माँ विंध्यवासिनी पूजा: जानिये माँ दुर्गा के इस अदभुद रूप और महिमा का रहस्य

उत्तर प्रदेश में गंगा नदी से तकरीबन 8 किलोमीटर दूर माँ विंध्यवासिनी का मंदिर स्थित है। माँ विंध्यवासिनी देवी दुर्गा का ही एक रूप है जिन्होंने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। विंध्यवासिनी वो है जो विंध्य पर निवास करती हैं। माना जाता है कि ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की तिथि को ही देवी दुर्गा का युद्ध असुरों के साथ इसी पर्वत पर हुआ था। इसी दिन माता ने राक्षसों का वध करके समस्त संसार को इनके अत्याचारों से मुक्त कराया था।

प्रत्येक वर्ष लोग इस दिन देवी विंध्यवासिनी की पूजा अर्चना करके उनका धन्यवाद करते हैं। साथ ही उनका आशीर्वाद भी प्राप्त करते हैं। इस वर्ष यह पूजा 19 जून, 2018 मंगलवार को है। आइए इस शुभ अवसर पर माता की महिमा के बारे में थोड़ा और विस्तार से जानते हैं।

कैसे हुई माँ विंध्यवासिनी की उत्पत्ति
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार एक बार देवी दुर्गा ने सभी देवी देवताओं को बताया था कि वे नन्द और यशोदा के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेंगी ताकि वे सभी असुरों का नाश कर सकें। अपने कहे अनुसार माता ने ठीक उसी दिन जन्म लिया जिस दिन श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। चूंकि इस बात की भविष्यवाणी पहले ही हो चुकी थी कि देवकी और वासुदेव की आठवी संतान कंस की मृत्यु का कारण बनेगी इसलिए अपने प्राण बचाने के लिए कंस ने एक एक कर अपनी बहन की सभी संतानों को मौत के घाट उतार दिया था। किन्तु देवकी और वासुदेव की आठवी संतान के रूप में स्वयं विष्णु जी ने श्री कृष्ण बनकर धरती पर जन्म लिया था इसलिए भगवान की माया से वासुदेव ने अपने पुत्र के प्राणों की रक्षा करने के लिए उसे नन्द और यशोदा की पुत्री के स्थान पर रख दिया और उनकी पुत्री जो देवी का ही रूप थी, उन्हें लेकर वापस कारागार में लौट आए।

जब कंस ने देवी की हत्या करनी चाही
कहते हैं जब कंस को इस बात का पता चला कि उसकी बहन ने एक और संतान को जन्म दिया है तो वह फ़ौरन उसकी हत्या करने के लिए पहुँच गया। लेकिन जब उसने देखा कि देवकी ने पुत्र को नहीं बल्कि पुत्री को जन्म दिया है तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि भविष्यवाणी के अनुसार देवकी और वासुदेव का आठवा पुत्र उसकी हत्या करेगा। फिर भी अपनी मौत से भयभीत कंस ने उस कन्या को ही मारने का निर्णय लिया किन्तु जैसे ही उसने प्रहार किया, देवी दुर्गा अपने असली रूप में आ गयीं। साथ ही कंस को इस बात की चेतावनी भी दी कि उसकी हत्या करने वाला गोकुल में सुरक्षित है। इतना कहते ही माता अंतर्ध्यान हो गयी। कहते हैं तब से देवी विंध्य पर्वत पर ही निवास करती है।

महिषासुर मर्दिनी
विंध्य पर्वत पर ही माता को समर्पित विन्ध्यवासिनी मंदिर स्थित है। माता को देवी काली के रूप में भी पूजा जाता है। चूंकि माता ने महिषासुर का वध किया था इसलिए इन्हें महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है। अपने इस रूप में या तो माता असुर का गला काटते दिखाई देंगी या फिर उसका धड़ अपने हाथ में लिए। महिषासुर मर्दिनी का अर्थ ही है जिसने महिषासुर का अंत किया है।

माना जाता है कि अग्नि में भस्म होने के पश्चात् जहां जहां देवी सती के अंग गिरे थे वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। इस स्थान को भी शक्तिपीठ कहा जाता है और यहां माता काजल देवी के नाम से भी जानी जाती है।

विभिन्न स्थानों पर होती है माँ विंध्यवासिनी की पूजा
इस पवित्र अवसर पर भारत के कई हिस्सों में माँ विंध्यवासिनी की उपासना की जाती है। भक्त सच्चे मन से माता की पूजा करके उनका आशीर्वाद पाते हैं। साथ ही माता उनके समस्त कष्ट हर लेती है और उनका जीवन सुखमय बन जाता है। क्योंकि यह पूजा देवी काली के ही एक रूप को समर्पित है इसलिए इस पूजा को पंडितों की देख रेख में और उनकी सलाह अनुसार करना ही उचित माना जाता है।

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