आगरा के दलित इस बार भी BJP का देंगे साथ या मायावती रोक पाएंगी सेंधमारी?

 लखनऊ

यूपी का आगरा जिला 9 विधानसभा सीटों के साथ दो चीजों के लिए जाना जाने लगा है। पहला ताजमहल के लिए और राजनीति में राज्य की दलित राजधानी के रूप में। जिले की 21% आबादी अनुसूचित जाति से संबंधित है। यहां बड़ा फुटवियर उद्योग है, जो इन समुदायों, विशेष रूप से जाटवों को रोजगार देता है। जाटव बसपा का मुख्य वोट बैंक है। चुनाव के नतीजों में भी यह देखने को मिलता है।

2007 में जब मायावती मुख्यमंत्री बनीं तो बसपा ने आगरा की 9 विधानसभा सीटों में से 6 पर जीत हासिल की। 2012 में वह सत्ता से बेदखल हो गईं, तब भी उन्होंने यहां 9 में से 6 सीटों पर जीत दर्ज की। इसके बाद 2017 में कुछ अकल्पनीय हुआ। भाजपा ने सभी 9 सीटों पर जीत का परचम फहराया। यहां की 7 सीटों पर बसपा उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे।

हिंदुत्व के बैनर तले जातियों को एकजुट करने में भाजपा
हिंदुत्व के बैनर तले जातियों को एकजुट करने की भाजपा की कोशिशें 2017 के बाद से नहीं बदली हैं। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में 2017 से पार्टी ने खुद को मजबूत किया है। इस चुनाव में आगरा के 9 उम्मीदवारों में से एक जाटव नेता बेबी रानी मौर्य हैं, जिन्होंने चुनाव लड़ने के लिए उत्तराखंड के राज्यपाल के पद से इस्तीफा दे दिया था।

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