कासगंज: 350 से ज्यादा पुलिसकर्मी और बग्घी में सवार होकर आया दलित दूल्हा

आगरा
छह महीने तक चली जद्दोजहद के बाद आखिरकार दलित दूल्हे की घोड़े पर चढ़कर शादी के मंडप तक पहुंचने की मुराद पूरी हुई। रविवार को कासगंज के प्रचलित दलित-ठाकुर विवाद के निपटारे के बाद धूमधाम से विवाह संपन्न हुआ। दरअसल दलित दूल्हा चाहता था कि वह घोड़े पर बैठकर ही विवाह मंडप तक जाएगा, लेकिन गांव के ठाकुरों को यह मंजूर नहीं था। छह महीने तक चले विवाद और जद्दोजहद के बाद आखिरकार रास्ता निकला और गलत परंपरा को दरकिनार किया गया।

 
इस तरह कासगंज जिले के निजामपुर गांव में रविवार को पहली बार एक दलित दूल्हे की बारात की बाकायदा गांव की गलियों में रस्म हुई। दरअसल, जनवरी माह में गांव निजामपुर की शीतल की शादी सिकंदराराऊ के गांव बसई के रहने वाले अनुसूचित जाति के युवक संजय जाटव (27) के साथ तय हुई थी।

इस शादी को लेकर गांव में भारी विवाद और तनाव के हालात पैदा हो गए। वजह यह थी कि संजय चाहते थे कि वह घोड़ी पर बैठकर पूरे गांव में बारात घुमाए। वहीं, ठाकुर समाज के लोग इस बात का विरोध कर रहे थे। ठाकुरों का कहना था कि यह गांव की परंपरा नहीं है और बेवजह जिद पकड़ कर परंपरा तोड़ गांव में बारात घुमाने की बात की जा रही है।

350 से अधिक जवान तैनात
इस बहुचर्चित विवाह को निर्विघ्न संपन्न कराने के लिए प्रशासन ने अभूतपूर्व इंतजाम किए थे। बारात चढ़ाने के लिए रूट तैयार किया। बारात गुजरने वाली रोड या घरों की छतों पर पुलिस और पीएसी तैनात की गई थी। इनके साथ ही छह अलग-अलग पुलिस स्टेशन के 350 से अधिक जवान भी देख-रेख कर रहे थे। एडीएम, एएसपी सहित तमाम अधिकारी शादी पूरी होने तक मौजूद रहे। प्रशासन पहले ही 37 लोगों के खिलाफ पाबंदी की कार्रवाई कर उनसे मुचलका भरवा चुका था। पाबंद हुए लोग शादी के दिन गांव से चले गए थे।

गांव में उत्सव का माहौल
रविवार को छावनी बने गांव में उत्सव का माहौल था। ढोलक की थाप पर मंगल गीत गाए जा रहे थे। गांव के बाहर स्वागत द्वार बनाया गया। यहां दलित समाज के लोगों ने हाथरस से आई बारात का जोरदार तरीके से स्वागत किया। इसके बाद बैंड-बाजों के साथ बारात की चढ़ाई शुरू हुई। घोड़ाबग्घी पर सवार दूल्हा संजय बारात के साथ चल रहा था। उसके आगे बैंड-बाजों की धुनों पर बाराती नाचते हुए चल रहे थे। पूरे प्रदेश के दलित समुदाय को कई महीनों से जिस विवाह का इंतजार था।

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