किसानों को खाद के साथ जबरन लेना पड़ रहे कीटनाशक टैगिंग से परेशान, जिम्मेदार नहीं ले रहे कम्पनियों के विरुद्ध एक्शन

भोपाल.
 प्रदेश में किसानों को यूरिया और डीएपी खाद खरीदते समय सल्फर और कीटनाशक के पैकेट जबरन खरीदने पर मजबूर किया जा रहा है। खाद के नाम पर की जा रही इस टैगिंग में किसान परेशान हैं लेकिन कृषि विभाग के अधिकारी शिकायत न मिलने का दावा कर डीलर्स और खाद कम्पनियों के विरुद्ध एक्शन नहीं ले रहे हैं। सबसे खराब स्थिति विन्ध्य के किसानों के साथ है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा किसानों को खाद उपलब्धता में किसी तरह की कमी नहीं रखने और कालाबाजारी से बचाने के निर्देश भी कृषि महकमे पर बेअसर हैं। केंद्र सरकार ने खाद कम्पनियों को साफ निर्देश दे रखे हैं कि यूरिया और डीएपी या सुपर फास्फेट खाद की खरीदी के समय किसानों को कोई अन्य कीटनाशक या सल्फर खरीदने के लिए दबाव नहीं बनाया जा सकता है।

खाद के साथ पेस्टिसाइड की टैगिंग किए जाने पर प्रतिबंध है और ऐसा करने वालों पर कार्यवाही के आदेश हैं। इसके विपरीत प्रदेश में गेहूं उत्पादक जिलों में उपयोग में आने वाली खाद की खरीदी डीलर्स से करते समय डीलर्स द्वारा किसानों को कीटनाशक या सल्फर लेने के लिए दबाव बनाया जाता है।

इनके द्वारा ऐसे सामान लेने पर ही खाद देने की बात कही जाती है। ये ऐसे डीलर्स हैं जो राज्य शासन द्वारा खाद बिक्री के लिए तय 25 प्रतिशत खाद की व्यवस्था के अंतर्गत खाद का स्टाक रखते हैं। इन हालातों में किसानों को डीलर्स से महंगी खाद लेने के साथ टैगिंग के रूप में कीटनाशक लेने को मजबूर होना पड़ रहा है।

विन्ध्य क्षेत्र के रीवा, सीधी, सिंगरौली में इसको लेकर काफी शिकायतें हैं और इसमें सबसे आगे चंबल फर्टिलाइजर कम्पनी का नाम लिया जा रहा है। इसके साथ ही नेशनल फर्टिलाइजर लिमिटेड, इंडियन पोटास लिमिटेड समेत अन्य कम्पनियां शामिल हैं। यह स्थिति प्रदेश के बाकी जिलों में भी है।

सरकार ने मार्कफेड को 75 प्रतिशत और निजी डीलर्स के माध्यम से 25 प्रतिशत खाद बिक्री की व्यवस्था तय की है। ये मार्कफेड की समितियों पर कीटनाशक बिक्री के लिए दबाव नहीं बना पाते, इसलिए डीलर्स के माध्यम से पेस्टिसाइड खरीदने के लिए किसानों को मजबूर कर रहे हैं।

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