छत्रपति शिवाजी की 341वीं पुण्यतिथि: ऐसे थे छत्रपति शिवाजी, मुगलों को घुटने टेकने पर किया मजबूर

मुंबई
भारत के वीर सम्राटों में से एक मराठा साम्राज्‍य के संस्‍थापक और बहादुर योद्धा छत्रपति शिवाजी की आज (3 अप्रैल) 341वीं पुण्यतिथि है। भारत के सबसे उन्‍नतशील और विवेकशील शासकों में गिने जाने वाले मराठा वीर छत्रपति शिवाजी का जन्म 19 फरवरी, 1630 में हुआ था, उनका पूरा नाम शिवाजी राजे भोसले था। जन्म के लगभग 340 साल बाद आज ही के दिन उनका निधन हुआ था। इतिहास के पन्नों पर वीर छत्रपति शिवाजी का नाम सुनहरे अक्षरों से लिखा गया है, भारत को विदेशी ताकतों से बचाने के लिए उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी देश के नाम कुर्बान कर दी थी। बचपन से ही युद्ध में थी दिलचस्पी छत्रपति शिवाजी के निधन से लेकर आज तक पूरा देश अपने वीर सम्राट की याद में उनकी पुण्यतिथि पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता है। छत्रपति शिवाजी के शौर्य की गाथा देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी गूंजती है। 

उन्होंने मराठा नेवी के कई विदेशी रियासतों को युद्ध में जीता था। आपको बता दें कि छत्रपति शिवाजी को शिवाजी महाराज के नाम से भी संबोधित किया जाता है। उन्हें बचपन से ही युद्ध में हिस्सा लेने का बहुत शौक था। उनके पिता का नाम शाहजी और माता का नाम जीजाबाई था। खेल-खेल में सीख ली किले को जीतने की कला शिवाजी महाराज ने अपनी जिंदगी में अनेकों लड़ाइयां लड़ी, उन्होंने किलों का निर्माण और पुनरूद्धार भी करवाया। छत्रपति शिवाजी की शादी सइबाई निम्बालकर के साथ 14 मई, 1640 में लाल महल, पुना में हुआ था। जैसा कि हमने बताया शिवाजी बचपन से ही युद्ध में भाग लेते थे, वह इलाके के बच्चों को इकट्ठा कर उनके साथ युद्ध का खेल-खेला करते थे, इस दौरान उन्होंने किले को जीतने की कला भी सीख ली। बचपन से लेकर युवावस्था तक आते-आते शिवाजी महाराज अस्त्र-शस्त्र विद्या में भी निपुण हो चुके थे। 

शत्रुओं के किले पर लहराया परचम उन्होंने अपनी वीरता का परिचय देते हुए शत्रुओं पर आक्रमण करके उनके किले पर परचम लहराया। शिवाजी महाराज ने पुरंदर और तोरण जैसे किलों पर विजय पताका फहराया जिसके बाद दक्षिण में उनके नाम और शौर्य की धूम मच गई। शिवाजी प्रभावशाली कुलीनों के वंशज थे। उस समय उत्तर भारत के अधिकतर क्षेत्र में मुगलों का शासन था। एक तरफ जहां दक्षिण में शिवाजी महाराज के नाम की गूंज थी वहीं दिल्ली-आगरा तक उनकी वीरता की खबरों ने मुस्लिम शासकों की नींदे उड़ा दी थीं। छोटी सी उम्र में आदिलशाह के किले पर किया कब्जा उधर, छत्रपति शिवाजी की बढ़ती शक्तियों के बीच बीजापुर में बहमनी सल्तनत के सूबेदार युसूफ आदिलशाह बीमार पड़ा तो बीजापुर में अराजकता फैल गई। शिवाजी ने इस मौके का फायदा उठाते हुए छोटी सी उम्र में ही बीजापुर पर चढ़ाई करने का फैसला किया। इस युद्ध में उनकी विजय हुई और शिवाजी ने टोरना किले पर कब्जा कर लिया। शिवाजी से मिले घाव को आदिलशाह भूल नहीं सका और उसने 1659 में सेनापति को शिवाजी को मारने के लिए भेजा। दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ जिसमें शिवाजी महाराज विजयी हुए। 

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