केंद्र पर फारूक अब्दुल्ला ने लगाए जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग की रिपोर्ट को टालने के आरोप

जम्मू
नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष डा. फारूक अब्दुल्ला ने परिसीमन आयोग की रिपोर्ट को लाने के बजाए टालने पर केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि सरकार विधान सभा चुनाव नहीं करवाना चाहती। जिसके चलते परिसीमन की रिपोर्ट को बार-बार स्थगित किया जा रहा है। लेकिन उपराज्यपाल शासन और नौकरशाही से लोग तंग आ चुके हैं। लोकतंत्र के लिए नौकरशाही, तानाशाही उचित नहीं है। उन्हें भी परिसीमन कमेटी में रखा गया है लेकिन आज तक उनसे कमेटी ने कोई बात नहीं की। उन्हें किसी बात को लेकर भी विश्वास में नहीं लिया गया है। हालांकि जानकारी अनुसार रिपोर्ट तैयार है। इसे 6 मार्च 2022 तक लागू करना था लेकिन बार-बार इसे टाला जा रहा है।

डा. फारूक अब्दुल्ला ने शेर-ए-कश्मीर भवन में जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस ओबीसी सेल के एक दिवसीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा आयोग के सदस्य होने के नाते उन्हें न तो आमंत्रित किया गया और न ही कोई प्रारंभिक रिपोर्ट दिखाई गई। डा. अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोग अब और इंतजार नहीं कर सकते क्योंकि लोकप्रिय सरकार का कोई विकल्प नहीं है। सत्तावादी और नौकरशाही शासन के कुशासन के कारण लोगों ने अपना धैर्य खो दिया है। चुनावों का कोई विकल्प नहीं हो सकता। जिस तरह से सरकार परिसीमन रिपोर्ट में देरी कर रही है। ऐसा लगता है कि निकट भविष्य में चुनाव कराने का उनका कोई इरादा नहीं है। उन्होंने सरकार द्वारा लगातार झूठे वादों के लिए सरकार को आडे़ हाथों लिया और कहा कि ऐसा रवैया देशहित में नहीं है। सबसे जरूरी है कि मीडिया की स्वतंत्रता बनी रहे।

मीडिया को निष्पक्ष और निडर हो कर काम करने दिया जाना चाहिए। आज मीडिया दबाव में काम कर रहा है। जिसके चलते आम जनता गुमराह हो रही है। उन्होंने कहा कि प्रेस को पूर्ण स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए एक कानून लाने का आह्वान किया। सिर्फ ऐसा कुछ भी रिपोर्ट नहीं किया जाना चाहिए जो सांप्रदायिक सद्भाव और भाईचारे को खतरे में डाल सके। उन्होंने हमेशा स्वतंत्र मीडिया को प्रोत्साहित किया है क्योंकि यह लोकतंत्र का सार है। अन्य पिछड़े समुदायों के लिए आरक्षण की वास्तविक मांग की पुरजोर वकालत करते हुए डा. अब्दुल्ला ने कहा कि समाज के हाशिए के वर्गों को बढ़ने और समृद्ध होने के लिए समान अवसर प्रदान करने के लिए यह अनिवार्य है। उनके युवाओं के लिए आरक्षण आवश्यक है क्योंकि उन्हें भी डॉक्टर, इंजीनियर बनकर राष्ट्र के प्रति योगदान देने का अधिकार है और इसी तरह के आरक्षित वर्ग जैसे उच्च पदस्थ अधिकारी इसका लाभ उठा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि समाज के कमजोर वर्गों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति उनके फलने-फूलने के लिए लीक से हटकर उपाय करने की मांग करती है। उन्होंने पात्र ओबीसी आबादी के लिए एकमुश्त श्रेणी प्रमाणपत्र का भी समर्थन किया और प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने का आह्वान किया। उन्होंने कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान की गई पहल की सराहना की और कहा कि ओबीसी बोर्ड के गठन का विवेकपूर्ण निर्णय समाज के इन वर्गों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में एक लंबा रास्ता तय करेगा। फारूक अब्दुल्ला ने महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण पर भी जोर दिया और कहा कि निर्णय लेने में उनकी भूमिका समाज के सामंजस्यपूर्ण विकास के लिए अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को लोकतांत्रिक संस्थानों के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में भी समान अवसर मिलने चाहिए क्योंकि वे किसी से पीछे नहीं हैं। उन्होंने महिलाओं से आगे आने और निर्णय लेने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का भी आग्रह किया। जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा और राज्य का दर्जा देने के संबंध में ओबीसी सेल द्वारा पारित प्रस्तावों का उल्लेख करते हुए डा. फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि लोग प्रतिबद्धता की भावना के साथ अपने अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि वे सभी तूफानों का सामना करेंगे और जो उनसे छीन लिया गया है। उसे वापस पाने के लिए दृढ़ रहेंगे।

 

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