शिव पूजन में मुद्राओं का प्रयोग पूजा को बनाता है सफल

नई दिल्ली
भगवान शिव वैसे तो मानसिक पूजन से ही प्रसन्न होने वाले देव हैं लेकिन शास्त्रों में समस्त देवी-देवताओं के पूजन की तरह शिव पूजन के लिए भी मुद्राओं का प्रयोग करना बताया गया है। पूजन में मुद्राओं का प्रयोग करने से पूजन की सफलता में कोई संदेह नहीं रह जाता है। शिव पूजन में दस प्रकार की मुद्राएं प्रयुक्त की जाती हैं।

हृदय मुद्रा : दोनों हाथ की मुठ्ठियां बंदकर अंगूठों को बाहर निकालें और उन्हें मिलाकर हृदय का स्पर्श करें। . शिरो मुद्रा : तर्जनी को अलग रख मुठ्ठी बंद कर शिरोभाग का स्पर्श करें। शिखा मुद्रा : तर्जनी और कनिष्ठिका अंगुली को अलग रख बंद की गई मुठ्ठी से शिखा का स्पर्श करें। इस मुद्रा में तर्जनी नीचे की ओर तथा कनिष्ठिका उ‌र्ध्वमुखी रहती है। इसमें दोनों तर्जनी के तथा दोनों कनिष्ठिका के अगले भाग मिले हुए रहते हैं। इस शिखामुद्रा के द्वारा सर्वविघ्नों का शमन होता है। कवच मुद्रा : अंगूठों के अगले पर्व को मिलाकर तर्जनी को त्रिभुजाकार रूप देते हुए सिर से हृदय तक लाने से अभयदायक कवच मुद्रा बनती है। नेत्र मुद्रा : हाथों को नेत्रों के समीप ले जाकर कनिष्ठिका को अंगूठे से समाविष्ट कर दें। इसके बाद मध्यमा को सीधी रखकर शेष अंगुलियों को नीचे की ओर थोड़ा झुका देने से नेत्र मुद्रा बनती है। इस मुद्रा के द्वारा भूत पिशाचादि का निवारण होता है। अस्त्र मुद्रा : दोनों हाथों की हथेलियों से ताली बजाने से अस्त्र मुद्रा होती है।

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