ब्रेकअप : भाषा में बदलाव से तीन महीने पहले पता चल जाएगा ब्रेकअप होने वाला-शोध

  ऑस्टिन
सबकुछ सही चल रहा था. शादी की प्लानिंग हो रही थी. दोनों एकदूसरे को बहुत प्यार करते थे. लेकिन अचानक एक दिन दोनों ने ब्रेकअप कर लिया. किसी को समझ में नहीं आया कि ये कैसे हुआ? क्यों हुआ? ब्रेकअप की वजह उन दोनों को भी पता नहीं चली. लेकिन अब वैज्ञानिकों ने नया तरीका खोजा है, जो तीन महीने पहले ही बता देगा कि आपका ब्रेकअप होने वाला है.  

ऑस्टिन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के रिसर्चर्स ने 6803 रेडिट यूजर्स के 1,027,541 पोस्ट की स्टडी की. इन लोगों ने सबरेडिट पोस्ट r/Breakups पर पोस्ट किया था. इसका मतलब ये है नहीं कि इनका ब्रेकअप हो रहा है. या होने वाला था. बात पोस्ट की नहीं है. बात उस भाषा की है, जिसका इस्तेमाल इन पोस्ट में किया गया था. ब्रेकअप शब्द दिमाग में आते ही पोस्ट की भाषा में बदलाव आ जाता था.

स्टडी करने वाले टीम की रिपोर्ट हाल ही में प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस में प्रकाशित हुई है. रिसर्चर्स ने ब्रेकअप से दो साल पहले और दो साल बाद के पोस्ट देखे. इस दौरान वैज्ञानिकों को पोस्ट की भाषा में बदलाव मिला. जिसका ब्रेकअप होने वाला होता है, उसकी भाषा तीन महीने पहले बदल जाती है. ब्रेकअप होने के छह महीने बाद तक भाषा में कोई बदलाव नहीं आता.

भाषा में मैं, हम जैसे शब्दों की मात्रा बढ़ जाती है. ऐसे शब्दों की मात्रा बढ़ जाती है, जो इंसान खुद के लिए इस्तेमाल करता है. जिसमें उसका तनाव दिखता है. उसका फोकस दिखता है. फिर ऐसी भाषा इस्तेमाल की जाती है, जिसके जरिए कई मतलब निकाले जा सके. लोगों की विश्लेष्णात्मक सोच कम हो जाती है. इंसान ज्यादा निजी और अनौपचारिक भाषा का बोलने या पोस्ट करने लगता है.

जैसे- उदाहरण के लिए…. मुझे नहीं पता कि मैं अपनी कहानी बताऊं या नहीं. मुझे मदद चाहिए क्योंकि मैं खुद को खोया हुआ महसूस कर रहा हूं. लेकिन मेरी कहानी लंबी है, मुझे ये भी नहीं पता कि इसे शेयर करना सही होगा या नहीं. इस तरह के बदलाव इंसानों में सामान्य तौर पर नहीं तब नहीं देखे जाते, जब वो अपने रिश्ते के बारे में किसी से बात करते हैं. लेकिन जब उनका मन बदलता है, या बदलने वाला होता है… तब ऐसी भाषा का इस्तेमाल होता है.

यह स्टडी करने वाली प्रमुख शोधकर्ती साराह सेराज ने बताया कि लोग पहले से जानते हैं कि उनका ब्रेकअप होने वाला है. लेकिन वो कभी भी अपनी भाषा पर ध्यान नहीं देते. इनका जीवन प्रभावित होना शुरू हो जाता है. हम इस बात पर ध्यान नहीं देते कि हम कितनी बार प्रिपोजिशन, आर्टिकल्स या प्रोनाउंस का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन हमारी सामान्य भाषा में इनकी मात्रा बढ़ जाती है. जिससे आपके मनोवैज्ञानिक स्थिति का पता चलता है.

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