जब चौकीदार के शव को कील ठोंककर नक्सलियों ने पेड़ पर लटकाया था…

गया
पुलिस मुखबिरी के मामले में नक्सलियों की बेहद क्रूर कार्रवाई का उदाहरण पिछली सदी के नब्बे के दशक में तब सामने आया था जब गया जिले के शेरघाटी इलाके में नक्सली आंदोलन उभार पर था। तब बांकेबाजार थाने के बलथरवा गांव में शेरघाटी-इमामगंज मार्ग पर नक्सलियों ने काली पासवान नामक एक पुलिस चौकीदार की हत्या कर उसके शव को एक मोटे वृक्ष की शाखों में कील ठोंककर इस तरह चिपका दिया था, जैसे सूली पर ईसाई पैगम्बर ईसा मसीह के शव को लटकाया गया था। हाल के कुछ वर्षों के दौरान नक्सलियों ने बांकेबाजार के अम्बाखार गांव के रूस्तम सिंह भोक्ता, सोनदाहा के उपेंद्र साव, आमस के रेंगनिया गांव के निकट पुलिस चौकीदार राजेश्वर पासवान, बांकेबाजार के गोइठा के छोटू साव आदि की पुलिस मुखबिरी के आरोप में बेहद निर्मम ढंग से हत्याएं की हैं। ऐसे तमाम मामलों में एक तो डरे-सहमे परिवार वाले बढ़िया से तथ्यों-साक्ष्यों के साथ एफआइआर दर्ज नहीं कराते, पुलिस भी इन मामलों की तहकीकात में दिलचस्पी नहीं लेती। यही वजह है कि एक भी मामले का न तो पूरी तरह खुलासा होता है और न इसके गुनाहगारों को कोई सजा मिलती है। पुलिस मुखबिरों या मुखबिरी का आरोप झेल रहे लोगों के प्रति नक्सलियों का रवैया कभी नरम नहीं रहा है। डुमरिया के मौनबार नरसंहार को अंजाम देकर खूंखार नक्सलियों ने एक बार फिर यही संदेश देने की कोशिश की है। बता दें कि शनिवार की शाम डुमरिया थाने से नौ किमी दूर पहाड़ों से घिरे मौनबार गांव में पहुंचकर नक्सलियों ने सत्येंद्र सिंह के परिवार के चार लोगों की एक साथ हत्या कर दी थी। मुखबिरी को लेकर नक्सलियों की बौखलाहट का यह आलम था कि उन्होंने परिवार के दो पुरूष सदस्यों के साथ दो महिलाओं को भी हाथ बांधकर फांसी पर लटका दिया। 

कोबरा जवानों के सुरक्षा घेरों में  सेंध
पिछले साल 11 नवम्बर को ही नक्सलियों ने बाराचट्टी थाने के महुअरी गांव में पुलिस की जासूसी करने के आरोपी बिरेंद्र यादव नामक एक ग्रामीण को कोबरा जवानों के सुरक्षा घेरे में रहने के बावजूद गोलियों से भून दिया था। तब कोबरा जवानों की जवाबी कार्रवाई में झारखंड के उदवंतनगर थानाक्षेत्र के रहने वाले एक नक्सली लड़ाके अमरजीत के साथ रोही गांव के एक ग्रामीण विकास टाइगर की भी जान गई थी। नक्सलियों की हिंसक कार्रवाई को लेकर हमेशा चौकन्ना रहने वाले बिरेंद्र यादव छठ पूजा के दौरान गांव में होने वाले नाच कार्यक्रम में शामिल होने गए थे। उनके साथ  चिर संगिनी बंदूक तो थी ही साथ में कोबरा जवानों का घेरा भी था। ऐसे ही एक नाच कार्यक्रम के दौरान करीब छह साल पूर्व बाराचट्टी थाने के अमकोला गांव में ग्रामीणों की भीड़ में ही नक्सलियों ने संजय यादव को गोलियों से उड़ा दिया था। वह भी पुलिस मुखबिरी के आरोपी थे। चार साल पूर्व बाराचट्टी के तिलैया गांव के विजय यादव को भी नक्सलियों ने जीटी रोड पर चांदो मोड़ के पास मौत के घाट उतार दिया था। विजय पर भी पुलिस मुखबिरी का ठप्पा लगा था। 
 

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