राजकोट से लड़ेंगे मांडविया, जानिए, क्यों लग रही हैं अटकलें, पांच बड़े कारण

अहमदाबाद
 जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं। वैसे-वैसे राजनीतिक अटकलों का दौर तेज होता जा रहा है। गुजरात के राजनीतिक गलियारों में मजबूत चर्चा है कि इस बार सौराष्ट्र की सिसायत के केंद्र राजकोट (Rajkot Lok Sabha) से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया (Mansukh Mandaviya) चुनाव लड़ेंगे। मनसुख मांडविया के लोकसभा चुनाव लड़ने की अटकलों के पीछे कई कारण हैं। सबसे प्रमुख कारण है कि मांडविया वर्तमान में गुजरात से ही राज्यसभा के सदस्य हैं। उनका कार्यकाल अप्रैल, 2024 में पूरा हो रहा है। ऐसे में चर्चा है कि मांडविया (Mansukh Mandaviya) जो पाटीदार समुदाय से आते हैं। वे राजकोट से इस बार रण में उतर सकते हैं।

मांडविया (Mansukh Mandaviya) के हाल के दौरों से इसके संकेत मिलते हैं। गुजरात पर समुद्री आफत 'बिपरजॉय' के समय मनसुख मांडविया ने कच्छ मोर्चा संभाला था।बिपरजॉय संकट पर जब गुजरात ने जीत हासिल की तो मांडविया ने इस पूरे अभियान का श्रेय पीएम नरेंद्र मोदी के आपदा प्रबंधन में मॉडल को दिया। मांडविया ने कहा कि मोदी सरकार ने दुनिया को आपदा प्रबंधन एक मॉडल दिया है कि कैसे किसी भी चुनौती से निपटा जा सकता है। जानिए वे कौन से पांच कारण हैं जिनके चलते मांडविया के राजकोट से लड़ने की चर्चा हो ही है।

1. सशक्त दावेदार:
2009 के चुनाव को छोड़कर बीजेपी लगातार 1989 से राजकोट सीट पर जीत हासिल कर रही है। अभी वर्तमान में मोहनभाई कुंडारिया यहां से लोकसभा के सदस्य हैं। वे पिछली दो बार से चुनाव जीत रहे हैं। 2009 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा पहुंचे कुंवरजी बाविलया भी अब बीजेपी में हैं और वर्तमान भूपेंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। अगर यहां से मनसुख मांडविया (Mansukh Mandaviya) लड़ते हैं तो पाटीदार चेहरे के तौर पर कुंडारिया के सशक्त विकल्प हैं।

2. पीएम मोदी के भरोसेमंद
मनसुख मांडविया (Mansukh Mandaviya) गुजरात बीजेपी के उन नेताओं में शामिल हैं जिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत ज्यादा भराेसा करते हैं। 2002 में पहली बार विधायक बनने वाले मांडविया पीएम मोदी के कई मापदंडों पर खरे उतरते हैं। इसी के चलते वे न सिर्फ पीएम मोदी की गुडबुक में हैं, बल्कि उन्हें विश्वास भी हासिल है। कच्छ पर बिपरजॉय संकट के वक्त मांडविया ही मोर्चे पर थे। इससे पहले भी राज्य में कई बार उन्हें मुख्यमंत्री के मजबूत दावेदार के तौर पर भी देखा गया।

3. दो दशक में नहीं कोई दाग
एक बार विधायक और दो बार राज्यसभा सदस्य बनने के बाद केंद्र में मंत्री के तौर पर काम कर रहे मांडविया (Mansukh Mandaviya) की छवि बेदाग है। अभी तक उनके ऊपर एक भी आरोप नहीं है। जिससे उनकी छवि को कोई नुकसान पहुंचे। यह उनकी बड़ी मजबूती है। 2002 में पहली बार विधायक बने मांडविया राजनीति में 20 साल पूरे कर चुके हैं।

4. पढ़े-लिखे नेता की छवि
मनसुख मांडविया (Mansukh Mandaviya) की छवि एक पढ़े-लिखे नेता की है। मूलरूप से भावनगर से ताल्लुक रखने वाले मांडविया ने एम ए की पढ़ाई के बाद पीएचडी की डिग्री ली है। वे काफी टेकसेवी भी माने जाते हैं। गुजरात के राजकोट में बन रहा पहला एम्स उनकी ही निगरानी में बन रहा है। मांडविया कई बार इसका निरीक्षण भी कर चुके हैं। इसके चुनावों से पहले शुरू होने की उम्मीद है। इसके साथ रही राजकोट का एयरपोर्ट भी लोकसभा चुनावों से पहले शुरू हो जाएगा।

5. शालीन और समर्पित
पाटीदार समुदाय में लेउवा पटेल से आने वाले मनसुख मांडविया अन्य पाटीदार नेताओं से अलग हैं। वे बेहद लो-प्रोफाइल रहते हैं। अब तक के करियर में उनके कभी भी नाराज होने की बातें सामने नहीं आई हैं। वे पूरी तरह से पीएम मोदी और बीजेपी के लिए समर्पित माने जाते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि पार्टी अगर उनको कोई पद न दे तो भी वे काम करते रहेंगे। वे विधायक, एग्रो चेयरमैन, राज्य सभा सांसद बनने के बाद केंद्र में मंत्री हैं।

तीन पदयात्राएं कर चुके हैं मांडविया
1 जून, 1972 को जन्म मांडविया (Mansukh Mandaviya) ने 2004 में पहली बार तब सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने राज्य में 123 किलोमीटर कन्या केलावनी ज्योत पदयात्रा की थी। इसके बाद उन्होंने 2006 में 127 किमी की पदयात्रा की थी। दोनों यात्राएं बेटी बचाओं और बेटी पढ़ाओ के लिए समर्पित थीं। इसके बाद उन्होंने महात्मा गांधी की 150वें जन्मदिन पर 150 किलोमीटर की पदयात्रा की थी। इसमें उन्होंने पौधरोपण के साथ बापू के विचारों और प्रकृति को लेकर लोगों से बात की थी।

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