भारत के सबसे स्वच्छ शहर में महिला सफाई कर्मचारियों के स्वास्थ्य को खतरा

 

            (  शुरैह नियाज़ी )

मध्यप्रदेश के सबसे बड़े शहर इंदौर  के मुख्य बाजार राजवाड़ा इलाके में सुबह लगभग 6:00 बजे श्रीमती माया मुन्नालाल सड़कों की सफाई करने में लगी है. शहर का यह इलाका इंदौर नगर निगम के वार्ड 58 का हिस्सा है.
लगभग 47 वर्षीय माया हर सुबह  5:30 बजे तैयार होकर इस इलाके में सफाई के लिए झाड़ू लेकर निकलती है. सबसे पहले वो आकर उपस्थिती रजिस्टर में अपनी उपस्थिती दर्ज कराती है. उनकी हाजिरी अंगूठे से लगती है. उसके बाद वो सुबह 6 बजे  से लेकर 2 बजे  तक मुख्य सड़क पर अपने काम में जुट जाती है. इस इलाके में उनका काम लगातार चलता रहता है जिसकी निगरानी के लिए सुपरवाइजर राकेश चौहान है.
माया ने बताया, ”हमें लगभग 800 मीटर के क्षेत्र की सफाई की जिम्मेदारी है जो हम 2 बजे तक पूरा करते है. इस दौरान हमें अपने पूरे क्षेत्र को देखना पड़ता है कि कही कोई गदंगी तो नही छूट गई है.”

