टाटा ग्रुप बना एयर इंडिया का नया मालिक

 नई दिल्ली

सरकारी एयरलाइन एअर इंडिया (Air India) टाटा समूह के नियंत्रण में जाएगी. एअर इंडिया की बिक्री प्रक्रिया में टाटा समूह ने सबसे ज्यादा कीमत लगाकर बिड जीत ली है.

एअर इंडिया के लिए टाटा ग्रुप (Tata Group) और स्पाइसजेट (SpiceJet) के अजय सिंह ने बोली लगाई थी. यह दूसरा मौका है जब सरकार एअर इंडिया में अपनी हिस्सेदारी बेचने की कोशिश कर रही है. इससे पहले 2018 में सरकार ने कंपनी में 76 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की कोशिश की थी लेकिन उसे कोई रिस्पांस नहीं मिला था.

Air India के लिए सरकार ने फाइनेंशियल बिड्स मंगवाई थीं. सरकार इसी वित्त वर्ष में इस सरकारी एयरलाइंस का प्राइवेटाइजेशन करने का लक्ष्य लेकर चल रही है. ये सरकार के विनिवेश कार्यक्रम का हिस्सा भी है.

टाटा ग्रुप ने ही की थी शुरुआत

Air India की शुरुआत 1932 में टाटा ग्रुप ने ही की थी. टाटा समूह के जे. आर. डी. टाटा (JRD Tata) ने इसकी शुरुआत की थी, वे खुद भी एक बेहद कुशल पायलट थे.

ऐसे सरकारी कंपनी बनी Air India

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत से सामान्य हवाई सेवा की शुरुआत हुई और तब इसका नाम Air India रखकर इसे एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी बना दिया गया. वर्ष 1947 में देश की आज़ादी के बाद एक राष्ट्रीय एयरलाइंस की जरूरत महसूस हुई और भारत सरकार ने Air India में 49% हिस्सेदारी अधिग्रहण कर ली. इसके बाद 1953 में भारत सरकार ने एयर कॉरपोरेशन एक्ट पास किया और Tata Group से इस कंपनी में बहुलांश हिस्सेदारी खरीद ली. इस तरह Air India पूरी तरह से एक सरकारी कंपनी बन गई.

दरअसल, टाटा की बोली इस लिहाज से अहम है कि 68 साल पहले तक इस एयरलाइंस कंपनी पर टाटा का ही मालिकाना हक था। आजादी के बाद उड्डयन क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण के चलते सरकार ने कंपनी के 49 फीसदी शेयर्स खरीद लिए। इस तरह 15 साल तक सफलतापूर्वक प्राइवेट एयरलाइंस के तौर पर काम कर रही टाटा एयरलाइंस सरकारी कंपनी बन गई।

क्या है टाटा एयरलाइंस के एयर इंडिया बनने की कहानी?
इस कंपनी की स्थापना 1932 में जेआरडी टाटा ने की थी और वे खुद टाटा एयरलाइंस के पहले सिंगल इंजन विमान हैविललैंड पुस मॉथ को कराची से उड़ाकर बॉम्बे के जुहू एयरोड्रोम लाए थे। 1982 में टाटा एयरलाइंस की पहली फ्लाइट के 50 साल पूरे होने के मौके पर जेआरडी टाटा ने एक बार फिर वही कारनामा दोहराया और पुस मॉथ को कराची से उड़ाकर बॉम्बे ले आए। फर्क सिर्फ इतना था कि उस वक्त जेआरडी की उम्र 78 साल हो चुकी थी।

1946 में टाटा एयरलाइंस पब्लिक होल्डिंग में उतरी। अच्छे मुनाफे में भी रही। इसका नाम भी बदलकर एयर इंडिया कर दिया गया। आजादी के बाद नेहरू सरकार में राष्ट्रीयकरण की जो बयार आई, उससे उड्डयन क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा। पहले सरकार ने 1948 में एयर इंडिया में 49 फीसदी शेयर खरीदे। बाद में 1953 में भारत सरकार ने एयर कॉरपोरेशन एक्ट पास किया, जिससे एयर इंडिया समेत सात और प्राइवेट एयरलाइंस सरकारी क्षेत्र की कंपनियां बन गईं।

हालांकि, उड्डयन क्षेत्र में जेआरडी टाटा की विशेषज्ञता को देखते हुए सरकार ने उन्हें एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के चेयरमैन का पद लेने का न्योता दिया। टाटा ने भी सरकार की मनाने की कोशिशों के बीच पद ग्रहण कर लिया। इस दौरान उन्हें इंडियन एयरलाइंस के बोर्ड में निदेशक के तौर पर भी शामिल किया गया।

एयर इंडिया के राष्ट्रीयकरण को लेकर नेहरू से नाराज थे जेआरडी टाटा
'द टाटा ग्रुप: फ्रॉम टॉर्च बियरर्स टू ट्रेलब्लेजर्स' किताब लिखने वाले शशांक शाह ने टाटा ग्रुप के इतिहास पर जो किताब लिखी है, उसमें एयर इंडिया के राष्ट्रीयकरण को लेकर जेआरडी टाटा और पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बीच टकराव की बात भी सामने आती है। दरअसल, भारत सरकार की ओर से जब उड्डयन क्षेत्र की कंपनियों के राष्ट्रीयकरण पर बात हुई, तो जेआरडी ने इस पर नाराजगी जताते हुए नेहरू के सामने ही कह दिया था कि उनकी सरकार नागरिक उड्डयन क्षेत्र में निजी कंपनियों को दबाना चाहती है, खासतौर पर टाटा की हवाई सेवाओं को। हालांकि, नेहरू ने ऐसा कोई भी इरादा न रखने की बात कही और जेआरडी टाटा को निजी चिट्ठी लिखकर उन्हें समझाने की कोशिश भी की।

अपनी जवाबी चिट्ठी में जेआरडी ने सरकार के फैसले पर फिर नाराजगी जताई और कहा कि बिना चर्चा किए ही किसी कंपनी का निजीकरण किए जाने का यह फैसला निराशाजनक है। बताया जाता है कि जेआरडी टाटा का तर्क यह था कि नई सरकार को एयरलाइंस कंपनी चलाने का कोई अनुभव नहीं था और राष्ट्रीयकरण से उड़ान सेवाओं में सिर्फ नौकरशाही और सुस्ती दिखाई देगी। इससे कर्मचारियों का मनोबल और यात्रियों को दी जाने वाली सेवाएं, दोनों का ही स्तर गिरेगा।

 

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