चंबल रेल पुल का होगा मेटालाइजिंग,कुछ गर्डर बदले जायेंगे

ग्वालियर
ग्वालियर-धौलपुर रेल खंड पर मौजूद चंबल रेल पुल का 133 साल में पहली बार धातुकरण (मेटालाइजिंग) किया जाएगा। इस पुल के डाउन ट्रैक पर निचले हिस्से में लगे लोहे के गर्डर व फर्श पर जंग लग चुकी है, वहीं कुछ गर्डर को बदले जाने की आवश्यकता है। इसको देखते हुए अब रेल मंडल झांसी के ब्रिज डिवीजन ने 5.91 करोड़ रुपये की लागत से इस पुल का मेंटनेंस करने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए टेंडर भी जारी कर दिए गए हैं। धातुकरण होने के बाद अगले 20 साल तक इन गर्डरों पर जंग नहीं लगेगी और इनकी आयु बढ़ जाएगी।

डाउन ट्रैक पर पुल के निचले हिस्से में लगे 61-61 मीटर लंबे गर्डरों में 14 स्थानों पर बुरी तरह से जंग लग गई है। पूरे ट्रैक पर ये कुल 854 मीटर लंबे गर्डर हैं, जो जंग की चपेट में हैं। चूंकि इन्हीं गर्डरों पर ट्रैक और ट्रेन का भार रहता है, इसलिए मरम्मत कराना आवश्यक है। इसको देखते हुए रेलवे ने अब नई तकनीक के जरिए पुल का मेंटेनेंस कराने की तैयारी की है। इस नई तकनीक को धातुकरण कहा जाता है। इसमें पहले गर्डरों को घिसकर उन पर से जंग हटाई जाएगी। इसके बाद इन गर्डरों पर एल्युमिनियम के घोल का पेंट किया जाएगा। इसके बाद दूसरी परत प्राइमर और तीसरी परत के रूप में लोहे पर लगने वाला सामान्य पेंट किया जाएगा। एल्युमिनियम की परत चढ़ जाने के बाद गर्डरों पर लंबे समय तक जंग नहीं लग सकेगी। रेलवे के अफसरों का दावा है कि इसके चलते आगामी 20 वर्षों तक ये गर्डर जंग से बचे रहेंगे। इसके लिए रेलवे ने 5.91 करोड़ रुपये के अनुमानित मूल्य का टेंडर जारी किया है और आगामी 10 फरवरी को ये टेंडर खोले जाएंगे। कार्य का ठेका लेने वाली कंपनी को एक साल के अंदर कार्य पूरा करना पड़ेगा।

-1889 में चालू हुआ था ट्रेनों का आवागमन-

चंबल पुल का निर्माण रेलवे व ब्रिटिश आर्मी की इंजीनियरिंग विंग ने मुरैना-धौलपुर के बीच चंबल नदी पर किया गया था। यह पुल वर्ष 1889 में बनकर तैयार हो गया था और इस पर ट्रेनों का परिचालन शुरू हुआ था। साल 1934 में पुल पर पटरियों का गेज परिवर्तन हुआ। पुल का रीन्यूअल दिसंबर 1934 में पूरा हुआ। साल 1990 में इस पुल के पास दूसरे ट्रैक के लिए एक और रेल पुल बनाया गया था। पुल के पास लगे एक शिलालेख के अनुसार पुल को बनाने वाली इंजीनियरिंग टीम में डब्ल्यूसी फर्निवाल, मेजर सीजे मेड, कर्नल बोनस आरई, एच बेल, सी चेयने, एडी टोच शामिल थे। इस टीम ने चंबल पुल के इस पुल के स्ट्रक्चर को 'सुपर स्ट्रक्चर' नाम दिया था।

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