‘स्टैचू ऑफ यूनिटी’ बनकर लगभग तैयार, ‘मेड इन चाइना’ है प्रतिमा? जानें, इसके बारे में सबकुछ

 वडोदरा 
गुजरात के वडोदरा में सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा 'स्टैचू ऑफ यूनिटी' अब बनकर लगभग तैयार है। बताया जा रहा है कि दुनिया की इस सबसे ऊंची प्रतिमा का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 31 अक्टूबर को लोकार्पण करेंगे। हालांकि इस बीच सरदार पटेल की इस प्रतिमा को 'मेड इन चाइना' बताकर विपक्ष लगातार केंद्र सरकार को घेरने में भी जुटा है। हालांकि निर्माण से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक चीनी फर्म ने सिर्फ इसके आवरण को तैयार करने का काम किया है जो कि ब्रॉन्ज शीट (कांस्य) से बना है।  
 
दरअसल, 182 मीटर ऊंची यह प्रतिमा भारत के लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की है जिसे 'स्टैचू ऑफ यूनिटी' का नाम दिया गया है। इस स्टैचू का आइडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तब आया था, जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे। 6 अक्टूबर 2010 को मोदी ने घोषणा की थी कि गुजरात के 50 साल पूरे होने पर इस प्रतिमा का निर्माण नर्मदा नदी में सरदार सरोवर बांध के पास साधु बेट पहाड़ी पर किया जाएगा। 

मोदी ने कहा था कि भारत के लौहपुरुष के कद के अनुरूप ही उनकी प्रतिमा भी विश्वस्तरीय होगी। यह प्रतिमा 'स्टैचू ऑफ लिबर्टी' की ऊंचाई से दोगुनी और रियो डी जनेरो में 'क्राइस्ट द रिडीमर' से चार गुनी होगी। न्यू यॉर्क शहर की पहचान 'स्टैचू ऑफ लिबर्टी' की ऊंचाई 93 मीटर है, जबकि रियो डी जेनेरो की 'क्राइस्ट द रिडीमर' प्रतिमा 38 मीटर ऊंची है। 

अब मूर्ति लगभग पूरी हो चुकी है और इसका लोकार्पण 31 अक्टूबर को सरदार पटेल की जयंती पर किया जाएगा। ऐसे में राजनीतिक पंडितों का मानना है कि आने वाले आम चुनावों में यह सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए बेहद मददगार साबित हो सकता है। पिछले कुछ समय से आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर बीजेपी की आलोचना की जाती रही है। 

मेक इन इंडिया के तहत शुरू हुआ निर्माण 
प्रधानमंत्री बनने के फौरन बाद ही मोदी ने देश के भीतर विनिर्माण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए 'मेक इन इंडिया' का महत्वाकांक्षी कैंपेन शुरू किया था। हालांकि जब यह खबर आई कि इस स्टैचू को बनाने का काम एक चाइनीज फर्म को दिया गया है और उसके कर्मचारी ही इस विशाल स्ट्रक्चर को बनाएंगे तो आलोचक केंद्र सरकार के पीछे पड़ गए। उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि सरकार का यह निर्णय 'मेक इन इंडिया कैंपेन' की सोच से बिल्कुल ही अलग है। हालांकि सचाई यह थी कि एक चाइनीज फर्म को स्टैचू का सिर्फ कवर (आवरण) बनाने का काम सौंपा गया था। गौरतलब है कि आवरण निर्माण ब्रॉन्ज शीट (कांस्य) से बना है। 

