नगरीय सभ्यता के प्रमाण, भागलपुर में कोसी नदी किनारे मिले 5000 वर्ष पुराने ताम्र-पाषाणिक काल के अवशेष

भागलपुर 
बिहार के भागलपुर जिले में कोसी नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित गुवारीडीह के प्राचीन टिल्हे से पांच हजार वर्ष पुराने ताम्र पाषाणकालीन युग और 2500 वर्ष पुराने बुद्धकालीन पुरावशेष मिले हैं।  बिहपुर प्रखंड के जयरामपुर के निकट कोसी नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित गुवारीडीह के प्राचीन टिल्हे से ये अवशेष मिले हैं।

टिल्हे से मिले इन सामग्रियों में पक्की ईंटों की बनी दीवारों की संरचना सहित बहुतायत में एनबीपीडब्ल्यू संस्कृति से जुड़े अनेकों रंगों वाले मृदभांड, कृषि कार्य में प्रयुक्त होनेवाले लौह-उपकरण और औजार, मवेशियों के जीवाश्म, मानवनिर्मित पाषाण उपकरण और औजार सहित विभिन्न संस्कृति वाले मृदभांड भी प्राप्त हुए हैं।

10 माह पूर्व भी गुवारीडीह टिल्हे के तल से मिले पुरावशेषों की प्राप्ति का निरीक्षण करने टीएमबीयू के पीजी प्राचीन इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष डॉ. बिहारीलाल चौधरी, शोधकर्ता पूर्व उपजनसम्पर्क निदेशक शिवशंकर सिंह पारिजात, एसएम कॉलेज के प्राचार्य इतिहासकार डॉ. रमन सिन्हा के साथ पीजी पुरातत्व विभाग के डॉ. पवन शेखर व डॉ. दिनेश कुमार गए थे।
 
नगरीय सभ्यता के मिले हैं प्रमाण 
गुवारीडीह पुरास्थल के शोध और विश्लेषण में पिछले 10 महीनों से लगे पीजी पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष डॉ. बिहारीलाल चौधरी स्थल पर पायी गई पक्की ईंट निर्मित दीवारों की संरचना को देखकर कहते हैं कि उस समय यहां पर नगर-अधिवास होने के प्रमाण हैं। यहां पर मिली सामग्रियों के आधार पर अनुमान लगाया जा रहा है कि यह स्थल ताम्र-पाषाणिक काल का अवशेष हो सकता है जो कि पांच हजार वर्ष पुराना है। गुवारीडीह में बड़ी संख्या में प्राप्त एनबीपीडब्ल्यू के आधार पर विभागाध्यक्ष डॉ. चौधरी का अनुमान है कि यह स्थल अंग जनपद (भागलपुर प्रक्षेत्र) की राजधानी चम्पा का विस्तार रहा होगा जो कि 2500 पुराना बुद्धकालीन होगा।  

इतिहास में कई नये अध्याय जुड़ने की संभावना 
विभागाध्यक्ष ने राज्य के पुरातत्व विभाग से अनुरोध किया है कि स्थल का निरीक्षण जरूर कर लें। अंगक्षेत्र के इतिहास के जानकार शिवशंकर सिंह पारिजात ने कहा कि एक माह पूर्व बांका जिले के भदरिया में निकले पुरावशेषों संरक्षण-उत्खनन पर जिस तरह राज्य सरकार रुचि ले रही है, उसी तरह भागलपुर के गुवारीडीह पर भी ध्यान देने की जरूरत है। पुराविदों के अनुसार भदरिया की तरह गुवारीडीह भी चम्पा-संस्कृति का विस्तार है। 
 

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