माया न सिर्फ सफाई कर्मचारी है बल्कि वो इन्दौर शहर की एक ऐसी महिला है जिनकी वजह से लगभग 30 लाख की आबादी वाला यह शहर  पिछले छह साल से सफाई में देश में नंबर एक के मुकाम पर खड़ा है.
देश में सफाई में नंबर एक मुकाम रखने वाले शहर में सफाई तो देखी जा सकती है लेकिन एयर क्वालिटी का स्तर काफी ख़राब है.  सफाई में जुटे रहने वाली माया इन सब से बेख़बर है.
इंदौर को लगातार देश का सबसे स्वच्छ शहर घोषित किया जा रहा है लेकिन यहां हवा की गुणवत्ता का स्तर बहुत खराब है. क्लीन एयर कैटेलिस्ट के अनुसार, "3.4 मिलियन की आबादी के साथ, इंदौर राज्य का वाणिज्यिक केंद्र और सबसे अधिक आबादी वाला शहर है”.
इंदौर शहर भारत सरकार के परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं कर रहा है. वायु प्रदूषण को अनुशंसित स्तर तक कम करने से प्रति व्यक्ति औसतन 4.4 साल का जीवन बचाया जा सकता है.
क्लीन एयर कैटेलिस्ट, यू एस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट द्वारा शुरू किया गया एक प्रमुख कार्यक्रम है और वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट और एनवायरमेंटल डिफेंस फंड इंक के नेतृत्व में संगठनों की एक वैश्विक साझेदारी है जो शहर के वायु प्रदूषण के मूल कारणों से निपटने के लिए इंदौर नगर निगम और मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ काम कर रही है.
जब उनसे इसके बारे में पूछा गया तो उन्होंने इस सवाल का जवाब सीधे सीधे न देना ही बेहतर समझा , “ हमें इसके बारे में नही पता है. हमें कोई परेशानी नही है. कभी कभार बीमार हो जाते है लेकिन वो तो सभी होते है.”
लेकिन दिन में 8 घंटे शहर की मुख्य सड़क पर गुजारते हुए श्रीमती माया जैसी अनेक सफाईकर्मी  महिलायें सड़कों पर हर तरह के प्रदूषण का सामना करती है. माया की तरह शहर में 8 हज़ार से ज्यादा सफाई मित्र है जो शहर को साफ रखने में दिन रात जुटे रहते है. इनमें से अधिकतर महिलायें ही सड़क में सफाई करती है और शहर के बढ़ते प्रदूषण का सामना करती है.
इन महिलाओं से जब पूछा गया कि उनके पास किसी किस्म का प्रोटेक्टिव इक्विमेंट है तो उन्होंने कहा कि उन्हें वह मिलता है लेकिन इंदौर के किसी भी स्थान में हमें उसका इस्तेमाल करते हुये कोई महिला नही मिली.
आमतौर पर अस्थायी नौकरी होने की वजह से यह महिलायें खुलकर अपनी बात नही रख पाती है. लेकिन इसी क्षेत्र में काम करने वाली एक अन्य महिला ने नाम न छापने की शर्त पर यह बात स्वीकार की कि उन्हें श्वास संबंधी कई तरह की दिक्क़ते आती है.
उन्होंने बताया, “इसके अलावा हमारे पास अजीविका का कोई साधन नही है. तीन बेटिया है अगर यह काम नही करेंगे तो उन्हें खिलायेंगे क्या.”
राजवाड़ा क्षेत्र के सुपरवाइज़र राकेश चौहान ने बताया, “ स्थाई सफाई कर्मियों को 30 हजार ,  मस्टर पर काम करने वाले सफाई कर्मियों को 8 हजार और विनियमित सफाई कर्मियों को लगभग 17 हजार प्रति माह  वेतन मिलता है. प्रत्येक सफाई कर्मी को लगभग 800 मीटर एरिया साफ करने की जिम्मेदारी दी जाती है.”
मस्टर के तहत एक निश्चित अवधि के लिए निश्चित रोजगार पर मजदूरों को काम पर रखा जाता है. वही विनियमित कर्मचारी वो होते है जिन्हें जरुरत पड़ने पर बुलाया जाता है.
वार्ड 59 में काम करने वाली संगीता बाई पिछले 30 सालों से सफाई का काम कर रही है.
50 साल से ज्यादा की हो चुकी है संगीता बाई शुगर की मरीज भी हैं.
उन्होंने बताया, “ कुछ छोटी-छोटी बीमारियां हैं. कभी-कभी सांस लेने में भी दिक्कत होती है और खांसी भी होती रहती है. लेकिन काम तो हर मौसम में करना ही पड़ता है.”
करीब से गुज़र रही गाड़ियों से निकलने वाले धुयें से वो बेख़बर है. उन्होंने मान लिया है कि इससे उनका कुछ नुकसान नही हो सकता है.
यहां यह बताना जरूरी होगा कि शहर के महात्मा गांधी मेडिकल कालेंज ने वर्ष 2017 में सेनिटेशन कर्मचारियों के स्वास्थ्य को लेकर एक स्टडी की थी. इस स्टड़ी के आधार पर यह निष्कर्ष निकला था कि शहर में सफाईकर्मी का काम करने वाली ज्यादातर महिलायें है. इनमें से 96 प्रतिशत किसी न किसी एक या उससे अधिक बीमारियों का सामना कर रही है. इनमें सबसे प्रमुख रेस्पारेटरी प्रोबाल्म था जिससे स्टडी में शामिल 87 प्रतिशत लोग सामना कर रहे थे.
