कोरोना के कम केस को देखते हुए क्या अब हर राज्य को खोल देने चाहिए स्कूल?

 नई दिल्ली 
 शिक्षा को कोरोना से बहुत नुकसान हुआ है, अत: स्कूल, कॉलेज को पूरी तरह से खोलने की बेचैनी बहुत बढ़ गई है। दुनिया के दूसरे देशों के क्या अनुभव हैं? हमारे यहां क्या इतनी सुविधा है कि हम निश्चिंत होकर कॉलेज में सीधी पढ़ाई को पूरी तरह सामान्य बना दें? विशेषज्ञ मानते हैं कि जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहिए, यह फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाने का समय है। पेश है शोधकर्ता आमिर उल्लाह खान की रिपोर्ट.. संभलकर चलने की जरूरत : भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों में धीरे-धीरे रौनक लौटने लगी है।

बिहार: बिहार में अगस्त में ही स्कूल-कॉलेज खोलने की कोशिश शुरू हो गई थी। अभिभावकों पर जिम्मेदारी है। हाजिरी जरूरी नहीं। ज्यादातर संस्थान खुल गए हैं, लेकिन कोरोना संबंधी दिशा-निर्देशों की पालना आसान नहीं है। अगर छठ पूजा के समय तक हालात सामान्य रहे, तो तमाम शिक्षा संस्थान 15 नवंबर से सामान्य रूप से खुलने लगेंगे।

उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश में एक सितंबर से ही स्कूल-कॉलेज को पूरी तरह से खोलने को लेकर सुगबुगाहट तेज है। अभी कॉलेज में हाजिर होने की बाध्यता नहीं है। पचास प्रतिशत से ज्यादा उपस्थिति को मंजूरी नहीं है। छात्रावासों में छात्रों की वापसी नहीं हुई है। ज्यादातर अभिभावक बहुत सचेत हैं, क्योंकि जोखिम लेने की जिम्मेदारी उन्हीं पर है।

दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय के सभी कॉलेज 15 सितंबर से खुल गए। हालांकि, केवल अंतिम वर्ष के यूजी और पीजी छात्रों को कॉलेजों के अंदर जाने की अनुमति दी गई। करीब डेढ़ साल बाद अब कॉलेजों में रौनक लौट रही है, लेकिन नवरात्र और दीपावली के बाद ही कॉलेजों में छात्रों की उपस्थिति बढ़ेगी और पढ़ाई सामान्य होगी।

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