किसान आंदोलन का बंगाल-असम समेत पांच राज्यों के चुनाव पर कितना पड़ेगा असर? 

नई दिल्ली 
तीन कृषि कानूनों की वापसी को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन के बीच पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव आरंभ होने वाले हैं। पश्चिम बंगाल, असम समेत इन पांच राज्यों में होने वाले चुनावों के लिए पिछले दिनों तारीखों का ऐलान हो चुका है, लेकिन इन चुनावों में किसान आंदोलन का असर कितना होगा और किसानों से जुड़े मुद्दे कितने हावी होंगे, इस पर संशय बना हुआ है। राज्यों की अब तक की चुनावी सरगर्मियों से ऐसा लगता है कि शायद ही किसानों से जुड़े मुद्दे इन चुनावों में उभर पाएं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि किसानों के मुद्दे चुनावों में ज्यादा असर नहीं डाल पाते हैं। क्योंकि किसान कोई चुनावी वर्ग नहीं है। बल्कि वह क्षेत्रीयता एवं जातीयता में विभाजित है। किसान भी क्षेत्रीय मुद्दों एवं जातीय मुद्दों पर बंटकर वोट करते हैं, न कि किसानों से जुड़े मुद्दों पर। इसलिए किसी तात्कालिक किसान आंदोलन का किसी क्षेत्र विशेष में थोड़ा-बहुत असर हो सकता है, लेकिन बड़े पैमाने पर कृषि से जुड़े मुद्दे चुनावी मुद्दे का रुप नहीं ले पाते हैं। न ही वह हार-जीत में निर्णायक भूमिका निभा पाते हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर सुबोध कुमार कहते हैं कि जिन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, वहां किसान आंदोलन का असर अप्रभावी रहेगा। हां, हालिया महंगाई का थोड़ा असर हो सकता है। कारण यह है कि इन राज्यों में एमएसपी मुद्दा नहीं है। दूसरे, बड़े किसान नहीं हैं। तीसरे उत्पादन उतना ही होता है जितनी खपत है। लेकिन यदि आज पंजाब, हरियाणा या उत्तर प्रदेश में चुनाव होंगे तो किसान आंदोलन का असर अवश्य दिखेगा। असम, तमिलनाडु, पुडुचेरी तथा केरल में प्रादेशिक मुद्दे ज्यादा हावी हैं। पश्चिम बंगाल में तृणमूल ने समय-समय पर किसान कानूनों को लेकर सरकार को घेरा है। इन कानूनों को लेकर संसद में भी तृणमूल आक्रामक रही है। वह इन कानूनों को केंद्र की तानाशाही से जोड़ रही है। लेकिन भाजपा तृणमल को किसानों के मुद्दे पर उल्टे कटघरे में खड़ा कर चुकी है कि तृणमूल सरकार द्वारा राज्य के 75 लाख किसानों को केंद्र सरकार की किसान सम्मान निधि का लाभ नहीं लेने दिया जा रहा है। इधर, किसान नेता राकेश टिकैत हालांकि पश्चिम बंगाल में किसान पंचायत करने का ऐलान कर चुके हैं। लेकिन ऐसी पंचायतों की सफलता और चुनाव में उसके प्रभाव को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है।

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