बुंदेलखंड का बदलता मिजाज सियासी दलों के लिए बड़ी चुनौती

लखनऊ

बुंदेलखंड की धरती सियासी दलों के लिए हमेशा से बड़ी चुनौती रही है। यहां की जनता का बदलता मिजाज किसी  को झटका दे जाता है तो किसी को अर्श पर पहुंचा देता है।  यही कारण है कि केवल 19 विधानसभा सीटों वाले इस इलाके में अपनी जड़ें बनाए रखने के लिए जहां भाजपा एड़ी चोटी जोर लगा रही है,तो वहीं सपा, बसपा व कांग्रेस के रूप में विपक्ष पहले से मौजूद चुनौतियों को पार पाने की कोशिश में है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कई चुनावी सौगातों के साथ यहां कई बार दौरा कर चुके हैं। इसमें जलजीवन मिशन की महत्वाकांक्षी परियोजना से लेकर डिफेंस कारीडोर व बुंदेलखंड  एक्सप्रेसवे के जरिए उद्योग- कारोबार बढ़ाने वाली योजनाओं को रफ्तार देना शामिल है। भाजपा ने यहां अपनी जीत को बरकरार रखने के लिए खास रणनीति बनाते हुए जातीय व क्षेत्रीय समीकरणों को भी दुरुस्त किया है।

अखिलेश यादव के लिए बुंदेलखंड सबसे कमजोर कड़ी है। इसीलिए उन्होंने यहां पूरा फोकस करते हुए अपनी विजय रथयात्रा का पहला चरण कानपुर-बुंदेलखंड में गुजारा और अब पांचवे चरण में भी वह अपनी रथयात्रा लेकर इस इलाके में घूम रहे हैं। उन्होंने  महिलाओं की पांच सौ रुपये वाली पेंशन तिगुनी करने का चुनावी वायदा भी यहीं से किया है।  जब सपा  ने 224 सीटें लेकर यूपी में सरकार बनाई थी तब उसे इस इलाके में महज पांच सीटें ही मिली थीं। यही नहीं तब बुंदेलखंड के हमीरपुर, ललितपुर, महोबा  में तो उसका खाता तक नहीं खुला था। उससे पहले 2007 के चुनाव में सपा केवल 6 सीट जीत पाई थी। एक वक्त बसपा का मजबूत किला रहा बुंदेलखंड अब इस पार्टी की धमक कुछ कमजोर सी हुई है। फिर भी बसपा यहां प्रबुद्ध सम्मेलन कर अपनी सक्रियता बढ़ाई है। कांग्रेस महासचिव  प्रियंका गांधी ने पिछले महीने ही चित्रकूट जाकर चुनावी अभियान चलाया।

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