NEET को लेकर केंद्र के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची तमिलनाडु सरकार

नई दिल्ली

NEET की परीक्षा को लेकर तमिलनाडु केंद्र सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर करके मेडिकल कॉलेज में ऐडमिशन के लिए सिंगल विंडो इंट्रेंस सिस्टम को संघीय ढांचे के खिलाफ बताया है। तमिलनाडु सरकार का कहना है कि यह संविधान के खिलाफ है और इससे राज्य के अधिकारों को कम किया जा रहा है। तमिलनाडु सरकार ने संविधान के आर्टिकल 131 के तहत केस किया है जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच के विवादों को सुलझाने के प्रावधान हैं.

इसके अलावा राज्य सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मिलने वाले बराबरी के अधिकार का भी उल्लंघन बताया है। राज्य का कहना है कि NEET की परीक्षा जिस सीबीएसई और एनसीईआरटी सिलेबस के अनुसार ली जाती है उससे ग्रामीण छात्रों को नुकसान उठाना पड़ता है। बहुत सारे स्टूडेंट कोचिंग में खर्च करते हैं। राज्य के बोर्ड में अच्छा स्कोर करने के बाद भी उन्हें मेडिकल कॉलेज में ऐडमिशन नहीं मिल पाता है।

राज्य की तरफ से कहा गया है, NEET की परीक्षा के जरिए संघीय ढांचे पर प्रहार किया जा रहा है और इससे राज्य के मेडिकल कॉलेज में सरकारी सीट देने के अधिकार का हनन होता है। राज्यों को ऐडमिशन के बारे में अधिकार मिलना चाहिए। तमिलनाडु ऐसा पहला राज्य है जिसने इस परीक्षा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। तमिलनाडु सरकार लंबे समय से इस मामले में केंद्र का विरोध करती रही है। सरकार का कहना है कि इससे तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में स्टेट बोर्ड से पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को बड़ा नुकसान हुआ है।

तमिलनाडु सरकार ने क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज बनाम भारत सरकार केस में 2020 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बात करते हुए कहा है कि राज्यों को राज्य के कॉलेज में ऐडमिशन का अधिकार मिलना चाहिए। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने NEET को इसलिए सही ठहराया था तैकि ऐडमिशन में आने वाली गड़बड़ियों से बचा जा सके।

बता दें कि NEET से पहले तमिलनाडु में अलग से एक कॉमन एंट्रेंस टेस्ट होता था जिसके जरिए राज्य के मेडिकल कॉलेज में ऐडमिशन होते थे। हालांकि इसके बाद 2006 से 12वीं की मेरिट के आधार पर ऐडमिशन शुरू हो गए। सीईटी राज्य के स्टेट बोर्ड के सिलेबस के आधार पर होता था।  

 

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