इंदौर जिले में 22 नई ग्राम पंचायतें बनी ,अब ग्राम पंचायतों की संख्या 334

 इंदौर
प्रदेश में ग्राम पंचायतों के परिसीमन की प्रक्रिया पूरी हो गई है। परिसीमन के बाद इंदौर जिले में 22 नई ग्राम पंचायतें बन गई हैं। इस तरह जिले में अब ग्राम पंचायतों की संख्या 334 हो गई है। आगामी त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव में अब इन 334 ग्राम पंचायतों में चुनाव कराए जाएंगे। जिला प्रशासन द्वारा कराए गए परिसीमन के तहत सर्वाधिक आठ ग्राम पंचायतें देपालपुर जनपद पंचायत क्षेत्र में बनने जा रही हैं। इसके अलावा सांवेर में छह, महू में पांच और इंदौर जनपद पंचायत क्षेत्र में तीन नई ग्राम पंचायतों का गठन होगा।

अब इंदौर जनपद पंचायत में श्रीराम तलावली, धरनावद और जलोद केऊ नई पंचायतें होंगी। देपालपुर जनपद पंचायत में गारी बिल्लोदा, खरसोदा, पलासिया पार, पेमलपुर, पिपलोदा, दंसारी, दतोदा और सिंगावदा नई ग्राम पंचायतें बनी हैं। इसी तरह सांवेर जनपद पंचायत में हांसाखेड़ी, शाहदा, बावलियाखेड़ी, खांकरोड़, जैतपुरा और बारोली ग्राम पंचायतें बनाई गई हैं।

महू जनपद पंचायत में अंबाड़ा, कुमठी, पानदा, पिपल्या मल्हार आैर रामपुरिया नई ग्राम पंचायत बनाई गई हैं। नए परिसीमन के अनुसार देपालपुर जनपद में 108, सांवेर जनपद में 81, इंदौर जनपद में 67 और महू जनपद पंचायत में 78 ग्राम पंचायतें हो चुकी हैं। जिला पंचायत की मुख्य कार्यपालन अधिकारी वंदना शर्मा ने बताया कि परिसीमन के बाद जो नई पंचायतें बनी हैं, उसके अनुसार ही मतदाता सूचियों को भी संशोधन किया जा रहा है। मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण का काम भी चल रहा है।

 

आरक्षण और परिसीमन के मुद्दे पर पिछले साल निरस्त हुआ था चुनाव

वर्ष 2014 में हुए पंचायत चुनाव के समय इंदौर जिले में 312 ग्राम पंचायतें थीं। पूरे प्रदेश में पंचायतों का पांच साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद वर्ष 2019 में कांग्रेस की कमल नाथ सरकार ने नया परिसीमन कराया था, तब तय मापदंडों के आधार पर पूरे प्रदेश में कई नई ग्राम पंचायतें अस्तित्व में आई थीं। उस समय इंदौर जिले में 59 नई ग्राम पंचायतें बनाई गई थीं। इसी परिसीमन के आधार पंचायत चुनाव कराए जाने थे, लेकिन राजनीतिक अंतर्विरोधों के कारण कांग्रेस सरकार गिर गई। इसके बाद वापस भाजपा की सरकार बनी।

तब गत वर्ष राज्य शासन ने पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण के बिना और वर्ष 2019 के परिसीमन के बजाय वर्ष 2014 के पुराने परिसीमन के आधार पर ही चुनाव कराने का प्रस्ताव राज्य निर्वाचन आयोग को भेजा। इसके आधार पर चुनाव प्रक्रिया शुरू भी हो गई। ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को छोड़कर अन्य वर्गों की सीटों पर उम्मीदवारों ने नामांकन-पत्र भी दाखिल कर दिए थे। पर इससे अजीबोगरीब स्थिति बन गई थी।

कांग्रेस ने इसे संवैधानिक मुद्दा बनाकर न्यायालय में याचिका दायर की थी। इसे लेकर संवैधानिक संकट खड़ा हो गया। भाजपा के ही कई ग्रामीण नेताओं में भी इस अधकचरे चुनाव को लेकर असहमति थी। भारी जद्दोजहद के बाद राज्य शासन ने स्वयं ही पुराने परिसीमन के आधार पर चुनाव कराने का अपना प्रस्ताव वापस ले लिया। इसके बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव निरस्त कर दिए।

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