रविवार को राज्यसभा में पेश होंगे किसान बिल, अब होगी नैरेटिव की राजनीति

नई दिल्ली
मोदी सरकार रविवार को राज्यसभा में एक और सियासी जंग लड़ने उतरेगी। किसान बिलों को पास कराने के लिए एनडीए सरकार को एक बार फिर विपक्षी खेमे को भेदना होगा। पिछले कुछ सालों में केंद्र सरकार ऐसा करने में कई अहम मौकों पर सफल रही है। लेकिन इस बार चुनौती कठिन है। ऐसा तब जब अपने भी इस बिल के विरोध में खड़े हैं। साथ ही चूंकि मामला किसानों से जुड़ा है और कई किसान संगठन भी विरोध में है, सरकार सिर्फ नंबर की बदौलत इसे पास कराने की हड़बड़ी नहीं दिखाएगी। सूत्रों के अनुसार सरकार सतर्क रुख अपनाएगी और अधिक विरोध दिखेगा तो इसे सिलेक्ट कमिटी को भेजने के विकल्प पर भी विचार कर सकती है। वहीं विपक्ष इस मामले पर नंबर गेम से अधिक नैरेटिव की राजनीति की ओर बढ़ना चाहती है। विपक्ष के एक सीनियर नेता ने एनबीटी से कहा कि संभव है कि सरकार नंबर जुटाकर बिल को पास करवा ले लेकिन वे इसे किसान विरोधी बताने के लिए जनता के बीच जाएगी और बिल पास होने के बाद और आक्रामक रूप से इसे जनता के बीच घेरेंगे।

ये है गणित
राज्यसभा में गणित के हिसाब से एनडीए का पलड़ा भारी है। अभी बीजेपी के पास 86 सांसद है जबकि समर्थन करने वाले दलों को मिला लें तो इनकी संख्या 104 है। अकाली दल के तीन सांसद ने पहले ही बिल का विरोध करने का एलान कर दिया है। बहुमत के लिए 122 सांसदों के समर्थन की जरूरत है। ऐसे में बाकी 18 की संख्या एनडीए को जुटानी है। सरकार के हर बिल का अब तक समर्थन करने वाली टीआरएस ने बिल का विरोध करने का ऐलान कर दिया है। पार्टी के 7 सांसद है। लेकिन सरकार को असली उम्मीद बीजेडी के 9 सांसद, एआईएडीएमके के 9, वाईएसआर कांग्रेस के 6 सांसदों से है। इन सांसदों ने अपना रुख अभी तक साफ नहीं किया है। अगर इन दलों ने समर्थन दे दिया तो बिल आसानी से पास हो जाएगा। वहीं बात करें विपक्ष की तो विरोध करने वाले सांसदों की संख्या 102 है। लेकिन इस बार मामला इसलिए उलझन भरा है क्योंकि डेढ़ दर्जन कोविड के कारण अनुपस्थित रह रहे हैं। इनमें कौन-कौन से सांसद रविवार को मौजूद रहेंगे इससे भी बिल का भविष्य तय होगा।

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