हाईकोर्ट की फटकार के बाद स्वास्थ्य विभाग ने जारी किया फार्मेट, लापरवाही पर डॉक्टर के साथ-साथ सीएमएचओ भी होंगे जिम्मेदार

जबलपुर
प्रदेश में यौन हिंसा से संबंधित मामले में जांच के बाद जारी किया जाने वाला मेडिको लीगल सर्टिफिकेट (एमएलएसी) अब सादे कागज पर जारी नहीं हो सकेगा। हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार को फटकार लगाए जाने के उपरांत स्वास्थ्य विभाग ने इसके लिए एक फार्मेट जारी कर दिया है और इसी के आधार पर चिकित्सकों को रिपोर्ट जारी करने के निर्देश दिए गए हैं। इसका पालन नहीं करने पर संबंधित चिकित्सक के साथ सीएमएचओ भी जिम्मेदार माने जाएंगे।

स्वास्थ्य संचालनालय ने सभी सीएमएचओ, सिविल सर्जन, भोपाल, इटारसी और जबलपुर के सिविल अस्पताल अधीक्षक को भेजे पत्र में कहा है कि प्रदेश के सभी स्वास्थ्य संस्थाओं में यौन हिंसा पीड़ितों एवं यौन हिंसा के आरोपियों के परीक्षण और परीक्षण रिपोर्ट निर्धारित प्रारूप में ही जारी किए जाएंगे।

हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा गया है कि इसके लिए भारत सरकार द्वारा मार्च 2020 में जारी की गई गाइडलाइन का अध्ययन कर इसको लेकर तैयार किए गए राज्य सरकार के साफ्टवेयर के आधार पर ही टाइप की गई रिपोर्ट भेजना सुनिश्चित किया जाए। हाथ से लिखी गई रिपोर्ट के बजाय टाइप रिपोर्ट संबंधित को दी जाए। स्वास्थ्य संचालनालय द्वारा इसके लिए अलग-अलग 30 फार्मेट जारी कर रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा गया है।

यह मामला सतना जिले के अमरपाटन थाना अंतर्गत देवरी जगदीशपुर से जुड़ा है जहां राहुल उर्फ अनूप कुशवाहा नाम के युवक द्वारा एक किशोरी के साथ रेप किया गया था। बताया गया कि आरोपी के गिरफ्तार होने के बाद उसके परिजनों ने सतना जिले के कोर्ट में उसकी जमानत का आवेदन लगाया जहां से उसे जमानत नहीं मिली। इसके बाद यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो पूरे मामले की तफ्तीश रिपोर्ट मिलने के बाद पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की घोर लापरवाही सामने आई। कोर्ट ने इस मामले में दोनों ही पक्षों को जमकर फटकार लगाई। पुलिस की विवेचना में गलती थी तो डॉक्टर द्वारा जारी की गई एमएलसी पढ़ने लायक नहीं थी। इसके बाद कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि एमएलसी रिपोर्ट टाइप फार्मेट में जारी की जाए ताकि गलती रोकी जा सके। इसके लिए महाधिवक्ता को भी पत्र लिखकर इसका क्रियान्वयन कराने के लिए कहा गया। वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये की गई सुनवाई के बाद जज सौरभ अभ्यंकर ने प्रमुख सचिव गृह और डीजीपी को भी इसका पालन करने के लिए आदेशित किया था। कोर्ट के आदेश की तीन माह बाद स्वास्थ्य संचालनालय ने इस पर अमल शुरू करने के निर्देश दिए हैं।

Back to top button