आपदा को अवसर बनाने में जुटे श्मशान घाट, अंतिम संस्कार के लिए वसूल रहे कई गुना ज्यादा दाम

 
लखनऊ

वाराणसी में मां गंगा के किनारे हरिश्चंद्र घाट पर कोरोना के मरीजों की चिताएं जल रही हैं। उनसे निकलने वाली तपिश असहनीय है। एकदम झुलसा देने वाली। वहीं, राजेश सिंह, जो लहरतारा में एक डिपार्टमेंटल स्टोर चलाते हैं अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। उनके चाचा की अभी अभी कोरोना से मौत हुई है और उनका अंतिम संस्कार किया जाना है। तभी घाट का प्रबंधक उनसे 11,000 रुपए की मांग करता है। सिंह इसका विरोध करते हैं कि यह 5 हजार से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। तो प्रबंधक उन्हें शव के साथ जाने के लिए कहता है।

 
यह खाली हरिश्चंद्र घाट की बात नहीं है। उत्तर प्रदेश में लगभग सभी श्मशान घाटों पर कोरोना वायरस से मरने वाले लोगों के परिजनों के साथ ऐसा ही बर्ताव किया जा रहा है। उसने शव के दाह संस्कार के लिए मोटी रकम वसूली जा रही है और इन परिजनों के पास इस मोटी रकम को अदा करने के अलावा कोई और चारा नहीं है। क्योंकि वह कोरोना के शव के साथ ज्यादा देर तक नहीं रह सकते और न ही शव को वापस ले जा सकते। यानि दुनियाभर में फैली इस आपदा को कमाई के अवसर के तौर पर लिया जा रहा है।
 
दाह संस्कार के लिए घाटों पर जो लकड़ी व सामग्री 3 से 4 हजार रुपए की मिलती थी वह अब 11,000 रुपए के आसपास मिल रही है और वह भी पहले से कम मात्रा में। राजेश सिंह ने मीडिया से बातचीत में रविवार को यह जानकारी दी। राजेश कहते हैं कि इसके बावजूद आप कुछ नहीं कर सकते क्योंकि परिजन शव को लेकर और कहां जाएंगे।

एक अन्य व्यक्ति ने कहा, '14 अप्रैल को कोरोना से मेरी चाची का निधन हो गया, मैं पूरी तरह टूट चुका हूं। लेकिन हरिश्चंद्र घाट पर जब में चाची का दाह संस्कार करने पहुंचा तो मुझसे 22,000 रुपए लिए गये। इससे एक दिन पहले मेरी दादी का निधन हो गया था, जिसके लिए मुझे 30 हजार रुपए चुकाने पड़े।'वे कहते हैं, घाट प्रबंधकों को यह दिखाई नहीं दे रहा कि अभी कितने शव कतार में हैं। वह आगे कहते हैं कि अतिरिक्त वसूली के बावजूद संतोषजनक सुविधा मुहैया नहीं कराई जा रही हैं। लकड़ी भी पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल रही है। प्रबंधक आधी जली हुई लकड़ी को भी नए शवों में लगा दे रहे हैं।

यही कहानी मेरठ के सूरजकुंड शव घाट की है। इसको लेकर स्थानीय नगरपालिका आयुक्त मनीष बंसल के नेतृत्व में एक टीम ने घाट के लोगों के साथ कीमतों के निर्धारण पर बातचीत की। बंसल ने कहा, 'हमें शिकायतें मिल रही थीं कि पुरोहित मृतकों के परिजनों को भगा रहे हैं। हमने एक बैठक की और उन्हें बताया कि दाह संस्कार की एक तय कीमत होनी चाहिए। अन्य सामनों के लिए भी कीमत तय कर दी गई है।' आकलन के अनुसार, हरिश्चंद्र घाट पर पिछले हफ्ते 40 से 60 शब प्रतिदिन जलाए गए थे। वाराणसी में स्थित गैस शवदाहगृह में पहले से ही काफी मात्रा में शव आ रहे हैं और वह ज्यादा बोझ सहन नहीं कर सकता। इसलिए घाटों पर शवों को लाया जा रहा है।
 
अतिरिक्त वसूली की कई शिकायतों के बाद अब जाकर स्थानीय प्रशासन की नींद खुली है। वाराणसी में असि चौकी पर तैनात सब इंस्पेक्टर दीपक कुमार ने कहा कि अब हमने दाह संस्कार के रेट तय कर दिये हैं। जो व्यक्ति कोरोना से मरा है उसका दाह संस्कार 7 हजार में किया जाएगा जबकि नार्मल व्यक्ति का दाह संस्कार 5 हजार रुपए में होगा। जबकि बिजली वाले शहदाहगृह में यह मात्र 500 रुपए में होगा। इसको लेकर घाटों की प्रबंधन समिति ने भी सहमति दे दी है।

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