दिल्ली से मुंबई और हावड़ा रूट पर काल नहीं बनेंगी ट्रेनें, लगाए जा रहे ‘कवच’; 1.5 लाख करोड़ होंगे खर्च

 नई दिल्ली

रेलवे बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि दिल्ली-मुंबई (1542 किलोमीटर) और दिल्ली-कोलकाता (1469 किलोमीटर) रेलमार्ग पर गत वर्ष टक्कररोधी तकनीक कवच लगाने का काम शुरू हुआ है। वर्तमान में कुल 2011 किलोमीटर में से 1465 किलोमीटर रेलमार्ग पर कवच लगाने का काम पूरा कर लिया गया है। इस प्रकार दोनों रेलमार्ग के 72.84 किलोमीटर हिस्से पर कवच लगाया जा चुका है। अधिकारी ने बताया कि चालू वित्तीव वर्ष 2023-24 में 500 किलोमीटर रेलमार्ग पर कवच लगाने का लक्ष्य रखा गया है। इस प्रकार मार्च 2024 तक दोनों रेलमार्ग के कुल 2011 किलोमीटर लंबे हिस्से में से 97.71 पर टक्करोधी तकनीक लगा दी जाएगी। उन्होंने बताया कि अप्रैल 2024 के बाद दिल्ली-मुंबई व दिल्ली-कोलकाता रेलमार्ग पर प्रीमियम यात्री ट्रेनों को अधिकतम 130 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार पर चलाया जा सकेगा।

सभी प्रमुख रेलमार्गों पर लगाने की योजना
रेलवे बोर्ड के अधिकारी ने बताया, कवच तकनीक को दो के सभी प्रमुख रेलमार्गो पर लगाने की योजना है। बोर्ड ने दिल्ली-मुंबई व दिल्ली-कोलकाता के अलावा अन्य रेलमार्गो पर कुल 34,000 रेलमार्गो पर कवच तकनीकी लगाने की मंजूरी दे दी है। दक्षिण मध्य रेलवे के बीदर-परली-मनमाड-सिकंदराबाद-गुंतकल सेक्शन (1200 किमी) पर कवच लगाने का काम अंतिम चरण में है। 2022-23 के लिए 272.30 करोड़ कवच तकनीक लगाने पर खर्च किए गए। साल 2021-22 में कवच के लिए 133 करोड़ रुपये जारी किए गए थे। जानकारों का कहना है इस पर डेढ़ लाख करोड़ से अधिक धन खर्च होने का अनुमान है। जानकारों का कहना है इस पर डेढ़ लाख करोड़ से अधिक धन खर्च होने का अनुमान है।

‘कवच’ से लैस होती तो काल नहीं बनती कोरोमंडल एक्सप्रेस
रेलवे के प्रवक्ता अमिताभ शर्मा ने कहा, उड़ीसा में हादसे वाले रूट पर ‘कवच’ उपलब्ध नहीं था। वहीं, जानकारों का कहना है कि यदि यह रूट कवच से लैस होता को कोरोमंडल एक्सप्रेस काल नहीं बनती। कवच की घोषणा 2022 बजट में आत्मनिर्भर भारत पहल के एक हिस्से के तौर पर की गई थी। इस तकनीक के तहत कुल 2,000 किलोमीटर रेल नेटवर्क लाने की योजना थी।

क्या है कवच?
कवच में कई प्रकार की तकनीकी का समावेश किया गया है। इसमें एलटीई बेस्ड मोबाइल ट्रेन रेडियो कम्यूनिकेशन (एमटीआरसी) सिस्टम लगेगा। सुदूर छोटे दो स्टेशनों के बीच (सेक्शन)पर ट्रेनों का पता लगाने के लिए डाग्नोस्टिक एंड प्रीटेक्टिव सिस्टम, एडवांस मेनटेंस सिस्टम लगेगा। जबकि प्रमुख रूप से टे्रन प्रोटेक्शन एडं वार्निग सिस्टम (टीपीडब्लूएस) काम करेगा। इसमें टे्रन इंजन के कैब में लगी स्क्रीन पर सभी सिग्नल नजर आएंगे। पॉयलेट अपनी स्क्रीन पर आगे चल रही ट्रेन की रफ्तार का पता लगा सकेंगे। घने कोहरे, बारिश व खराब मौसम में टे्रनों की रफ्तार बनी रहेगी। कवच की विशेषता यह है कि इस तकनीक से ट्रेनों की आमने-सामने अथवा पीछे से टक्कर नहीं होती है। ऐसी स्थिति में कवच ट्रेन में ऑटोमैटिक बेक लगा देती है।

सिस्टम ऑटोमेटिक ब्रेक लगाने में सक्षम
कवच हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो संचार का उपयोग करता है और टक्करों को रोकने के लिए हमेशा अपडेट करने के सिद्धांत पर काम करता है। अगर ड्राइवर ट्रेन को नियंत्रित करने में विफल रहता है तो सिस्टम ट्रेन के ब्रेक को ऑटोमेटिक रूप से सक्रिय कर देता है। कवच सिस्टम से लैस दो लोकोमोटिव के बीच टकराव से बचने के लिए ब्रेक भी लगाता है।

पहचान के लिए पटरियों पर लगाए जाते हैं टैग
पटरियों की पहचान करने और ट्रेन और उसकी दिशा का पता लगाने के लिए आरएफआईडी टैग पटरियों पर और स्टेशन यार्ड पर लगाए जाते हैं। जब सिस्टम सक्रिय होगा तो 5 किलोमीटर के दायरे में सभी ट्रेनें बंद हो जाएंगी ताकि बगल के ट्रैक की ट्रेनें सुरक्षित रूप से गुजर सकें। ऑन बोर्ड डिस्प्ले ऑफ सिग्नल एस्पेक्ट (ओबीडीएसए) खराब मौसम के कारण दृश्यता कम होने पर भी लोको पायलटों को सिग्नल देखने में मदद करता है। आमतौर पर लोको पायलटों को सिग्नल देखने के लिए खिड़की से बाहर देखना पड़ता है।

दक्षिण मध्य रेलवे में हुआ था परीक्षण
रिपोर्ट के अनुसार कवच का परीक्षण दक्षिण मध्य रेलवे के लिंगमपल्ली-विकाराबाद-वाडी और विकाराबाद-बीदर सेक्शन पर किया गया था। सफल परीक्षणों के बाद, तीन वेंडरों को भारतीय रेलवे नेटवर्क पर इसे लगाने के लिए तय किया गया। कवच को नई दिल्ली-हावड़ा और नई दिल्ली-मुंबई सेक्शन पर लगाया जा रहा है, इस काम के पूरा होने का लक्ष्य मार्च 2024 है। सरकार ने 2022-23 के दौरान कवच के तहत 2,000 किलोमीटर रेल नेटवर्क लाने की योजना बनाई थी। इसका लक्ष्य है कि यह प्रणाली लगभग 34,000 किलोमीटर रेल नेटवर्क को कवर करेगी। पिछले साल मार्च में केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कवच का परीक्षण किया था।

 

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