सीएम शिवराज ने की 24 सभाएं, केंद्र से लेकर राज्य के मंत्रियों की उतार दी फौज, फिर भी रैगांव में हार

नई दिल्ली
एक सीट, 6 बार मुख्यमंत्री का दौरा, केवल मुख्यमंत्री की 24 चुनावी सभाएं। राज्य से लेकर केंद्र तक के कद्दावर मंत्रियों की फौज। फिर भी नहीं बच सका 31 साल से अजेय किला। यह कहानी है मध्य प्रदेश में हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा उपचुनाव में रैगांव सीट की। वैसे तो यहां पर भाजपा ने खंडवा लोकसभा समेत, जोबट और पृथ्वीपुर में जीत हासिल करके स्कोर 3-1 का रखा है। लेकिन अंदरखाने सच यही है कि महज एक हार भी भाजपा के लिए कई बड़े सवाल खड़े करने वाली है। यह सवाल सिर्फ हार का नहीं है, सवाल यह है कि इतनी पुख्ता किलेबंदी के बावजूद भाजपा ने रैगांव सीट क्यों गंवा दी।  

बागरी परिवार की नाराजगी
असल में इस सीट पर टिकट बंटवारे के साथ ही असंतोष का जो दौर शुरू हुआ, वहीं से भाजपा के लिए मुश्किलें शुरू हो गईं। यह सीट खाली हुई थी भाजपा विधायक जुगल किशोर बागरी के निधन से। ऐसे में बागरी परिवार के सदस्यों को टिकट मिलने की उम्मीद थी। परिवार के कई सदस्य चुनावी मैदान में उतरने की मंशा बना चुके थे। जुगल किशोर के बेटे पुष्पराज बागरी का दावा था कि भाजपा ने उन्हें टिकट देने का वादा किया था। उन्होंने पर्चा भी भर दिया था, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें मना लिया। हालांकि उन्होंने पुष्पराज बागरी को भले मना लिया, लेकिन नतीजा बताता है कि वह बागरी परिवार का भरोसा नहीं जीत सके थे।

बसपा का गेम
बहुजन समाज पार्टी ने इस सीट पर अपना कोई कैंडिडेट नहीं उतारा था। ऐसे में माना जा रहा है कि बसपा का वोट कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो गया। इसके अलावा कांग्रेस प्रत्याशी कल्पना वर्मा की जाति ने भी समीकरण ध्वस्त करने में बड़ी भूमिका निभाई। असल में इस सीट पर कल्पना वर्मा के जाति की वोटरों की तादाद अच्छी-खासी है। इसके साथ ही साथ कल्पना वर्मा क्षेत्र में लगातार एक्टिव रहीं। 2014 में उन्होंने रैगांव के एक वार्ड से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीता था। इसके बाद 2018 में उन्हें विधायकी का टिकट मिला। वहां कल्पना भले हार गई थीं, लेकिन उन्होंने अपनी तैयारी बंद नहीं की थी। वह क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहीं, जबकि प्रतिमा बागरी की पहचान बस संगठन तक ही रही।

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