सैम पित्रोदा ने भारत के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले लोगों की विवादित रूप से की तुलना

नईदिल्ली

इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा (Sam Pitroda) ने विरासत टैक्स (Inheritance Tax) के बाद एक और विवादित बयान दिया है. पित्रोदा का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वह भारत के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले लोगों की विवादित रूप से तुलना करते नजर आ रहे हैं.

इस वीडियो में सुना जा सकता है कि सैम पित्रोदा कहते हैं कि भारत एक अत्यंत विविधता भरा देश है, जहां पूर्वी भारत में रहने वाले लोग चीन के लोगों जैसे, पश्चिम में रहने वाले अरब जैसे, उत्तर भारत में रहने वाले श्वेतों की तरह और दक्षिण में रहने वाले अफ्रीकी लोगों की तरह दिखते हैं. लेकिन इससे फर्क नहीं पड़ता. हम सभी भाई-बहनें हैं.

उन्होंने कहा कि हम अलग-अलग भाषाओं, धर्मों और रीति-रिवाजों का सम्मान करते हैं. ये वही भारत है, जिस पर मेरा भरोसा है, जहां हर किसी का सम्मान है और हर कोई थोड़ा-बहुत समझौता करता है.

बता दें कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने एक बयान में कहा था कि अगर चुनाव बाद उनकी सरकार सत्ता में आई तो एक सर्वे कराया जाएगा और पता लगाया जाएगा कि किसके पास कितनी संपत्ति है. उनके इस बयान के बारे में जब सैम पित्रोदा से पूछा गया तो उन्होंने अमेरिका में लगने वाले विरासत टैक्स का जिक्र किया था.

पित्रोदा ने कहा था कि अमेरिका में विरासत टैक्स लगता है. अगर किसी शख्स के पास 10 करोड़ डॉलर की संपत्ति है. उसके मरने के बाद 45 फीसदी संपत्ति उसके बच्चों को ट्रांसफर हो जाती है जबकि 55 फीसदी संपत्ति पर सरकार का मालिकाना हक हो जाता है.

उन्होंने कहा था कि ये बहुत ही रोचक कानून है. इसके तहत प्रावधान है कि आपने अपने जीवन में खूब संपत्ति बनाई है और आपके जाने के बाद आपको अपनी संपत्ति जनता के लिए छोड़नी चाहिए. पूरी संपत्ति नहीं बल्कि आधी, जो मुझे सही लगता है. लेकिन भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है. यहां अगर किसी के पास 10 अरब रुपये की संपत्ति है. उसके मरने के बाद उनके बच्चों को सारी की सारी संपत्ति मिल जाती है, जनता के लिए कुछ नहीं बचता. मुझे लगता है कि इस तरह के मुद्दों पर लोगों को चर्चा करनी चाहिए. मुझे नहीं पता कि इस चर्चा का निचोड़ क्या निकलेगा. हम नई नीतियों और नए प्रोग्राम की बात कर रहे हैं, जो लोगों के हित में हो ना कि सिर्फ अमीरों के हित में हो. मालूम हो कि पित्रोदा के इस बयान पर खूब विवाद हुआ था.

कौन हैं सैम पित्रोदा?

सैम पित्रोदा का पूरा नाम सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा है. उनकी पहचान टेलीकॉम इन्वेंटर और एंटरप्रेन्योर के तौर पर है. वो लगभग 50 साल से टेलीकॉम और कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं. भारत के ओडिशा के तितिलागढ़ में गुजराती परिवार में 1942 में उनका जन्म हुआ था. सात भाई-बहनों में पित्रोदा तीसरे नंबर पर हैं. गुजरात के एक बोर्डिंग स्कूल से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने वड़ोदरा की महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी से फिजिक्स और इलेक्ट्रॉनिक्स में मास्टर्स डिग्री ली. आगे की पढ़ाई के लिए वो अमेरिका चले गए. 1964 में शिकागो के इलिनोइस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से उन्होंने फिजिक्स में मास्टर्स डिग्री हासिल की थी.

वह पढ़ाई पूरी करने के बाद 1965 में वो टेलीकॉम इंडस्ट्री से जुड़ गए. 1975 में उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक डायरी का आविष्कार किया था. ये उनका पहला पेटेंट था. अपने करियर में उन्होंने कई पेटेंट दाखिल किए. उन्होंने मोबाइल फोन पर बेस्ट ट्रांजेक्शन टेक्नोलॉजी का पेटेंट भी दायर किया था.

जब छोड़ी अमेरिकी नागरिकता

पित्रोदा का परिवार गांधीवादी रहा है. कांग्रेस से उनकी नजदीकियां भी रही थीं. 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैम पित्रोदा को भारत लौटने को कहा. इंदिरा गांधी के कहने पर वो भारत लौट आए. भारतीय नागरिकता लेने के लिए उन्होंने अपनी अमेरिकी नागरिकता छोड़ दी. वो इसलिए क्योंकि भारत में एकल नागरिकता का प्रावधान है.

भारत लौटने के बाद 1984 में ही उन्होंने टेलीकॉम पर काम करने वाली एक स्वायत्त संस्था सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स की शुरुआत की.

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने, तो पित्रोदा उनके सलाहकार बन गए. 1987 में राजीव गांधी ने उन्हें टेलीकॉम, वाटर, शिक्षा, इम्युनाइजेशन, डेरी और ऑयलसीड्स से जुड़े छह टेक्नोलॉजी मिशन का हेड नियुक्त किया. भारत की इन्फोर्मेशन इंडस्ट्री में बदलाव करने के लिए उन्होंने राजीव गांधी के साथ मिलकर कई सालों तक काम किया. उनका काम भारक के हर कोने तक डिजिटल टेलीकॉम का विस्तार करना था.

भारत में कई सालों तक काम करने के बाद 1990 के दशक में पित्रोदा वापस अमेरिका लौट आए. यहां शिकागो में रहते हुए उन्होंने कई कंपनियां शुरू कीं. मई 1995 में वो इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन WorldTel इनिशिएटिव के पहले चेयरमैन बने.

2004 में जब कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए सरकार बनी, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पित्रोदा को नेशनल नॉलेज कमीशन का अध्यक्ष बनने के लिए आमंत्रित किया. मनमोहन सिंह के न्योते पर पित्रोदा दोबारा भारत लौटे. 2005 से 2009 तक पित्रोदा नेशनल नॉलेज कमीशन के अध्यक्ष रहे.

2009 के चुनाव के बाद यूपीए सरकार जब दोबारा सत्ता में आई तो अक्टूबर 2009 में उन्हें मनमोहन सिंह का सलाहकार नियुक्त किया गया. इसके साथ ही उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया गया था.

 

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