कांग्रेस-TMC के बीच तल्खी का दिख रहा असर, संसद में सरकार को घेरने में विपक्ष फेल
नई दिल्ली
कोरोना महामारी समेत तमाम मुद्दों पर संसद के बाहर सरकार को कठघरे में खड़ा करता रहा विपक्ष संसद में सरकार को घेरने में नाकाम रहा है। लोकसभा में कोरोना पर लगभग 12 घंटे की चर्चा में भी विपक्षी नेताओं के पास ऐसे कोई तर्क नहीं थे, जिससे कि सरकार को घेरा जा सके। दूसरी तरफ सत्तापक्ष के नेताओं ने विपक्ष को ही कठघरे में खड़ा कर साफ किया कि महामारी में अब तक सरकार के सारे प्रयास न केवल सफल रहे, बल्कि सारी दुनिया के लिए मिसाल भी बने हैं।
संसद का शीतकालीन सत्र आधा से ज्यादा गुजर चुका है, लेकिन विपक्षी तेवर सरकार को घेरने में सफल नहीं हो पाए हैं। बीते मानसून सत्र के बुरे अनुभवों से गुजरने के बाद संसद के शीतकालीन सत्र में लोकसभा में बेहतर कामकाज हो रहा है। सरकार अपना विधाई कामकाज निपटा रही है तो विपक्ष को भी अपने मुद्दों पर बहस करने का मौका मिल रहा है। हालांकि, सत्र के पहले विपक्ष ने जिन मुद्दों पर सरकार को घेरने की तैयारी की थी, उन पर वह सरकार को कठघरे में खड़ा नहीं कर पा रहा है। कोरोना का मुद्दा हो या महंगाई और नगालैंड का मुद्दा, विपक्षी नेताओं ने सरकार पर हमले तो किए, लेकिन वह ज्यादा प्रभावी नहीं दिखे। इसकी एक वजह कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के रिश्तों में आई तल्खी है।
ममता बनर्जी ने जिस तरह से विभिन्न राज्यों में अपना विस्तार करते हुए कांग्रेस के कई नेताओं को तृणमूल कांग्रेस में शामिल किया, उसका असर संसद में विपक्ष एकजुटता पर साफ दिखाई दे रहा है। हालांकि , सत्र में दो सप्ताह में विपक्ष को भी अपने मुद्दे उठाने का पर्याप्त मौका मिला है। इनमें कोरोना मुद्दे पर लगभग 12 घंटे तक बहस भी चली। इसमें विपक्ष के तमाम दिग्गज नेताओं ने हिस्सा लिया और उन्होंने तमाम सवाल भी खड़े किए, लेकिन वह एकजुट होकर सरकार को कठघरे में खड़ा नहीं कर पाए।
कोरोना पर कमजोर पड़ा विपक्ष
कोरोना पर तीन दिसंबर को लोकसभा में चर्चा में सरकार ने विपक्ष को मुद्दे उठाने के लिए पर्याप्त मौका भी दिया। नतीजा ये रहा कि कोरोना महामारी जैसे गंभीर विषय पर केवल 96 सांसदों ने अपनी बात रखी। हालांकि, इनमें भी विपक्ष के सवाल कमजोर रहे। चर्चा के दौरान कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कोरोना के डेल्टा वेरिएंट के बाद ओमीक्रोन को लेकर वैज्ञानिकों की चेतावनी का उल्लेख करते हुए कहा कि इसमें ज्यादा सावधानी बरतनी है। चौधरी ने आरोप लगाया कि सरकार ने स्वास्थ्य अनुसंधान और वैक्सीन उत्पादन पर काफी कम खर्च किया। इसका नतीजा सबके सामने है।
तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा ने कहा कि महामारी की शुरुआत हमारे यहां एक उत्सव के रूप में हुई। जब सरकार को टीकों का ऑर्डर देना था, तब प्रधानमंत्री ने हम सभी को बाहर इकट्ठा होकर थाली, ताली बजाने और मोमबत्ती जलाने के लिए प्रोत्साहित किया। सौगत राय ने 1962 भारत-चीन युद्ध से अपनी बात शुरू की। कहा कि हम तब भी युद्ध के मैदान में बिना तैयारी के चलते गए थे और आज भी वही स्थिति है। सांसद कल्याण बनर्जी ने वैक्सीनेशन के आंकड़ों पर सवाल उठाया। शिवसेना के सांसद विनायक राउत ने निजीकरण का मुद्दा उठाया। कहा कि कोरोना का निगेटिव असर रेलवे, एलआईसी और 26 सरकारी कंपनियों पर भी हो चुका है।
सत्ता पक्ष का पलटवार
सत्ता पक्ष से मोर्चा संभालते हुए भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने आंकड़ों के जरिए सरकार की तारीफ की और कांग्रेस पर तंज कसा। कहा कि हिमाचल प्रदेश में 100% लोगों को वैक्सीन का पहला टीका और 91% लोगों को वैक्सीन की दोनों खुराक लग चुकी है। गोवा, गुजरात में भी काफी तेजी से वैक्सीनेशन हुआ, लेकिन कांग्रेस शासित एक भी राज्य ऐसा नहीं है, जहां 90% से अधिक लोगों को वैक्सीन की एक डोज लग पाई हो।
भाजपा की सांसद डॉ. कीर्ति ने कहा कि प्रधानमंत्री ने टेस्टिंग, ट्रैकिंग और ट्रीटमेंट को आधार बनाकर लोगों को कोरोना से बचाया। भाजपा की प्रो. रीता बहुगुणा जोशी और रतन लाल कटारिया ने भी वैक्सीनेशन और टेस्टिंग के आंकड़ों के जरिए सरकार का जोरदार पक्ष रखा।
विपक्षी एकजुटता में कमी
इसी तरह नगालैंड की घटना को लेकर भी विपक्षी एकजुटता में कमी दिखी और वह प्रभावी ढंग से इस पर भी सरकार को कठघरे में खड़ा करता नहीं दिखा। हालांकि इसके पहले असम और मिजोरम के बीच टकराव की घटना भी हो चुकी थी। लोकसभा जब अगाथा संगमा ने अफस्पा को हटाने की मांग की तब भी विपक्षी एकजुटता नहीं दिख पाई। दूसरी तरफ सत्ता पक्ष के वक्ताओं ने विपक्ष के आरोपों पर जमकर पलटवार किए हैं।