सरकारी पेंशन से निहाल हो रहे बिहार के एमएलए-एमएलसी 

 दिल्ली 
बिहार में वर्तमान में राज्य में ऐसे 991 पूर्व विधायक हैं जिनके खाते में सरकारी कोष से प्रतिमाह पेंशन के तौर पर 4,94,44000 रुपये की रकम भेजी जाती है। पेंशन किसे और कितना मिलेगा इसके नियमों पर सवाल उठ रहे हैं। बिहार में विधायक (एमएलए) या विधान पार्षद (एमएलसी) बने नेता वेतन-भत्ते और दूसरी सुविधाओं के नाम पर एक लाख 35 हजार रुपये तो पाते ही हैं, हार जाने या दोबारा नहीं चुने जाने पर भी कई सुविधाओं के अलावा बतौर पेंशन वे या उनके आश्रित आजीवन अच्छी-खासी रकम के हकदार हो जाते हैं। इनके पेंशन निर्धारण का तरीका भी अजीबोगरीब है। 

भारत में सांसद या विधायक रहते वेतन और सुविधाएं मिलने का प्रावधान तो है ही, चुनावी हार या दूसरे कारणों से भूतपूर्व हो जाने पर भी उन्हें पेंशन और कई सुविधाएं आजीवन मिलती हैं। निधन हो जाने के बाद उनके आश्रित को भी आजीवन पारिवारिक पेंशन मिलता है। विश्व के अनेक देशों में जनप्रतिनिधियों को वेतन और सुविधाएं मिलती है जिसे निर्धारित करने का अधिकार अलग संस्थाओं को रहता है। इसके लिए उम्र और सेवा की सीमा निर्धारित है। ब्रिटेन जैसे देश में इसके लिए आयोग का गठन किया गया है, किंतु भारत में सांसद व विधायकों की सुविधाओं के संबंध में क्रमश: संसद व विधानसभाएं ही निर्णय लेतीं हैं। एक से अधिक पेंशन के हकदार देशभर में कर्मचारी से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज तक को केवल एक पेंशन मिलती है। किंतु, सांसद व विधायक इसके अपवाद हैं। 
 
वे एक या उससे अधिक पेंशन पाने के हकदार हैं। ऐसे में अगर कोई राजनेता एक बार विधायक बनता है और उसके बाद फिर सांसद बन जाता है तो उसे विधायक की पेंशन के साथ-साथ लोकसभा सांसद का वेतन और भत्ता मिलता है। इसके बाद अगर वह किसी सदन का सदस्य नहीं रह जाता है तो उसे विधायक के पेंशन के साथ-साथ सांसद का पेंशन भी मिलता है। बिहार में एक एमएलए या एमएलसी को 35,000 की राशि न्यूनतम पेंशन के तौर पर मिलती है। लेकिन यह एक साल विधायक रहने पर ही मिलती है। इसके बाद वह जितने साल विधायक रहते हैं, उतने वर्ष तक हर साल उनके पेंशन में तीन-तीन हजार रुपये तक की बढ़ोतरी होती है। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि अगर कोई व्यक्ति पांच साल तक एमएलए रहता है तो उसे एक साल के लिए 35,000 तथा अगले चार साल के लिए अतिरिक्त 12,000 रुपये अर्थात कुल 47,000 रुपये मिलेंगे। 

Back to top button