अलौकिक कृष्णवटः कान्हा ने छुपाया था माखन, भगवान के स्पर्श से आज भी कटोरी-चम्मच बनकर उगते हैं पत्ते

सागर
 'कृष्णवट' धरती का वह चमत्कारिक वृक्ष है जो भगवान श्रीकृष्ण के बाल्यकाल में उनका पवित्र स्पर्श पाकर अलौकिक हो गया था। कान्हा ने मां यशोदा से छिपाकर एक बार इसके पत्तों में माखन रखा था, उस के बाद से इसका पत्ता-पत्ता भगवान के लिए समर्पित हो गया। आज भी "कृष्णवट" के पत्ते कटोरी-चम्मच का आकार लेकर उगलते हैं। सागर में डाॅक्टर हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय के वानस्पतिक उद्यान में यह पवित्र वृक्ष संरक्षित है। इसका वानस्पतिक नाम भी भगवान कृष्ण के नाम पर ''फाइकस कृष्नाई'' है।

‘‘फाइकस कृष्नाई‘‘ विवि के बाॅटनीकल गार्डन में संरक्षित मप्र के सागर में स्थित डॉ. हरिसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यायल के बॉटनीकल गार्डन में बाईं ओर कृष्णबट लगा है। विभाग के अधिकारियों के अनुसार करीब 6 दशक से अधिक समय से यह मौजूद है। इसे किसने कब कहां से लाकर लगाया गया था, इसकी पुख्ता जानकारी नहीं है। यह वृक्ष करीब 15 साल से जरा सा बढ़ पाया है। काफी धीमीगति से यह बढ़ रहा है। विभाग ने इसको संरक्षित करने व मानवीय हस्तक्षेप से बचाने तार की फेंसिंग कराई है।

भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का प्रत्यक्ष प्रमाण है द्वापर युग में भगवान की बाल्य लीलाओं के प्रत्यक्ष सबूत आज भी जगह-जगह मौजूद हैं। सागर विवि के वानस्पतिक गार्डन में लगा कृष्नाई वटवृक्ष (फाइकस कृष्नाई ) बीते 62 सालों से मौजूद है। इसके पत्ते कटोरीनुमा व पीछे की तरफ चम्मचनुमा होते हैं। धार्मिक मान्यता है कि माखन चोरी की लीलाओं के दौरान माता यशोदा की डांट से बचने के लिए बाल कृष्ण ने इसी वटवृक्ष के पत्तों में माखन रखकर उन्हें लपेट दिया था। जिसके बाद से इसके पत्ते भगवान के स्पर्श से कटोरी-चम्मच की तरह ही उगते हैं। माखन कटोरी वटवृक्ष नाम से भी पहचाना जाता है "फाइकस कृष्नाई" वृक्ष को देश के कई हिस्सों में माखन-कटोरी वटवृक्ष भी कहा जाता है। इसको लेकर अलग-अलग किवदंतियां व धार्मिक मान्यताएं बताई जाती हैं।

 एक मान्यता है कि माता यशोदा ने कान्हा को पहली दफा इसी वृक्ष के पत्तों में रखकर दधी-माखन खिलाई थी, जिसके बाद से इसके पत्ते आज तक माखन कटोरी-चम्मन के आकार के उगते हैं। ऑक्सीजन का भरपूर स्रोत, हमेशा हरा-भरा रहता है सागर के बॉटनिकल गार्डन में मौजूद इस कृष्ण वट का वैज्ञानिक महत्व का भी है। दरअसल फाइकस बेंगालेंसिस नाम के सोलानासि परिवार का यह पेड़ ऑक्सीजन का बढ़ा स्रोत है। ऑक्सीजन देने वाले तमाम वृक्षों में यह वृक्ष सबसे ज्यादा ऑक्सीजन छोड़ता है। रिसर्च के अनुसार बरगद व वटवृक्ष की प्रजाति में यह आॅक्सीजन जनरेटर का यह सबसे अधिक उत्पादक माना जाता है।
 

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