इसलिए चुना गया इन दिग्गज कंपनियों को 
इस स्टैचू के निर्माण से जुड़े एक अधिकारी बताते हैं कि प्रतिमा का आवरण स्टैचू कंस्ट्रक्शन का एक अहम हिस्सा है, लेकिन यह पूरा कंस्ट्रक्शन नहीं है। उन्होंने बताया कि यह विशाल प्रॉजेक्ट अब अपने मुकाम तक पहुंचने वाला है। 'स्टैचू ऑफ यूनिटी' बनाए जाने की घोषणा के बाद सबसे पहले इस प्रॉजेक्ट के लिए 'सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता ट्रस्ट' का गठन किया गया था। साल 2014 में गुजरात सरकार ने कंस्ट्रक्शन का ठेका एक मल्टी-फर्म कंसोर्टियम को सौंप दिया। इस कंसोर्टियम में माइकल ग्रेव्स आर्किटेक्चर एंड डिजाइन और टर्नर कंस्ट्रक्शन, जो इससे पहले दुनिया की सबसे ऊंची इमारत 'बुर्ज खलीफा' बना चुकी है, शामिल हैं। वहीं एल एंड टी के ऐसे निर्माण में महारत को देखते हुए उसे एक्ज़िक्यूटिंग फर्म के रूप में प्रॉजेक्ट से जोड़ा गया। 

चार स्टेज में हुआ निर्माण 
इसके कंस्ट्रक्शन को चार स्टेज में बांटकर काम किया गया, जिनमें मॉक-अप, 3डी स्कैनिंग टेक्निक के साथ ही कंप्यूटर न्यूमेरिकल कंट्रोल प्रॉडक्शन टेक्निक, स्पाइनल स्ट्रक्चर। स्टैचू का मूल ढांचा कंक्रीट और स्टील से बनाया गया, स्टैचू के अंदर दीवारें, मचान और चार दूसरी साइट्स (वॉक-वे, टिकट काउंटर, फूड कोर्ट, चार लेन का हाइवे, एक यार्ड जहां स्टैचू से जुड़े सभी हिस्से को जोड़ा गया और श्रेष्ठ भारत भवन, जो कि 52 कमरों की थ्री-स्टार रिहायश है, भी डिवेलप किया गया। 

इसलिए चीनी कंपनी को सौंपा गया आवरण का काम 
अधिकारी ने यह भी बताया कि देश के अंदर काम कर रही नामी फाउंड्री के साथ लंबी बैठकों और उनके कामों के आकलन के बाद कंसोर्टियम ने निष्कर्ष निकाला कि दी गई समयसीमा में इंडियन फाउंड्री में ऐसे काम को पूरा करने की क्षमता नहीं है। ऐसे में दुनियाभर के मशहूर फाउंड्री के दौरे के बाद एल एंड टी ने चीनी टीक्यू आर्ट फाउंड्री को आवरण ढालने का काम देने की सिफारिश की, जो स्टैचू को कांस्य प्रतिमा का रूप देती। सच तो यह है कि टीक्यू आर्ट फाउंड्री कांस्य आवरण और प्रतिमा बनाने के लिए ही जानी जाती है। इस कंपनी के पास ऐसी कई जटिल प्रतिमाएं बनाने का अनुभव है। टीक्यू आर्ट फाउंड्री ने चीन में 62 मीटर ऊंची प्रतिमा को सफलतापूर्वक कांस्य आवरण पहनाया था। 

'मेड इन इंडिया है स्टैचू ऑफ यूनिटी' 
अधिकारी इसे काफी हद तक 'मेड इन इंडिया' प्रॉजेक्ट मानते हैं। वह कहते हैं, 'बेशक ऐसी विशाल परियोजनाओं के लिए हमेशा ही अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञता की जरूरत होती है। इस प्रॉजेक्ट में समूचे निर्माण का महज एक हिस्सा चाइनीज फर्म को दिया गया जो सामान्य-सी बात है। सच तो यह है कि यह प्रोजेक्ट हर भारतीय को गौरव का अहसास कराएगा तो दुनिया भर के पर्यटक इसे विस्मय के साथ देखेंगे। इसमें कोई शक नहीं कि 'स्टैचू ऑफ यूनिटी' का संदेश सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं रहेगा, यह वैश्विक होगा।' 
 

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