ऐस्टरॉइड धरती के करीब कहां से आते हैं? मंगल-बृहस्पति के बीच रहने वाली ‘कर्मा’ फैमिली पर नजर

वॉशिंगटन
जब सौर मंडल की मुख्य बेल्ट में ऐस्टरॉइड टकराते हैं, तो इनके टुकड़े एक-दूसरे से मिलकर सूरज का चक्कर काटने लगते हैं। इस मलबे को 'फैमिली' कहते हैं। सही हालात में इनमें से कुछ धरती के करीब आ जाते हैं। मंथली नोटिसेज ऑफ द रॉयल ऐस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी में छपी स्टडी में रिसर्चर्स ने 'कर्मा फैमिली' के ऐस्टरॉइड्स के विकास का सिम्यूलेशन तैयार किया। इसमें शुरुआत सबसे पहली टक्कर के साथ होती है। नतीजों में पाया गया कि इस परिवार के जीवनकाल में 350 सदस्य धरती के करीब आ चुके हैं और 10 अभी भी धरती के पास हो सकते हैं।

हाल के सर्वे में देखे गए
कर्मा फैमिली का नाम उसमें शामिल सबसे बड़े ऐस्टरॉइड 3811 कर्मा के नाम पर रखा गया है जिसे 1953 में खोजा गया था। रिसर्चर्स का मानना है कि करीब 13.7 करोड़ साल पहले हुई टक्कर में फैमिली के सदस्य बने और फैल गए। इन्हें carbonaceous chondrites कहते हैं। ये रोशनी को रिफ्लेक्ट करते हैं और इसलिए इन्हें खोजना मुश्किल होता है। यूनिवर्सिटी ऑफ बेलग्रेड की स्टूडेंट और स्टडी की मुख्य लेखक डेबोरा पवेला का कहना है कि हाल के सालों में नए सर्वे में इनसे आने वाली रोशनी को डिटेक्ट किया जा सका है और इससे 317 कर्मा फैमिली के सदस्य खोजे गए।

350 ऐस्टरॉइड पार
इस रिसर्च के दौरान ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण के अलावा रिसर्चर्स ने Yarkovsky Effect को भी शामिल किया गया। इसमें सौर ऊर्जा से ऐस्टरॉइड्स को धक्का लगता है और ये लाखों प्रकाशवर्ष दूर चले जाते हैं। स्टडी में पाया गया कि 350 ऐस्टरॉइड कर्कवुड गैप (Kirkwood gap) में चले गए जो मुख्य बेल्ट का अस्थिर क्षेत्र है और धरती की कक्षा की तुलना में सूरज से ढाई गुना दूर है। यहां ये ऐस्टरॉइड बृहस्पति के एक चक्कर के साथ तीन चक्कर पूरे करते हैं। किसी खास जगह पर बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण का असर होने से इनकी कक्षा अंडाकार हो जाती है और ये ऐस्टरॉइड मंगल की कक्षा को पार करके धरती के करीब पहुंच जाते हैं। एक अनैलेसिस के मुताबिक यह धमूकेतुओं की Centaurs फैमिली का है। ये बर्फीले धूमकेतु होते हैं जो बृहस्पति और वरुण ग्रह के बीच आते हैं। वैज्ञानिकों ने इसे P/2019 LD2 नाम दिया है और भविष्य में इसके रास्ते और कक्षा का आकलन किया है। LD2 बृहस्पति के पास दो साल पहले आया था और अब दो साल बाद वापस आएगा। सिम्यूलेशन के मुताबिक करीब 5 लाख साल में ऐसी 90% संभावना होगी कि यह सोलर सिस्टम से बाहर निकल जाएगा और एक इंटरस्टेलार धूमकेतु बन जाएगा। जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी अप्लाइड फिजिक्स लैबोरेटरी (APL) के कैरी लीस ने बताया है, 'दिलचस्प बात यह है कि आप बृहस्पति को इस ऑब्जेक्ट को दूर फेंकते और कक्षा में इसके व्यवहार को बदलते और फिर अंदरूनी सिस्टम में लौटते देखेंगे।' LD2 की तरह कम अंतराल वाले धूमकेतु सूरज की ओर फेंके जाते हैं, जिससे ये टूट जाते हैं, किसी ग्रह से टकराते हैं या बार-बार बृहस्पति के पास आते हैं और कभी सूरज सिस्टम से बाहर चले जाते हैं। कैलिफोर्निया के पैसडीना की Caltech में ब्राइस बॉलिन बताते हैं, 'सिर्फ हबल ही सक्रिय धूमकेतु जैसे फीचर्स को इतनी दूर से इतनी डीटेल में डिटेक्ट कर सकता है और तस्वीरों में ये फीचर साफ दिखते हैं, जैसे करीब 4 लाख मील लंबी चौड़ी पूंछ और हाई-रेजॉलूशन फीचर्स कोमा और जेट्स की वजह से।' इस तरह का रास्ता पकड़ने के लिए यह बृहस्पति की कक्षा में सटीक ट्रैजेक्टरी पर आया था जिससे ऐसा लगता है कि यह बृहस्पति की कक्षा में ही है।

10 अभी भी करीब
माना जाता है कि करीब 7 करोड़ साल पहले पहला ऐस्टरॉइड ऐसे असर में आया था और कम से कम 5 सदस्य हर 10 लाख साल के आसपास ऐसे पहुंच जाते हैं। पहले की स्टडीज के आधार पर पाया गया है कि ज्यादातर ऐसे ऐस्टरॉइड्स धरती के करीब पहुंचते हैं। ये करीब 20 साल तक धरती के करीब अंतरिक्ष में रहते हैं। इसके आधार पर अंदाजा लगाया गया है कि फिलहाल करीब 10 ऐस्टरॉइड इस फैमिली से धरती के करीब होंगे। 

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