बच्चों को नहीं मिले पोशाक के पैसे, शैक्षिक सत्र के आठ माह बीते

 पटना  
बिहार के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को शैक्षिक सत्र के आठ माह बीत जाने के बाद भी पोशाक के पैसे नहीं मिले हैं। फिलहाल राशि देने को लेकर शिक्षा विभाग में कोई तैयारी भी नहीं दिख रही। उधर, बच्चों के अभिभावक पोशाक के साथ ही अन्य योजनाओं की राशि का भी इंतजार ही कर रहे हैं। अलबत्ता प्रारंभिक स्कूल के बच्चों को किताब खरीदने और मध्याह्न भोजन की समतुल्य राशि जरूर दी गयी है। 

राज्य के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब घर के बच्चों को दिसंबर तक पोशाक की राशि नहीं मिलना नई बात नहीं है। ऐसा प्राय: हर साल हो रहा है। जानकार लाभुक योजनाओं के लिए बनाई गई अव्यावहारिक नीति को इसके लिए जिम्मेवार मानते हैं। इस पर कई बार सवाल भी उठे हैं। 

दरअसल, पोशाक की राशि सरकारी स्कूलों में नामांकित उन्हीं बच्चों को देने का प्रावधान है, जिनकी अप्रैल से सितम्बर तक कक्षा में उपस्थिति 75 फीसदी या अधिक होगी। इसके कारण हाजिरी की गणना सितंबर समाप्त होने के बाद ही होती है। अक्टूबर में प्रस्ताव तैयार होकर जिलों से मांगपत्र विभाग तक पहुंचता है और नवंबर-दिसंबर में पोशाक की राशि बच्चों के खाते में जाती है। शैक्षिक सत्र 2019-20 के पोशाक की राशि मार्च 2020 तक आरटीजीएस होती रही है। 

नीति पर पुनर्विचार की जरूरत
शिक्षाविदों की मानें तो सरकारी को इस नीति पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। पोशाक का पैसा दिसंबर में मिलेगा तो गरीब बच्चों के अभिभावक ड्रेस के लिए कर्ज लेने या अनाज बेचने को मजबूर होंगे। ऐसे में पोशाक योजना उनके लिए सहयोगी या उपयोगी नहीं साबित हो रही। जबकि सरकार इस मद में करोड़ों रुपए खर्च कर ही रही है।
 ज्ञात हो कि पहली से आठवीं के छात्र-छात्राओं जबकि 9वीं से 12वीं की छात्राओं को पोशाक के लिए राज्य सरकार राशि देती है। 
सेनेटरी नैपकिन के लिए भी 76 फीसदी हाजिरी 
स्कूली छात्र-छात्राओं की योजनाओं के लिए बने प्रावधान की विसंगति से जानकार हतप्रभ हैं। 75 फीसदी हाजिरी की अनिवार्यता इसलिए शिक्षा विभाग ने की थी ताकि योजनाओं में फर्जीवाड़ा न हो। यह नहीं कि नाम लिखाया और पैसा ले लिया, जबकि पढ़ाई निजी स्कूल में कर रहे हैं। सेनेटरी नैपकीन के लिए भी 75 फीसदी हाजिरी की अनिवार्यता समझ से परे है। इस मद में छात्राओं को 300 रुपए प्रति छात्रा सालाना देने का प्रावधान है। सवाल है कि इसका लाभ सभी नामांकित छात्राओं को क्यों नहीं मिले? फिलहाल मध्याह्न भोजन और किताब छोड़कर साइकिल, पोशाक, छात्रवृत्ति समेत सभी योजनाओं के लिए 75 फीसदी हाजिरी अनिवार्य है। 
पिछले सत्र की हाजिरी बने आधार 
शिक्षाविदों की राय में सरकारी स्कूलों के बच्चों को सत्रारंभ में ही यानी अप्रैल माह में ही पोशाक के पैसे मिलने चाहिए, जिससे उनके गरीब अभिभावक उनके लिए ड्रेस सिलवा सकें। शिक्षा विभाग को पिछले सत्र की 75 फीसदी हाजिरी को नए सत्र के लिए राशि वितरण का आधार बनाना चाहिए। 
अबकी 75 फीसदी हाजिरी कहां से आएगी 
कोरोना संकट को लेकर 14 मार्च 2020 से ही प्रदेश के स्कूल बंद हैं। ऐसे में 75 फीसदी हाजिरी कहां से आएगी। तो, पोशाक समेत अन्य योजनाओं के लिए शर्तों में ढील देनी पड़ेगी। सभी नामांकितों को राशि देनी होगी। दो बार चुनाव के मौके पर पहले भी 75 फीसदी हाजिरी की अनिवार्यता शिथिल की जा चुकी है। 

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