ममता बनर्जी अखिलेश यादव को कर रही हैं मोरल सपॉर्ट

लखनऊ
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की। इस तीसरी जीत उनके लिए बेहद खास है। बंगाल में बीजेपी को करारी मात देने के बाद उनके हौसले और बुलंद कर दिए हैं। ममता बनर्जी की पार्टी ने दिल्ली चलो का नारा दिया है और टीएमसी पूरे देश में पार्टी का विस्तार करने में जुट गई है। त्रिपुरा और गोवा के साथ ममता बनर्जी ने उत्तर प्रदेश पर फोकस करना शुरू कर दिया है। हालांकि यहां पर उनकी रणनीति गोवा और त्रिपुरा से अलग है। उन्होंने यहां अखिलेश यादव को मोरल सपॉर्ट के साथ अपनी पैठ बनानी शुरू की है।

गोवा और त्रिपुरा जैसे छोटे राज्यों में पार्टी के प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में टीएमसी विधानसभा चुनाव में एंट्री लेने जा रही है। पार्टी ने कांग्रेस के पूर्वांचल में बड़ा ब्राह्मण चेहरा ललितेशपति त्रिपाठी को पार्टी जॉइन कराई है। 100 साल से गांधी परिवार की करीबी ललितेश के टीएमसी में जाने से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है।

उत्तर प्रदेश में ममता बनर्जी ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने की संभावना है। यूपी में उनका जनाधार नहीं है। वह जानती हैं कि अगर वह किसी प्रत्याशी को टिकट देती हैं तो उसका जीतना फिलहाल नामुमकिन है। इसलिए वह अखिलेश यादव को मोरल सपॉर्ट कर रही हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यूपी विधानसभा चुनाव 2022 तो सिर्फ बहाना है। ममता बनर्जी विधानसभा चुनाव के बहाने अपने लोकसभा चुनाव 2024 की पिच तैयार कर रही हैं। विधानसभा चुनाव में वह क्षेत्रीय दलों को समर्थन करेंगी और लोकसभा चुनाव में वह इन दलों से समर्थन मांगेंगी।

टीएमसी के दिल्ली विस्तार योजना के पीछे ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी और प्रशांत किशोर की रणनीति मानी जा रही है। हालांकि टीएमसी सूत्रों के अनुसार ममता बनर्जी की राष्ट्रीय राजनीति में आने की यह हसरत अचानक नहीं उमड़ी है। 2017 से ही इसका बैकग्राउंड बन रहा है। 2016 में 8 नवंबर को जब पीएम मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की, तो ठीक एक घंटे बाद सबसे पहले करारे विरोध के साथ पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी मैदान में उतर आईं।

नोटबंदी की घोषणा के 48 घंटे के बाद भी कांग्रेस सहित दूसरे विपक्षी दल राजनीतिक नफा-नुकसान के आकलन में जुटे थे, लेकिन ममता ने सारी हिचक छोड़कर इस घोषणा को नरेंद्र मोदी पर हमला करने का सबसे बड़ा हथियार बना लिया। तभी से वह केंद्र सरकार की सबसे प्रखर आलोचकों में रहीं। लेकिन बाद में जब बीजेपी ने उनको उनके ही राज्य में घेरने का प्लान बनाया, तो ममता पहले अपने दुर्ग को बचाने में लग गईं। लोकसभा में बीजेपी ममता का किला ढहाने में बहुत हद तक सफल भी रही, लेकिन विधानसभा चुनाव में टीएमसी फिर मजबूत होकर उभरी। इसके बाद ममता ने अपने सुस्त पड़े मिशन को असरदार ढंग से आगे बढ़ाया।

पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणाम के बाद ही कहा जा रहा है कि देश में अब मोदी के खिलाफ सिर्फ ममता बनर्जी ही मजबूती से लड़ सकती हैं। कांग्रेस और सोनिया गांधी को मोदी के खिलाफ मोर्चे का विकल्प नहीं माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि ममता के सियासी सपने के आड़े कांग्रेस न आए इसलिए वह कांग्रेस के नेताओं को तोड़ने में जुट गई हैं। यही वजह है कि ललितेशपति त्रिपाठी को उन्होंने टीएमसी में शामिल कराया है।

ममता देश की इकलौती महिला मुख्‍यमंत्री हैं और विपक्ष उनमें 2007 की मायावती देख रहा है। तब यूपी का विधानसभा चुनाव जीतीं मायावती को भी प्रधानमंत्री पद का उम्‍मीदवार बताया जाने लगा था। ये बात दीगर है कि 2012 के बाद से मायावती की ताकत फिर यूपी तक ही सिमट कर रह गईं। वहीं यूपी में भी उनका जनाधार कम होता गया। कहा जाता है कि 2007 में जनता ने उनके ऊपर विश्वास जताया लेकिन वह खुद को राज्य की सीएम से ज्यादा एक दलित नेता तक ही सीमित करके रह गईं, जिसका खामियाजा उन्हें 2012 के चुनाव में भुगतना पड़ा।

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