J&K की विधानसभा में कश्मीरी पंडितों और POK के शरणार्थियों के लिए होंगी 3 सीटें; क्यों टेंशन में विपक्ष

जम्मू-कश्मीर
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में परिसीमन के बाद गणित बदलने वाला है। इसके अलावा केंद्र सरकार की एक और तैयारी है, जिससे सीटों का गणित तो बदलेगा ही, विधानसभा भी बदली-बदली दिखेगी। दरअसल केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन ऐक्ट 2019 मे संशोधन की तैयारी कर रही है। इसे जल्दी ही लोकसभा में पेश किया जा सकता है। इसके तहत केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभा में दो सीटें हिंसा का शिकार होकर पलायन करने वाले कश्मीरी पंडितों के लिए तय होंगी। इसके अलावा एक सीट पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से विस्थापित हुए लोगों के लिए होगी।

इन तीनों ही सीटों के लिए कोई चुनाव नहीं होगा बल्कि तीनों सदस्यों को मनोनीत किया जाएगा। इन तीनों सदस्यों को उपराज्यपाल की ओर से नामित किया जाएगा। सरकारी सूत्रों का कहना है कि इस फैसले से राज्य में उपेक्षित और अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की सुरक्षा हो सकेगी। उन्हें उचित प्रतिनिधित्व मिल सकेगा। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर की सामाजिक और आर्थिक प्रगति भी जारी रहेगी। जम्मू-कश्मीर में परिसीमन भी चल रहा है। इसके चलते 107 सीटों से बढ़ाकर विधानसभा में 114 सीटें करने का फैसला लिया गया है।

इन 114 सीटों में 7 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित होंगी। अब तक कश्मीर में अनुसूचित जनजाति के नाम पर कोई आरक्षण नहीं था, लेकिन अब सरकार गुज्जर बकरवाल और पहाड़ी समुदाय के लोगों को इस कोटे के तहत विधानसभा भेजना चाहती है। गुज्जर बकरवाल खानाबदोश समुदाय है, जो अकसर सर्दियों के मौसम में जम्मू के आसपास रहता है, जबकि गर्मियां आते ही एक बार फिर से ऊंचे पहाड़ी इलाकों में अपनी भेड़ों और अन्य पशुओं को लेकर निकल जाते हैं। फिलहाल नामित सदस्यों को लेकर जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक बहसबाजी जोरों पर है।

विधानसभा में नामित सदस्यों की संख्या बढ़कर 5 हो जाएगी
इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में मनोनीत सदस्यों की संख्या बढ़कर 5 हो जाएगी। अब तक दो महिला सदस्य ही मनोनीत की जाती थीं। भाजपा का कहना है कि यह विधेयक इसलिए लाया जा रहा है ताकि जनजाति समुदायों के राजनीतिक हितों का संरक्षण किया जा सके। फिलहाल कश्मीर में चर्चा इस बात को लेकर है कि मनोनीत सदस्यों को सदन में भेजने की प्रक्रिया क्या होगी।

पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस को क्यों हो रही टेंशन
स्थानीय दलों का कहना है कि इसमें राज्य सरकार की सहमति जरूरी होनी चाहिए। केंद्र सरकार को इसका अधिकार नहीं मिलना चाहिए। पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसे दलों का कहना है कि मनोनीत सदस्यों की संख्या बढ़ाने और आरक्षण के जरिए भाजपा चुनी हुई सरकार में दखल रखना चाहती है। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में कश्मीर को कमजोर करना चाहती है।

 

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