प. बंगाल में जातीय समीकरण को साधने में जुटी बीजेपी और टीएमसी, बाहरी बनाम बंगाली और हिंसा बड़ा मुद्दा

 कोलकाता 
पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में इस बार स्थानीय मुद्दों से ज्यादा बाहरी बनाम बंगाली और हिंसा का मुद्दा छाया हुआ है। यही नहीं, पहली बार जाति का फैक्टर भी उभरकर सामने आया है। सत्तारूढ़ दल टीएमसी अपनी हर रैली में जहां बाहरी बनाम बंगाली को मुद्दा उठा रही है। वहीं, भाजपा हिंसा के मुद्दे पर ममता बनर्जी सरकार को घेर रही है। पश्चिम बंगाल चुनाव में 'बाहरी बनाम बंगाली' का मुद्दा भी प्रमुख रूप से सामने आया है। इसे बंगाली अस्मिता से जोड़कर देखा जा रहा है। ममता बनर्जी अपनी रैली में इस मुद्दे को उठाकर भाजपा को बंगाल से बाहर भेजने का नारा दे रही हैं। ममता बनर्जी 'बंगाल की बेटी' के नारे के साथ मैदान में हैं। माना जा रहा है कि टीएमसी ने इस नारे के साथ 'स्थानीय बनाम बाहरी' के मुद्दे पर बहस को और बढ़ाया है। इस नए नारे के साथ ममता बनर्जी की फोटो वाले होर्डिंग्स पूरे कोलकाता में लगाए गए हैं। दूसरी तरफ, इसके जवाब में भाजपा बंगाल के महानायकों को अपने से जोड़ कर दिखाने की कोशिश में जुटी हुई है। नेताजी सुभाष चंद्र की जंयती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दौरा और अमित शाह द्वारा रैली में टैगोर का जिक्र भाजपा की रणनीति बयां करती है।

राजनीतिक हिंसा
पश्चिम बंगाल चुनाव में इस बार चुनावी हिंसा भी एक बड़ा फैक्टर है। भाजपा जहां टीएमसी पर बंगाल की राजनीति को हिंसा में बदलने का आरोप लगा रही है। वहीं, ममता भाजपा पर सत्ता का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगा रही है। राज्य में हिंसा की वजह से ही इस बार 8 चरणों में चुनाव की घोषणा की गई है। बताया जा रहा है कि भाजपा चाहती थी कि चुनाव कई चरणों में हो ताकि चुनाव में हिंसा को रोका जा सके और बिना भय के माहौल में वोटर मतदान कर सकें। पिछली बार पश्चिम बंगाल में छह चरणों में चुनाव हुआ था। पश्चिम बंगाल में हिंसा की शुरुआत 70 के दशक में हुई जब सीपीएम उभर रही थी। फिर 90 के दशक के अंतिम वर्षों में तृणमूल ने सीपीएम को चुनौती दी थी। ‘बदला नहीं, बदला नहीं परिवर्तन चाहिए का नारा देकर ममता बनर्जी 2011 में राज्य की सत्ता में आई थीं।

जाति भी बड़ा फैक्टर
भाजपा और टीएमसी बंगाल की तमाम जातियों को साधने की कवायद में है। इसी कड़ी में मतुआ समुदाय जो बंगाल में अनुसूचित जनजाति की आबादी का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा है, इसे जोड़ने के लिए भाजपा हरसंभव कोशिश कर रही है। भाजपा के शीर्ष नेता मतुआ समुदाय के लोगों के घरों में जाकर भोजन कर रहे हैं और उन्हें सीएए कानून के तहत भारत की नागरिकता दिलाने का वादा भी कर रहे हैं। ममता बनर्जी भी मतुआ समुदाय को अपने साथ जोड़े रखने के लिए तमाम जतन कर रही हैं। पहले चरण के चुनाव के लिए जंगलमहल के जिलों को चुना गया है। जहां पर कुर्मी और आदिवासी समाज के वोट ज्यादा हैं। यहां पर पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को बढ़त मिली थी। मतुआ समुदाय का बंगाल की 70 विधानसभा सीटों पर असर हैं। बंगाल में खास तौर पर नदिया और उत्तर 24 परगना जिले में लगभग डेढ़ करोड़ मतुआ समुदाय के लोग रहते हैं।

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