बिना अप्रूवल दवाई बेचने वाली बड़ी फार्मासूटिकल कंपनियों पर अब केंद्र लेगा ऐक्शन

 नई दिल्ली 
मार्केट में आजकल बड़ी तादाद में बिना मंजूरी के दवाएं बिक रही हैं। अब केंद्र बड़ी फार्मासूटिकल कंपनियों द्वारा बिना मंजूरी के बेची जा रही दवाइयों पर जल्द ऐक्शन लेगा। केंद्र उन उत्पादकों पर शिकंजा कसेगा जो बिना क्लिनिकल ट्रायल और अप्रूवल के इमर्जेंसी कॉन्ट्रासेप्टिव, ऐंटी-ओबेसिटी और फर्टिलिटी फॉर्म्युलेशन जैसी दवाएं बाजार में बेच रहे हैं। ड्रग्स ऐंड कॉस्मेटिक ऐक्ट में यह संशोधन इसलिए लाया जाएगा ताकि कंपनियों द्वारा दवाइयों की क्वॉलिटी सुनिश्चित की जा सके जिन्हें बड़ी फार्मासूटिकल कंपनियों के लेबल के साथ बेचा जाता है। 
 

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने पिछले 3 महीने में कई कंपनियों द्वारा नियमों के उल्लंघन को लेकर कारण बताओ नोटिस भी जारी किया है। डीसीजीआई की जांच के अनुसार यह दवाइयां उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और दमन के छोटे उत्पादकों द्वारा बनाई जा रही थी और इन दवाइयों को बड़ी कंपनियां अपने लेबल के साथ बेच रही थीं। डीसीजीआई के एक अधिकारी ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, हम एफआईआर दर्ज कर रहे हैं और जांच जारी है। हमने कई कंपनियों को ऐसी दवाइयों को बनाने और उनकी मार्केटिंग करने को लेकर कारण बताओ नोटिस भी जारी किया है। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि जांच के दौरान एक इंस्पेक्टर ने पाया कि इन दवाइयों को बनाने के लिए चीन से सामान मंगवाया जा रहा था। यह सामान चीन से फूड आइट्मस के रूप में मंगाया जा रहा था। 

 
ड्रग्स और कॉस्मेटिक ऐक्ट के अंदर दोषी पाए जाने पर 3 से 5 साल तक की सजा और 1 लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है। हालांकि ऐसे केसों में ज्यादातर उत्पादक ही दोषी पाए जाते हैं और बड़ी फार्मा कंपनियां मौजूदा कानून के तहत बच निकलती हैं। स्वास्थ्य सचिव प्रीति सूडान ने सभी राज्यों के सचिव को पत्र लिखकर सूचित किया है कि ऐसी कंपनियों को पूरी जांच के बाद ही लाइसेंस दिया जाए। 

कंपनियां अधिकतर क्लिनिकल ट्रायल पर बचत करने के लिए और मार्केट में जल्दी छाने के चक्कर में नई दवाइयों के लिए रेग्यूलेटरी अप्रूवल लेना जरूरी नहीं समझती। वहीं ड्रग लॉ के तहत कंपनियों द्वारा किसी भी नई दवाई को लॉन्च करने से पहले अप्रूवल लेना जरूरी होता है और इनमें क्लिनिकल ट्रायल की विशेष भूमिका होती है। 

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