कुट्टू का आटा खाने से 40 बीमार, अस्‍पताल में भर्ती 

 मोदीनगर 
कुट्टू का आटा खाने से मोदीनगर में 40 लोग बीमार पड़ गए हैं। उन्‍हें स्‍थानीय अस्‍पताल में भर्ती कराया गया है। मोदीनगर के सीकरी फाटक इलाके में यह घटना हुई। मामले की जानकारी मिलते ही जिला प्रशासन और खाद्य विभाग सतर्क हो गया है। आटा कहां से खरीदा गया था इसका पता लगाया जा रहा है। कुट्टू का आटा खाने से बीमार लोगों की हालत फिलहाल स्थिर बनी हुई है। गौरतलब है कि कट्टू के आटे की पूड़ियां और रोटी खाने से इसके पहले भी कई जगहों पर लोग बीमार पड़ चुके हैं। पिछले साल अक्‍टूबर में उत्‍तराखंड के रूड़की और आसपास के क्षेत्रों में कुट्टू के आटे की पूड़ियां और रोटी खाने से 125 लोगों की तबीयत बिगड़ गई थी। आनन-फानन में सभी को रुड़की के सिविल अस्पताल और कई निजी अस्पतालों में भर्ती कराया गया था। घटना के बाद स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने दुकानों से सैंपल लेकर करीब साढ़े छह कुंतल आटा नष्ट कर दिया था। 

बीमार लोगों ने पहले नवरात्र पर कुट्टू के आटे से बनी पूड़ियां, रोटी और अन्य पकवान खाए थे। कुछ ही देर बाद लोगों को उल्टी, चक्कर और हाथ-पैर कांपने लगे। रुड़की शहर में 22, भगवानपुर में 66, मंगलौर में 15, नारसन में 11, लंढौरा में 9 और कलियर में दो लोगों की हालत बिगड़ गई थी। इस साल जनवरी में उत्‍तराखंड के ही भगवानपुर के मक्‍खनपुर गांव में गाजर का हलुवा खाने के बाद एक ही परिवार के नौ लोग बीमार हो गए थे। व्रत में सबसे ज्यादा कुट्टू का आटा खाया जाता है। इसके आटे से व्रत में खाने वाली पूड़ियां, पराठे, पकौड़े, चीला बनाया जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि व्रत में कुट्टू का आटा क्यों खाया जाता है और यह किससे बनता है? आइए, जानते हैं खास बातें- 

 कुट्टू को अंग्रेजी में Buckwheat कहा जाता है, लेकिन इसका किसी तरह के अनाज से कोई संबंध नहीं है क्योंकि गेहूं, अनाज और घास प्रजाति का पौधा है जबकि कुट्टूस बकव्हीट का लैटिन नाम फैगोपाइरम एस्कलूलेंट है और यह पोलीगोनेसिएइ परिवार का पौधा है। बकव्हीट पौधे से प्राप्त फल तिकोने आकार का होता है। पीसकर जो आटा तैयार किया जाता है, उसे बकव्हीट यानी कुट्टू का आटा कहा जाता है।  बकव्हीट का पौधा ज्यादा बड़ा नहीं होता है। इसमें गुच्छों में फूल और फल आते हैं। भारत में यह बहुत कम जगहों पर उगाया जाता है। हिमालय के हिस्सों जैसे जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड और दक्षिण के नीलगिरी में जबकि नॉर्थ ईस्ट राज्यों में उगाया जाता है। भारत में इसका प्रयोग व्रत के दौरान खायी जाने वाली चीजों में ही होता है।
 

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