बासमती गरीबों का चावल नहीं, फिर क्यों लगाया प्रतिबंध? किसानों के अंदर सुलग रहा नया गुस्सा; बैन हटाने की मांग

 नई दिल्ली

केंद्र सरकार ने पिछले महीने ही बासमती चावल के निर्यात पर सशर्त प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन अब किसान उसे हटाने की मांग कर रहे हैं। किसान इसके पीछे तर्क दे रहे हैं कि बासमती चावल गरीबों की भोज्य सामग्री नहीं है, इसलिए इस पर प्रतिबंध गैरवाजिब है। उनका तर्क है कि सरकार के न्यूनतम निर्यात मूल्य प्रतिबंध के कदम से सिर्फ बड़े व्यापारियों और राइस मिल मालिकों को फायदा हो रहा है।

इंडियन एक्सप्रेस ने इस बावत उत्तरी-पश्चिमी दिल्ली के दरियापुर कलां के 56 वर्षीय किसान सत्यवान सहरावत से बात की है, जिसमें उन्होंने कहा, “बासमती गरीबों का चावल नहीं है। इसके निर्यात पर प्रतिबंध क्यों लगाया है। ” सत्यवान ने लगभग 50 एकड़ ज़मीन पर बासमती की चार किस्में – पूसा 1847, 1692, 1509 और 1885 – लगाई हैं। 20 एकड़ जमीन उनकी अपनी हैं और बाकी पट्टे पर ली गई है। ये ज्यादातर 90-100 दिनों की अवधि के होते हैं। धान की बुआई की तारीख 10 जून से 1 जुलाई के बीच होती है।

सहरावत और उनके जैसे किसानों की चिंता यह है कि अब अगले कुछ हफ्तों में फसल की कटाई होने वाली है लेकिन निर्यातकों की मांग कमजोर है क्योंकि सरकार ने निर्यात मूल्य पर सीमा लगा दी है। ऐसे में किसानों को ये डर सता रहा है कि कमजोर मांग की दशा में उनकी उपज कौन खरीदेगा। किसान इस बात से भी चिंतित हैं कि खरीद नहीं होने की सूरत में उन्हें उपज को अगली फसल तक रोक कर रखना होगा और अगर ऐसा हुआ तो किसान तंगहाल हो जाएंगे क्योंकि उन्हें अगले सीज़न के लिए इनपुट खरीदने, मौजूदा फसल का ऋण चुकाने और तत्काल घरेलू खर्चों को पूरा करने के लिए पैसे की ज़रूरत है।

25 अगस्त को जारी सरकारी निर्देश के अनुसार, बासमती चावल के निर्यात के लिए 1,200 डॉलर/टन फ्लोर प्राइस प्रतिबंध  अगले महीने की 15 तारीख (15.10.2023) तक प्रभावी रहेगा और अक्टूबर 2023 के पहले सप्ताह में स्थिति की समीक्षा की जाएगी। किसान बताते हैं कि इस अवधि में यानी मध्य सितंबर से मध्य अक्टूबर तक बासमती किस्मों की खरीद का सीजन होता है और अगर सरकार ने निर्यात पर से प्रतिबंध नहीं हटाया तो उनकी स्थिति और खस्ताहाल हो सकती है।

सहरावत ने दावा किया कि न्यूनतम निर्यात मूल्य प्रतिबंध से केवल "बड़े व्यापारियों" और मिल मालिकों को फायदा होगा। उन्होंने कहा, "वे इस दर (1,200 डॉलर/टन) पर विश्व बाजार में हमारे चावल की कम मांग का हवाला देंगे, जिससे किसानों को मजबूरन इससे कम दाम में चावल बेचना पड़ेगा, जिसे वो ऑफर करेंगे। बाद में प्रतिबंध हटने पर भी किसानों को फायदा नहीं मिल सकेगा क्योंकि तब तक किसान अपनी उपज बेच चुके होंगे।" इसलिए सहरावत समेत कई किसानों ने सरकार से न्यूनतम निर्यात मूल्य प्रतिबंध हटाने का अनुरोध किया है। बता दें कि बासमती चावल का उत्पादन अधिकांशत: हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में होता है। हरियाणा में करनाल, तरावड़ी, पानीपत, कैथल, अंबाला, सिरसा, कुरुक्षेत्र रानिया बासमती चावल के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।

 

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