PM मोदी की घोषणाओं से ग्लास्गो में जलवायु मोर्चे पर भारत को बढ़त, विकसित देशों के लिए चुनौती

नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लास्गो में जलवायु खतरों से निपटने के लिए भारत की महत्वाकांक्षी कार्ययोजना पेश की है। उन्होंने पांच अमृत के नाम से जो पांच घोषणाएं की हैं उससे विश्व में भारत को एक बार फिर जलवायु मोर्च पर बढ़त हासिल हो गई है। भारत की इस पहल के बाद विकसित देशों पर भी अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने का दबाव बढेगा। एक दिन पहले ही जी-20 देशों द्वारा सदी के मध्य तक शून्य कार्बन उत्सर्जन के ऐलान के बाद दुनिया की नजरें भारत की तरफ थी क्योंकि समूह में कुछ ही देश रह गये थे जिन्होंने अभी तक शून्य उत्सर्जन पर पत्ते नहीं खोले थे। बहरहाल 2070 तक भारत को शून्य कार्बन उत्सर्जन राष्ट्र बनाने की मोदी की पहल को बेहद सुलझा हुआ कदम माना जा रहा है। इस प्रकार भारत को कार्य करने के लिए 50 वर्ष का समय भी मिल जाएगा। 

भारत ने सिर्फ दूर का लक्ष्य रखकर अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं की है। उसने अपने कम अवधि के लक्ष्यों में भी बढोत्तरी की है। 2030 तक के लिए 4 लक्ष्य निर्धारित किये हैं। 2030 तक रिन्यूअल ऊर्जा के उत्पादन को कुल बिजली की खपत का 50 फीसदी तक करने का लक्ष्य रखा है जबकि मौजूदा कार्यक्रम के तहत इसे 40 फीसदी करना था। इसमें से भारत 2021 में ही 39 फीसदी क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य हासिल कर चुका है। भारत ने पूर्व में 2030 तक 450 गीगावाट रिन्यूअल ऊर्जा का लक्ष्य रखा था। इसमें अब तक अच्छी प्रगति हुई है। इसलिए पीएम ने इसे बढ़ाकर 500 गीगावाट कर दिया है।  तीसरा महत्वपूर्ण लक्ष्य 2030 तक उत्सर्जन की तीव्रता को 45 फीसदी तक कम करने का ऐलान किया है। पेरिस समझौते के तहत भारत ने इसमें 33-35 फीसदी कमी की घोषणा की थी। लेकिन भारत इस लक्ष्य के बड़े हिस्से 23 फीसदी को पहले ही हासिल कर चुका है। चौथी घोषणा 2030 तक एक अरब टन कार्बन उत्सर्जन कम करने का है। जलवायु मोर्चे पर भारत की इन घोषणाओं को बेहद अहम माना जा रहा है। भारत का अब तक का काम भी अच्छा रहा है। 

जी 20 देशों में भारत ही एकमात्र ऐसा देश था जो दो डिग्री तापमान बढोत्तरी की राह पर था। बाकी तमाम देश तीन या इससे भी अधिक बढोत्तरी की ओर बढ़ रहे थे। लेकिन इन नई घोषणाओं के बाद भारत तापमान को डेढ डिग्री की बढोत्तरी तक सीमित रखने की ओर अग्रसर होगा। इंटरनेशनल सोलर एलायंस के प्रमुख डा अजय माथुर ने कहा कि इन घोषणाओं से भारत को जलवायु मोर्चे पर विश्व को एक बार फिर नेतृत्व प्रदर्शित करने का अवसर मिला है। विशेषज्ञों के अनुसार भारत के इस कदम का असर विकसित देशों पर भी पडेगा और वह जलवायु वित्त पोषण को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को पूरी करेंगे। डबल्यूआरआई की विशेषज्ञ उल्का केलकर ने कहा कि भारत को इन घोषणाओं को साकार करने के लिए जलवायु पर निवेश बढ़ाना होगा। 

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