इस बात से डर रही है कांग्रेस, आज नागपुर में RSS के कार्यक्रम में शामिल होंगे प्रणब

नई दिल्ली 
कांग्रेस की परंपरा में रचे बसे दिग्गज नेता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी आज शाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे. इसके लिए वो नागपुर पहुंच चुके हैं. प्रणब मुखर्जी के इस कदम पर सियासी हलचल तेज है. कांग्रेस के तमाम नेता इस दौरे के विरोध में बोल रहे हैं. यहां तक कि प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने भी अपने पिता को सख्त नसीहत दे डाली है.

क्या है संघ?

सबसे पहले बात संघ की. गुलामी की अंधेरी रातों में ही सही, लेकिन 1925 में विजयादशमी के दिन एक ऐसा संगठन तैयार हुआ, जिसने राजनीति से दूरी बनाने का दावा किया. लेकिन ये भी सच है कि आज देश की राजनीति के सारे बड़े रास्ते उसकी शाखाओं की गलियों से होते हुए उसके मुख्यालय पर खत्म हो जाते हैं. वो संगठन है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ.

क्यों मचा है हंगामा

संघ का वादा हिंदुत्व की रहनुमाई का है. संघ का दावा हिंदू राष्ट्र का है. संघ का इरादा अखंड भारत का है. संघ की सोच सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पन्नों में भटकती है, लेकिन इसी संघ को लेकर धर्मनिरपेक्षता के हिमायतियों का एक तबका नाक भौं भी सिकोड़ता है. इसीलिए जब कांग्रेसी परंपरा में पले-बढ़े, नेहरू-इंदिरा के मूल्यों और मान्यताओं की छांव में राजनीति सीखने वाले और धर्मनिरपेक्षता के ताने-बाने में भारतीय समाज को बुनने वाले पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संघ के एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनने का न्योता कबूल किया तो हंगामा मच गया.

आज शाम नागपुर पर सबकी नजरें

नागपुर के रेशमबाग मैदान में होने वाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का तृतीय वर्ष शिक्षा वर्ग समापन समारोह खास है. उसमें ना सिर्फ पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी शरीक हो रहे हैं, मुख्य अतिथि बन रहे हैं बल्कि वो आरएसएस के पासिंग आउट कार्यक्रम में भी शामिल होंगे और अपना विचार रखेंगे. आज शाम को सबकी नजरें नागपुर पर टिकीं होंगी. संघ ने अपनी तरफ से पूरी तैयारी कर रखी है. विरोध और समर्थन के बीच ये तो तय है कि प्रणब मुखर्जी संघ के कार्यक्रम में जाएंगे और तभी ये तभी पता चलेगा कि दादा के दिल में है क्या.

ये सवाल उठ रहे

सवाल उठ रहे हैं कि क्या प्रणब मुखर्जी राष्ट्रवाद पर अपने विचार रखेंगे? अगर रखेंगे तो वो संघ का राष्ट्रवाद होगा या नेहरू का, जिनकी राजनीति के हामी खुद प्रणब मुखर्जी ताउम्र बने रहे? क्या उनके विचार आरएसएस के राष्ट्रवाद के विचारों से मेल खाएंगे? क्या वो हिंदू राष्ट्र के सवाल पर भी अपनी आपत्तियों को रख सकते हैं? क्या प्रणब मुखर्जी सर्व धर्म सम्भाव की उस परंपरा की याद दिलाएंगे जो गांधी के राजनीतिक चिंतन से निकली है या फिर संघ के विचारों से मिलती-जुलती राय प्रस्तुत करेंगे? क्या भारत की बहुलता और विविधता वाली संस्कृति की पैरोकारी करेंगे, जो भारत की असली पहचान है?

राष्ट्रपति बनने के बाद प्रणब का दिखा नया चेहरा

वैसे माना जा रहा है कि प्रणब मुखर्जी भले ही जिंदगी भर कांग्रेस के रंग में रंगे रहे, लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद उनका एक नया चेहरा सामने आया. संविधान के मूल्यों से पूरी तरह बंधा हुआ. राष्ट्रपति के रूप में प्रणब मुखर्जी से आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की राष्ट्रपति भवन में ही कई बार मुलाकात हुई. यहां तक कि पद छोड़ने के बाद भी प्रणब मुखर्जी ने भागवत को खाने पर बुलाया था. वास्तव में प्रणब मुखर्जी की राजनीतिक शख्सियत इतनी बड़ी रही है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनको पितातुल्य मानते हैं. आरएसएस के लिए ये कामयाबी जरूर हो सकती है कि जिंदगी भर आरएसएस के विचारों पर सवाल उठाने वाली एक बड़ी राजनीतिक हस्ती आज उसके घर में मुख्य अतिथि है. इससे संघ को लगता है कि उसकी विचारधारा को मजबूती मिलेगी.

 

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