इस स्टडी से यह भी पता चला था कि 85 प्रतिशत सफाई कर्मचारियों को प्रोटेक्टिव इंक्वपमेंट की जानकारी थी लेकिन एक भी उनमें से इस्तेमाल करते हुये नही पाये गये.
98 प्रतिशत ने यह कहा था कि अगर उन्हें प्रोटेक्टिव इंक्वपमेंट दिया जाता है तो वो उसका जरुर इस्तेमाल करेंगे.
लगभग 200 लोगों पर की गई  इस स्टडी से साफ है कि सड़कों पर काम करने वाली यह महिलायें वायु प्रदूषण के चलते विभिन्न बीमारियों का सामना कर रही है. वही इसमें यह भी पता चला कि सिर्फ 57 प्रतिशत कर्मचारियों ने अपनी बीमारी के लिये डाक्टरों की मदद ली.
सफाई कर्मियों से इंदौर शहर में अरविंदो अस्पताल , महू नाका चौराहा ,  बापट चौराहा , परदेसीपुरा , सत्य साईं चौराहा , विजयनगर , पलासिया चौराहा सहित अलग-अलग इलाकों में बात करने के दौरान हमने यह देखा कि किसी भी सफाई कर्मी को मास्क या ग्लव्स सहित अन्य प्रदूषण से बचने के साधन उपलब्ध नहीं कराए गए थे.
सुपरवाइजर राकेश चौहान ने यह बताया कि, " हम साल में एक दो बार सफाई कर्मियों का स्वास्थ्य परीक्षण भी करवाते हैं. " वे यह नहीं बता पाए कि स्वास्थ्य परीक्षण में कितनी सफाईकर्मी महिलाओं को कोन कोन सी बीमारी होने की जानकारी सामने आई।
वही हाल ही में किया गया  पर्यावरण मंत्रालय का सर्वे बताता है कि इंदौर देश के उन 37 शहरों में शामिल है जिसमें  वायु की गुणवत्ता में पिछले चार सालों में कमी आयी है.
इस सर्वेक्षण में पाया गया कि वर्ष  2017 और  वर्ष 2021 के बीच की अवधि के दौरान शहर की हवा में पीएम 10 (लगभग 10 माइक्रोमीटर व्यास वाले इनहेलेबल कण) का स्तर बढ़ गया है.
अध्ययन वायु प्रदूषकों के स्रोतों को हटाने पर ध्यान देने के साथ समग्र प्रदूषण नियंत्रण की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है, जो केवल शहरों और सड़कों पर सतह की सफाई के माध्यम से नहीं किया जा सकता है.
यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (एक्यूएलआई) की रिपोर्ट बताती है कि भारत दुनिया का दूसरा  सबसे प्रदूषित देश है. हवा में 55.8 µg/m3 की औसत कणिकीय सांद्रता के साथ, भारत का प्रदूषक स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों से लगभग 11 गुना अधिक है. इंदौर शहर ने स्वच्छता के मामले में तो बहुत नाम , इनाम हासिल किया लेकिन अब जरूर यहां की हवा में फैले प्रदूषण को कम करने की है। देश के सबसे  स्वच्छ शहर में साफ हवा के लिए  भी सबको मिलकर काम करने की है.
वही इस बारें में भोपाल स्थित राज्य क्षय रोग अस्पताल के प्रमुख डा. लोकेंद्र दवे मानते हैं कि  सफाई के काम में लगे सभी कर्मचारियों  के लिये हर माह स्वास्थ्य शिविर लगाए जाएं .
उन्होंने कहा, “इसमें स्वयंसेवी संस्थाओं और दवा कंपनियों का भी सहयोग लिया जा सकता है। हमारे शहर में ऐसी अनेक सामाजिक संस्था और दवा कंपनियां हैं जो इस सेवाकार्य में सहयोग के लिए तैयार हैं। हमें उनके साथ तालमेल करके स्वास्थ शिविर आयोजित करना होंगे.  कर्मचारियों को मास्क, गलोब्ज़ जैसी चीज़ों के नियमित  इस्तेमाल के बारे में बताना होगा।
डा. दवे के अनुसार सफाईकर्मियों में स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता पैदा की जाय क्योंकि अभी ज्यादातर कर्मचारी सफाई करते हुए धूल , धुआं , से बचाव के साधनों का उपयोग नहीं करते हैं ।
वे धूल ,धुआं के कारण होने वाली बीमारियों के बारे में नहीं जानते । उनको बेहतर स्वास्थ्य के लिए जागरूक करना होगा। जागरुकता के ज़रिये ही माया मुन्नीलाल और संगीता बाई जैसी  महिलाओं और सभी सफाईकर्मियों  की ज़िंदगी में सुखद  बदलाव लाया जा सकता है. सफाईकर्मी रोगमुक्त रहेंगे तो अपना काम अच्छे से कर सकेंगे।
इन सबके बीच यह जरुरी है कि नगर निगम इंदौर इन महिलायों के लिये हर माह स्वास्थ्य शिविर लगायें और इनमें मास्क, गलोब्ज़ जैसी चीज़ों के इस्तेमाल के प्रति भी जागरुकता पैदा करें.  जागरुकता के ज़रिये ही माया मुन्नीलाल और संगीता बाई जैसी महिलाओं की ज़िंदगी में बदलाव लाया जा सकता है.

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