी उद्योग के तौर पर विकसित हो चुका है। बस्तर में प्राकृतिक साल वृक्षों पर नैसर्गिक कोसा फल'रैली के संग्रहण से आदिवासी जाति-जनजातियों के समुदाय को आर्थिक लाभ होता है। इसी तरह राज्य के लगभग सभी जिलों में पालित प्रजाति के डाबा कोसा के कृमिपालन का कार्य अर्जुन एवं साजा के वृक्षों पर होता है। अरंडी के पौधे छत्तीसगढ़ में बहुतायत से होते है और इसमें रेशम पालन (एरी) की अच्छी संभावनाए छिपी हैं। छत्तीसगढ़ में इसी तरह साजा, अर्जुन और शहतूत के पौधों पर भी कोसा कृमि पालन का कार्य किया जाता है। ये रेशमकीट अपना जीवन को बनाए रखने के लिए सुरक्षा कवच के रूप में कोसों-कोकुन का निर्माण करते हैं।

रायपुर के कसारे वन्या सिल्क मिल में एरी सहित विभिन्न प्रजाति के पौधों से प्राप्त ककूनों को आधुनिक मशीनों के माध्यम से उत्कृष्ट कोटि के रेशम धागे बनाने का कार्य किया जाता है। संस्था के डायरेक्टर डी.एस. कसारे ने गत् दिवस मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात कर राजीव गांधी किसान न्याय योजना के अंतर्गत एरी सिल्क कोकून के उत्पादन को सम्मिलित किये जाने पर आभार व्यक्त किया। उन्होंने यह भी बताया कि केन्द्रीय सिल्क बोर्ड के सिल्क समग्र-2 के अंतर्गत छत्तीसगढ़ में 10 हजार एकड़ क्षेत्र में एरी कोकून की खेती के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया है। राज्य में एरी सहित विभिन्न प्रकार के रेशम उत्पादन की व्यापक संभावनाएं मौजूद है।

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