चुनाव में दिखा नक्सल क्राइम का क्लाइमैक्स, जब स्टेट पर हुआ था अल्ट्रा लेफ्ट का अटैक

नई दिल्ली 
बात लगभग 15 साल पुरानी है. तारीख थी 13 नवंबर 2005. शहर जहानाबाद. वक्त रात के तकरीबन 9 बज रहे थे. रविवार होने की वजह से मार्केट में यूं ही रफ्तार कम थी. ये वो दौर था जब बिहार में घरों में बिजली होना लग्जरी एहसास था. अधिकांश शहर अंधेरे में था. लोग उनींदी हालत में थे और सोने ही जा रहे थे. इधर बिहार की सरकारी मशीनरी ने आज ही (13 नवंबर 2005) तीसरे चरण का मतदान संपन्न करवाया था. वोटिंग अमूमन शांतिपूर्ण रही और प्रशासन ने चैन की सांस ली थी, अब बस आखिरी चरण का मतदान रह गया था. लेकिन ये चैन महज कुछ पलों का था. जहानाबाद इस रात के सन्नाटे में एक ऐसे अनापेक्षित उपद्रव और हिंसा का इंतजार कर रहा था, जो युद्ध सरीखा था और इससे दिल्ली में गृह मंत्रालय, पटना में राजभवन और जहानाबाद में जिला मुख्यालय तक ताप बढ़ाने वाला था.

खामोशी से लक्ष्य की ओर बढ़े 1000 जोड़ी पैर
13 नवंबर 2005 की उस शाम को जहानाबाद शहर में जैसे ही धुंधलका छाया, लगभग 1000 जोड़ी निगाहें चौकस हो उठीं, ये लोग शहर में अलग अलग जगह पर थे. शहर में अंधेरा होते ही एक हजार जोड़ी पैर खामोशी के साथ अपने-अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे थे. इस दस्ते ने अपने साथ बड़ी संख्या में स्वचालित मशीनगन और राइफलें छिपा रखी थीं.  उस रात को याद करते हुए जहानाबाद जेल से लगभग 500 मीटर दूर रहने वाले शहरी देवेंद्र नाथ शर्मा कहते हैं, "मैं अपने दोस्तों के साथ घर के बाहर सड़क पर टहल रहा था, रात के 8.30 बज गए होंगे. तभी मोटरसाइकिल पर दो लोग आए और हमारे सामने रुक गए. उन लोगों ने हमसे कहा, आप लोग घर के अंदर चले जाइए." देवेंद्र नाथ शर्मा चौक गए, इस बेवजह की दखल से उनका भी बिहारी अभिमान जाग उठा. वे अड़ गए, बहस की और कहा, 'क्यों भाई आप कौन होते हैं? क्या बिगाड़ा है आपका?' लेकिन सामने वाले की आंखों में इतना टेरर और कनविक्शन था कि वे डर गए. उन्होंने अपनी छठी इंद्री की बात मानी और घर के अंदर चले गए. 

रही-सही बिजली भी गुल कर दी
इस बीच माओवादियों के जिस दस्ते के पास अपने साथियों की सुरक्षा का जिम्मा था वे बिजली ऑफिस पहुंचे और बंदूक की नोंक पर सारे शहर की बिजली कटवा दी. इसके बाद तो जिन सरकारी संस्थानों में थोड़ी-बहुत बिजली थी, वहां भी अंधेरा पसर गया. इधर पुलिस लाइन को घेरकर नक्सलियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. माओवादियों की मंशा पुलिस मैगजीन में रखे हुए हथियारों को लूटने की थी. अचानक फायरिंग से पुलिस लाइन में तैनात संतरी हड़बड़ा गए, लेकिन उन्होंने बिना देर किए मोर्चा संभाल लिया. बाद में राज्य के तत्कालीन गृह सचिव एचसी सिरोही ने कहा कि हथियारों को लूटने की नक्सलियों की कोशिश नाकाम रही.

गोलियों की रोशनी से चमक उठा जहानाबाद का अंधेरा आसमान
कुछ मिनट ही गुजरे होंगे कि देवेंद्र नाथ शर्मा का शक सही साबित हुआ. जहानाबाद पुलिस लाइन के पास एक जोरदार धमाका हुआ. लोग बाहर निकले तो एक टायर में ब्लास्ट हुआ था. 9 बजते बजते सारे शहर में धांय-धांय की आवाज गूंजने लगी. बम फटने लगे. लगा मानों किसी ने हमला कर दिया हो. जहानाबाद जेल, पुलिस लाइन, जिला जज आवास, सहजानंद कॉलेज पर एक साथ फायरिंग हुई, धड़ाधड़ बम फेंके जाने लगे. जहानाबाद का अंधेरा आसमान गोलियों की रोशनी से चमक उठा.

जेल के मेन गेट को ब्लास्ट कर उड़ाया
शहर के मध्य में स्थित जहानाबाद जेल रणभूमि बन चुकी थी. प्रतिबंधित सीपीआई (माओइस्ट) के गुरिल्लाओं ने जेल को चारों ओर से घेर लिया. पहला हमला जेल के मेन गेट पर किया गया. गेट को ब्लास्ट कर उड़ा दिया. यहां तैनात संतरी दुर्गा रजक ने जब इसका विरोध किया तो नक्सलियों ने उसकी हत्या कर दी. ये घटना अभूतपूर्व थी. बिहार में नक्सलियों का वर्चस्व था, सरकार, इंटेलिजेंस इस बात को मानती तो थी, लेकिन ये गुरिल्ला स्टेट की संप्रभुता को खुलेआम चुनौती देने की हालत में थे, इसका मुजाहिरा पहली बार हुआ. मिनटों में जहानाबाद जेल पर नक्सलियों का कब्जा हो गया. नक्सलियों की संख्या के सामने जेल प्रहरी बेबस थे. इस जेल में लगभग 600 कैदी थे, जिसमें दर्जनों नक्सलियों के साथी सहयोगी ही थे. बता दें कि तब जहानाबाद लाल आतंक का गढ़ हुआ करता था. इसलिए यहां पुलिस ने बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां की थीं और इन्हें इस जेल में बंद कर रखा था.  

रणवीर सेना के बड़े शर्मा और विशेश्वर राय का कत्ल
जेल में दाखिल होकर नक्सली चुन चुन कर अपने साथियों को ढूंढ़ रहे थे, उन्होंने वार्ड के दरवाजे खोल दिए और सभी कैदियों को आजाद कर दिया. इस जेल में पुलिस ने रणवीर सेना के भी कुछ बड़े नेताओं को कैद कर रखा था. नक्सलियों ने ऐसे दो कैदियों का कत्ल कर दिया. ये कैदी थे बड़े शर्मा और विशेश्वर राय. 

 

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